कितनी बार हमने और आपने जादू का खेल देखा होगा। जब भी जादूगर कोई ट्रिक करता है तो ऑडियंस गौर से ऑब्जर्व करती है। जादूगर के हर मूवमेंट पर नजर रहती है। ऑडियंस को लगता है कि जादूगर की ट्रिक पकड़ लेंगे, लेकिन तभी कुछ ऐसा होता है, जो चौंका देता है…इसी को जादू कहते हैं।
राजस्थान में भी 20 से 28 सितंबर के बीच कुछ ऐसा ही हुआ, जो किसी के समझ में नहीं आया।
‘द ग्रेट राजस्थान पॉलिटिकल ड्रामा पार्ट-2’ अब लगभग खत्म हो चुका है। अब जल्द ही राजस्थान की राजनीति में इस पॉलिटिकल ड्रामा का पार्ट-3 देखने को मिलेगा। ये भी रहस्य, रोमांच और एंटरटेनमेंट से भरपूर होगा। एंटरटेनमेंट इसलिए क्योंकि 2023 के विधानसभा चुनाव नजदीक हैं। ऐसे में अब बहुत कुछ नया, ज्यादा और अलग होने की कोई संभावना नजर नहीं आ रही है।
राजस्थान में भाजपा भी इतनी मजबूत नहीं है कि यहां ‘ऑपरेशन लोटस’ जैसा कुछ चल सके। हां, बस इतना जरूर है कि अशोक गहलोत गुट और पायलट गुट के बीच तलवारें चुनाव तक खिंची हुई रहेंगी। 2023 में राज्य बजट के बाद सचिन पायलट ‘एक्सीडेंटल CM’ बन जाएं तो कुछ कह नहीं सकते, बाकी नंबर गेम सचिन के साथ नजर नहीं आ रहा। पॉलिटिकल ड्रामे से कांग्रेस की छवि को नुकसान के साथ राजस्थान का विकास भी प्रभावित होगा, इसमें कहीं कोई संदेह नहीं है।
समझिए- इस पॉलिटिकल ड्रामे में किसने क्या खोया-क्या पाया?
सबसे पहले बात अशोक गहलोत की...
क्या गहलोत राष्ट्रीय अध्यक्ष बनेंगे?
ये आज और सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद तय होगा। हालांकि, कयास लगाए जा रहे है कि गहलोत चुनाव नहीं लड़ेंगे। गहलोत पहले भी अध्यक्ष नहीं बनना चाहते थे और अब हाईकमान भी शायद उन्हें अध्यक्ष न बनाना चाहे। अभी किसी ने उनका फॉर्म भी नहीं लिया है।
सवाल-जवाब का सिलसिला आगे बढ़ाने से पहले नीचे दिए गए पोल में हिस्सा लेकर आप अपनी राय व्यक्त कर सकते हैं-
क्या चुनाव लड़ने की स्थिति में राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव जीत जाएंगे?
पहले तो स्पष्ट है कि गहलोत राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना नहीं चाहते। जाहिर है कि वह चुनाव तभी लड़ेंगे, जब हाईकमान का प्रेशर और सपोर्ट होगा। हाईकमान का सपोर्ट होगा तो जीत भी लगभग तय ही होगी।
अशोक गहलोत आगे क्या कर सकते हैं?
गहलोत के सामने ज्यादा रास्ते नहीं है। अध्यक्ष बनने का रास्ता अब भी खुला हुआ है। आलाकमान अच्छे से जानता है कि यहां लड़ाई अध्यक्ष पद के लिए नहीं है, बल्कि राजस्थान के CM पद की है। ऐसे में अशोक गहलोत दिल्ली में सोनिया गांधी से मुलाकात करेंगे और विधायकों की भावनाएं रखेंगे। सोनिया गांधी CM पद पर फैसला लंबित रख सकती हैं और गहलोत को अध्यक्ष पद के लिए नॉमिनेशन करवाया जा सकता है।
क्या मुख्यमंत्री को बिना विधायकों के समर्थन के हटाया जा सकता है?
