दुनिया में कद्र काया की नहीं, आपके काम और प्रतिभा की होती है। यह तस्वीर इसी बात का उदाहरण है। यह है गांव नथवाना की 21 वर्षीय बेटी अनुराधा। सिर्फ दिमाग को छोड़कर शरीर का कोई हिस्सा सही से काम नहीं करता, बावजूद इसके अनुराधा ने कभी इसकी परवाह नहीं की। संघर्ष से जूझते हुए हमेशा एक ही लक्ष्य रखा कि मुझे पढ़ना है। इसी का परिणाम है कि दिव्यांग अनुराधा ने 12वीं में 85 प्रतिशत अंक हासिल कर मंगलवार को गार्गी पुरस्कार हासिल किया।
संगरिया के राजकीय बालिका स्कूल में पुरस्कार वितरण समारोह के दौरान जब अनुराधा बुडानिया को पुरस्कार के लिए पुकारा गया तो सबकी निगाहें उस पर टिक गईं। क्योंकि अनुराधा की मां उसे गोद में उठाकर समारोह में पहुंची। फिर स्कूल प्रिंसिपल व व्यवस्थापक ने अनुराधा को उठाकर स्टेज पर पहुंचाया, जहां एसडीएम रमेश देव, पालिका अध्यक्ष सुखबीर सिंह सिद्धू ने घुटनों के बल बैठकर अनुराधा को माला व पगड़ी पहना उसका सम्मान किया।
संघर्षों भरा जीवन, पर कभी हार नहीं मानी: अनुराधा
21 साल की अनुराधा ने बताया कि कक्षा 8 तक तो दिव्यांग होने की वजह से घर पर ही रह कर पढ़ाई की। हाथ-पांव, कमर सहित शरीर का कोई हिस्सा काम नहीं करने के कारण खुद किताब भी नहीं उठा पाती थी। ऐसे में मेरे माता-पिता सहयोग करते। कक्षा 10वीं में 78.50 प्रतिशत अंक लेकर गार्गी पुरस्कार प्राप्त किया था।
इसके बाद 12 में 85% अंक प्राप्त किए। मुझे स्कूल की छात्राओं ने कभी जाहिर ही नहीं होने दिया कि मैं दिव्यांग हूं। दो मई 2020 को पिता सुरेंद्र बुडानिया की मौत के बाद मां सरोज बुडानिया ही मेरा ख्याल रखती है। मेरा सपना है कि मैं आईएएस बनूं।