नेपाल आम चुनाव में प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा लगातार 7वीं बार डडेलधुरा निर्वाचन क्षेत्र से चुने गए हैं। 20 नवंबर को मतदान की प्रक्रिया पूरी हो गई थी। इसके बाद 21 नवंबर को वोटों की गिनती कड़ी सुरक्षा के बीच शुरू हुई थी।
अब तक हुई मतगणना के मुताबिक, देउबा की पार्टी- नेपाली कांग्रेस आगे चल रही है। संसद में नेपाली कांग्रेस ने 10 सीटें जीत ली है। वहीं, पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी 3 सीटें हासिल कर पाई है।
प्रधानमंत्री और सत्तारूढ़ नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा ने 25,534 मतों के साथ अपने गृह जिले की सीट पर जीत हासिल की। उनके प्रतिद्वंद्वी सागर ढकाल को 13,042 वोट मिले।
संसद और विधानसभा के चुनाव एक-साथ
नेपाल की संसद की कुल 275 सीटों और प्रांतीय विधानसभाओं की 550 सीटों के लिए वोटिंग हुई थी। देश के 1 करोड़ 80 लाख से ज्यादा वोटर अपनी सरकार को चुनेंगे। इसके रिजल्ट एक हफ्ते में आने की उम्मीद है।
देउबा की जीत से भारत को फायदा
प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा का कहना है कि उकसाने और शब्दों की लड़ाई की बजाय वो भारत के साथ कूटनीति और बातचीत के जरिए विवाद सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं।
US और चीन से आर्थिक मदद पर भी राजनीतिक पार्टियों में मतभेद
नेपाल की राजनीतिक पार्टियों में अमेरिका और चीन से आर्थिक मदद पर मतभेद हैं। देउबा की पार्टी ने अमेरिकी मिलेनियम चैलेंज कोऑपरेशन के तहत 42 हजार करोड़ रुपए की मदद को स्वीकार किया है। इसे संसद से भी पास करा लिया गया है। जबकि केपी शर्मा ओली की पार्टी चीन के साथ BRI करार पर ज्यादा उत्सुक नजर आते हैं। छोटी पार्टियों ने विदेशी मदद पर चुनाव प्रचार में अपना रुख साफ नहीं किया है।
ओली सरकार के कार्यकाल में बढ़ा भारत-नेपाल तनाव
ओली का कहना है कि प्रधानमंत्री बनते ही वो भारत के साथ सीमा विवाद हल कर देंगे। वे देश की एक इंच भूमि भी जाने नहीं देंगे। हालांकि एक्सपर्ट्स का कहना है कि 2 साल से ज्यादा सत्ता में रहने के बावजूद ओली ने इस विवाद को हल करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया। बतौर PM ओली ने कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा को नेपाल में दर्शाता हुआ नया मैप जारी किया था। भारत इन्हें अपने उत्तराखंड प्रांत का हिस्सा मानता है। ओली ने इस नक्शे को नेपाली संसद में पास भी करा लिया था।
नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता
नेपाल में पॉलिटिकल इनस्टैबिलिटी है। यहां 1990 में लोकतंत्र स्थापित हुआ था और 2008 में राजशाही को खत्म कर दिया गया था। 2006 में सिविल वॉर खत्म होने के बाद से कोई भी प्रधानमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया है। नेतृत्व में बार-बार बदलाव और राजनीतिक दलों के बीच आपसी विवाद के चलते डेवलपमेंट धीरे हो रहा है।