विधायक दल के समर्थन के बिना मुख्यमंत्री को नहीं हटाया जा सकता। विधायक दल की बैठक बुलाने का अधिकार विधायक दल के मुखिया (CM), संसदीय कार्य मंत्री या मुख्य सचेतक को है। आलाकमान विधायक दल की बैठक खुद अपने स्तर पर नहीं बुला सकता। आलाकमान के आदेश की पालना में 25 सितंबर को विधायक दल की बैठक तो बुलाई गई, लेकिन विधायक नहीं जुटने से मुख्यमंत्री पद को लेकर प्रस्ताव तक पारित नहीं हो पाया। साफ है कि आलाकमान के चाहने भर से ही कुछ नहीं होने वाला, विधायकों का एकराय होना भी जरूरी है। अभी इस मामले में गहलोत और उनके मंत्री ज्यादा ताकतवर हैं।
अब समझिए इस घटनाक्रम का पायलट पर असर...
पायलट को क्यों मुख्यमंत्री बनते नहीं देखना चाहते थे गहलोत समर्थक सीनियर मंत्री और विधायक?
गहलोत समर्थक विधायकों की पहली शर्त है कि पायलट मुख्यमंत्री नहीं बनें। विधानसभा चुनाव 2018 से ही कांग्रेस दो बड़े चेहरों में बंटी हुई है… गहलोत और पायलट। बीच में बाड़ाबंदी और सियासी संकट सभी ने देखा। ऐसे में गहलोत समर्थक नहीं चाहते कि जिन विधायकों के कारण सरकार संकट में आई, उनका नेतृत्व करने वाले सचिन पायलट को यह पद दिया जाए।
पायलट और गहलोत गुट के मंत्रियों और विधायकों के बीच कैसे रिश्ते है, यह बताने के लिए विधानसभा की ये तस्वीर काफी है। प्रताप सिंह कभी सचिन पायलट खेमे के माने जाते थे।
पायलट की आगे की रणनीति क्या हो सकती है?
गहलोत समर्थकों ने पायलट की मुख्यमंत्री बनने की राह में इतने कांटे बो दिए हैं कि अब आलाकमान के लिए भी उनके पक्ष में निर्णय करना काफी कठिन हो गया है। आलाकमान ने उन पर विश्वास जताते हुए CM पद के लिए उनका नाम तय कर दिया था, लेकिन परिस्थितियों ने साथ नहीं दिया।
पायलट धैर्य रखे हुए हैं और वे अब सोनिया से मिलकर गहलोत समर्थकों के द्वारा उनके खिलाफ माहौल बनाने के पीछे किसका हाथ है, इसे स्पष्ट करने का प्रयास करेंगे।
अब कांग्रेस आलाकमान की परेशानी समझिए...
राजस्थान में सियासी घमासान देख कर क्या ऐसा लग रहा है कि आलाकमान कमजोर हो रहा है?
इसे समझने के लिए भाजपा की भी बात करनी होगी। भाजपा में आलाकमान ने एक साल में 5 मुख्यमंत्री बदल दिए, लेकिन कहीं हल्ला नहीं मचा, लेकिन कांग्रेस ने पंजाब में CM बदलने का प्रयास किया, तो गुटबाजी के चलते कांग्रेस आलाकमान को काफी आंखें दिखाई गईं, अंत में पंजाब का CM बदला, लेकिन सरकार चली गई। मतलब आलाकमान का सियासी दांव सही नहीं पड़ा।
कांग्रेस की बात करें, तो अब सिर्फ दो राज्यों राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विशुद्ध कांग्रेसी सरकार है। कांग्रेस आलाकमान राजस्थान को लेकर रिस्क नहीं लेना चाहता। साथ ही गुजरात सहित कई चुनावों में राजस्थान की महत्वपूर्ण भूमिका है।
कांग्रेस हाईकमान पूरे घटनाक्रम को किस रूप में देखेगा?
ऊपरी तौर पर इस घटनाक्रम को लेकर भले अशोक गहलोत को क्लीन चिट मिल गई हो, लेकिन हाईकमान इसे पार्टी से मुखालफत के तौर पर ही देखेगा। क्योंकि राजस्थान में 1998, 2008 और 2018 में एक लाइन का प्रस्ताव गहलोत के पक्ष में पास हुआ था। तब विपक्षी गुट ने विद्रोह नहीं किया था।
1998 में परसराम मदेरणा, 2008 में डॉ. सीपी जोशी और 2018 में सचिन पायलट गुट विपक्ष में था। गहलोत के समर्थन में यह प्रस्ताव पास होना था और हाईकमान के कहने पर इसी तरह एक लाइन का प्रस्ताव पास हुआ था। इस बार भी ऐसा होना था। चूंकि गहलोत गुट इस बार विपक्ष में था और यह विद्रोह हुआ तो सीधे तौर पर हाईकमान इसे पार्टी की मुखालफत के रूप में ही लेगा। इसका लॉन्ग टर्म असर देखने को मिल सकता है। हालांकि, अभी कोई नुकसान नहीं दिख रहा।
गहलोत के प्रति हाईकमान के सॉफ्ट कॉर्नर की वजह?
गुजरात चुनाव दो महीनों में है और अगले सभी चुनावों के लिए फंड की जरूरत पड़ेगी, जिसका बड़ा जरिया राजस्थान है। ऐसे में पार्टी मानेगी कि गहलोत को अध्यक्ष और कुछ समय के लिए मुख्यमंत्री बनाए रखने में समझदारी है। दूसरा, हो सकता है कि पार्टी गहलोत के बजाय भले ही किसी अन्य को अध्यक्ष बना दे, लेकिन मुख्यमंत्री का पद उनसे नहीं छीन पाएगी।
घटनाक्रम का असर 2023 विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा?
बिल्कुल पड़ेगा। चुनाव से पहले जिस गुट के पास सत्ता नहीं होगी वो दूसरे गुट को अंदरखाने नुकसान पहुंचाने की कोशिश करेगा।
क्या भाजपा के लिए भविष्य की राह आसान होगी?
राजस्थान में कांग्रेस की कलह का पूरा फायदा BJP उठाएगी। 2023 में BJP के लिए यह सबसे अहम राजनीतिक मुद्दा होगा।
क्या कांग्रेस के हाथ से राज्य जा सकता है?
इसकी संभावना कम नजर आ रही है, क्योंकि चुनाव में वक्त कम बचा है। कोई भी रिस्क नहीं लेगा। भाजपा को भी ज्यादा फायदा नजर नहीं आ रहा है।
शांति धारीवाल : धारीवाल कुशल व बोल्ड राजनीतिज्ञ हैं। कई मौकों पर गहलोत के लिए फ्लोर मैनेजमेंट कर चुके धारीवाल को अपने घर विधायकों को बुलाने से कितना नुकसान हो सकता है, उन्हें इसका अंदाजा है। गहलोत ने ही उनका टिकट पक्का किया था। वे नोटिस का जवाब देंगे। सभी के बयान आदि के बाद अनुशासनहीनता को लेकर फैसला करने में तीन-चार महीने लग जाएंगे। राजनीति में इतनी देर बाद इस घटनाक्रम का असर भी कम होता जाएगा।
महेश जोशी : पहले CMR में विधायक दल की बैठक बुलाने और फिर धारीवाल के घर विधायकों को बुलाने के आरोप हैं। वे गहलोत के हमेशा से ही करीबी रहे हैं। टिकट और मंत्री पद गहलोत के कोटे से है और वे कह चुके हैं कि सजा भुगतने को तैयार भी हैं, लेकिन अब अगले बजट तक तो कोई नुकसान होता नहीं दिख रहा।
धर्मेंद्र राठौड़ : गहलोत के हनुमान कहे जाने वाले धर्मेंद्र राठौड़ विधायक नहीं हैं और विधायक दल की बैठक से पहले उनकी ओर से विधायकों को इकट्ठा करना विवादित रहा। उनकी राजनीति गहलोत के इर्द-गिर्द ही घूमती है और ऐसे में गहलोत का वजूद जब तक रहेगा, उन्हें अपने आप मजबूती मिलती रहेगी। वे गहलोत का समर्थन करते रहेंगे और गहलोत उनके लिए फायदे के रास्ते बनाते रहेंगे।
अब समझिए 8 दिन में क्या हुआ, जिसे कोई नहीं समझ पाया
- पॉलिटिकल ड्रामा-2 के पूरे एपिसोड को समझने के लिए सबसे पहले इसकी पूरी स्क्रिप्ट को देखना जरूरी है।
राजस्थान की राजनीति में अशोक गहलोत को ‘चाणक्य’ के साथ ‘जादूगर’ भी कहा जाता है। पिछले कुछ दिनों के उनके बयानों और तरीकों में इसे समझा जा सकता है।
20-23 सितंबर तक जिस तरह की कांग्रेस में शांति चल रही थी, वो तूफान से पहले की थी। ऐसा माना जा रहा था कि बहुत आसानी से पायलट के लिए रास्ते खुल गए हैं। गहलोत अब राष्ट्रीय राजनीति में चले जाएंगे, लेकिन गहलोत ने इन तीन दिनों में हर दिन, हर मैसेज में ये क्लियर कर दिया था कि उनके पास कोई पद रहे या न रहे, वो राजस्थान को नहीं छोड़ेंगे। ये भी कह दिया था कि CM कौन होगा? ये बहुत ही नाजुक फैसला है। माना जा रहा है कि गहलोत जो चाहते हैं, वो करने में सफल हो गए।
20 सितंबर : मांग-अध्यक्ष बने लेकिन मुख्यमंत्री नहीं बदले
(विधायक दल की बैठक, मुख्यमंत्री निवास)
गहलोत ने सभी विधायकों को अध्यक्ष पद को लेकर आलाकमान के कॉल की जानकारी देते हुए खुद के नामांकन भरने की सूचना दी। विधायकों ने कहा कि यहां मुख्यमंत्री नहीं बदला जाए, तो गहलोत ने आलाकमान को भावना पहुंचाने का आश्वासन दिया।
20 सितंबर को मुख्यमंत्री आवास पर हुई विधायक दल की बैठक में ही पॉलिटिकल ड्रामा की स्क्रिप्ट का पहला पेज लिखा गया। जहां विधायकों ने मुख्यमंत्री न बदले जाने की मांग उठाई।
21 सितंबर : बयान- दो पद का नियम अध्यक्ष पद पर लागू नहीं होता
(सोनिया गांधी से मुलाकात से पहले, दिल्ली एयरपोर्ट)
गहलोत बोले-अध्यक्ष पद या CM पद पर मेरी जरूरत है, तो मैं मना नहीं कर सकता। एक पद, एक व्यक्ति का नियम केवल नॉमिनेटेड पोस्ट के लिए है। चुनाव लड़कर कोई भी दो पोस्ट पर रह सकता है। मेरा तो मन है कि अब मैं न एक पद पर रहूं, न दो पद पर। सिर्फ पार्टी की सेवा करूं।
21 सितंबर को सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद जब गहलोत बाहर निकले तो उन्हें वरिष्ठ नेता पवन बंसल मिल गए। दोनों 10 मिनट तक बातचीत करते रहे।
22 सितंबर : बयान-बिना पद भी राजस्थान की सेवा करूंगा
(राहुल गांधी से मुलाकात के बाद, कोच्चि)
आपके बाद मुख्यमंत्री कौन होगा...सवाल पर गहलोत ने कहा- जनरल सेक्रेटरी इन्चार्ज हैं अजय माकन और कांग्रेस प्रेसिडेंट सोनिया गांधी…वो लोग फैसला करेंगे। मीडिया द्वारा फैलाया जा रहा है कि मैं मुख्यमंत्री पद छोड़ना नहीं चाहता हूं। मैं तो किसी भी पद पर नहीं रहना चाहता। नॉमिनेशन फॉर्म भरने के बाद भी कहूंगा कि मैं कहीं रहूं, किसी भी पद पर, पर राजस्थान जहां से मैं बिलॉन्ग करता हूं, जिस गांव में मैं पैदा हुआ हूं, वहां की सेवा मैं जिंदगी भर करता जाऊंगा और अंतिम सांस तक करता रहूंगा।
अशोक गहलोत कोच्चि में गोविंद सिंह डोटासरा के साथ राहुल गांधी से मिले। इस मुलाकात के बाद गहलोत ने बयान दिया- मैं कहीं रहूं, किसी भी पद पर राजस्थान की सेवा करता रहूंगा।
24 सितंबर : श्राद्ध में अचानक जैसलमेर में तनोट माता के दर्शन
(विधायक दल की बैठक की सूचना के बाद)
गहलोत को सोनिया गांधी के आदेश पर अगले दिन (25 सितंबर) विधायक दल की बैठक लेने अजय माकन और मल्लिकार्जुन खड़गे के आने की सूचना मिली। इस विधायक दल की बैठक की सूचना अशोक गहलोत के OSD ने मीडिया ग्रुप में डाली, लेकिन उसके तत्काल बाद 25 को मुख्यमंत्री के जैसलमेर में तनोट माता के दर्शन को लेकर यात्रा कार्यक्रम की सूचना डाली।
25 सितंबर : बयान-बड़ा राज्य राजस्थान ही बचा है कांग्रेस के पास
(तनोट, जैसलमेर में दर्शन के बाद)
मुख्यमंत्री के पद पर बने रहने के सवाल पर गहलोत ने जवाब दिया- ये बात कभी दिमाग में नहीं रही मेरे। मैं तो 9 अगस्त में ही कह चुका हूं कि राजस्थान में अगला चुनाव जीतना बहुत आवश्यक है। बड़ा राज्य राजस्थान ही बचा है कांग्रेस के पास। राजस्थान में जीतेंगे तो कांग्रेस का सब राज्यों में जीतना प्रारंभ होगा वापस। माकन से पहले सोनिया को मैं बोल चुका हूं कि अगला चुनाव उसके नेतृत्व में लड़ा जाए जिससे जीत मिल सके। विधायक दल की बैठक में 1 लाइन का प्रस्ताव जरूर पास होता है कि हम अधिकार देते हैं कांग्रेस प्रेसिडेंट को, ये हमारी परंपरा रही है।
25 सितंबर को माकन और खड़गे के साथ विधायक दल की बैठक होनी थी। उस दिन गहलोत जैसलमेर यात्रा पर रहे। उन्होंने डोटासरा और खाचरियावास के साथ तनोट माता के दर्शन किए।
25 सितंबर : मुख्यमंत्री निवास में बैठक करवाने का आइडिया
(माकन व खड़गे का जयपुर आना और विधायक दल की बैठक का न होना)
अजय माकन व मल्लिकार्जुन खड़गे को शाम 7 बजे विधायक दल की बैठक में शामिल होना था, तब गहलोत जैसलमेर यात्रा पर रहे। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा तथा फूड एंड सिविल सप्लाई मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास भी उनके साथ रहे।
माकन और खड़गे सीएमआर पहुंचे, लेकिन वहां नाम मात्र के विधायक पहुंचे। ज्यादातर विधायक संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल के घर इकट्ठा हुए। विधायकों के गहलोत को ही मुख्यमंत्री बनाए रखने पर लामबंद होने के कारण विधायक दल की बैठक नहीं हो पाई।
धारीवाल के घर हुई बैठक में गहलोत मौजूद नहीं थे। ऐसे में वह कहीं से पार्टी नहीं बने।
गहलोत को ही मुख्यमंत्री बनाए रखने की मांग को लेकर उनके गुट के विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी को इस्तीफे सौंप दिए।
26 सितंबर : माकन फंसे पॉलिटिक्स में
(गहलोत ने खड़गे को राजनीतिक मैसेज दे दिया)
माकन और खड़गे ने सोनिया गांधी को विधायकों की ओर से बैठक का बहिष्कार करने की सूचना देने के बाद बयानों में नाराजगी जताई। दोनों मैरियट होटल में रुके थे। गहलोत दोनों के दिल्ली जाने से पहले दोपहर में मैरियट में मिलने पहुंचे। यहां गहलोत खड़गे से मिले, लेकिन माकन से नहीं। यहां गहलोत ने खड़गे को राजनीतिक मैसेज दे दिया। अब प्रदेश प्रभारी अजय माकन का विरोध शुरू हो गया है।
27 सितंबर : फोटो वायरल और क्लीन चिट
गहलोत का बयान नहीं आया, लेकिन सीएमआर से अशोक गहलोत से मिलते करीब आधा दर्जन मंत्री और 13 विधायकों की फोटो वायरल हुई। इसमें खुशमिजाजी से गहलोत ग्रुप में खड़े दिखे और मुस्कुराते हुए बातचीत करते नजर आए। खास बात ये है कि इस फोटो में गहलोत के साथ वो विधायक खड़े दिखे, जो पायलट के साथ पिछले तीन चार दिनों में दिखे थे या जिन्होंने पायलट के पक्ष में बयान जारी किए थे। मुख्यमंत्री निवास पर उन लोगों को बुलाना भी एक मैसेज था। इसके कुछ देर बार गहलोत को क्लीन चिट मिल गई थी।
आगे क्या : कांग्रेस के पर्यवेक्षक फिर आएंगे, वन टू वन रायशुमारी
राष्ट्रीय अध्यक्ष के नॉमिनेशन या चुनाव के बाद कांग्रेस के पर्यवेक्षक फिर राजस्थान आएंगे। अब विधायकों से वन टु वन डिस्कशन होगा। हालांकि, विधायक राजस्थान के प्रभारी अजय माकन को हटाने की बात कर रहे हैं। अगर ऐसा हुआ तो काफी कुछ और बदल जाएगा, क्योंकि पायलट की बगावत के बाद हर समझौते में उनकी निर्णायक भूमिका रही है।
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कांग्रेस में अध्यक्ष का चुनाव और राजस्थान सरकार में मुख्यमंत्री पद का फैसला.. दोनों मसलों पर अब गुरुवार या शुक्रवार तक तस्वीर साफ होने की उम्मीद है।
बुधवार देर रात दिल्ली पहुंचने के बाद दिल्ली एयरपोर्ट पर CM अशोक गहलोत ने कहा- कल यानी गुरुवार को सोनिया गांधी से मुलाकात करेंगे। हमारे दिल के अंदर नंबर वन जो होता है, उनकी अगुआई में हम काम करते हैं। आगे भी सोनिया गांधी के नेतृत्व में हम एकजुट रहेंगे। कांग्रेस में हमेशा डिसिप्लिन रहा है। पार्टी आज संकट में है। इस पूरे घटनाक्रम को लेकर मीडिया का अपना दृष्टिकोण हो सकता है। घर की बातें हैं। इंटरनल पॉलिटिक्स में यह सब चलता रहता है। यह सब सॉल्व कर लेंगे, यह मैं कह सकता हूं। (पूरी खबर पढ़ें)
2. सचिन की लव स्टोरी से लेकर पॉलिटिक्स में एंट्री फिल्मी: मोटर कंपनी में काम किया, अब राजस्थान के ‘पायलट’ की रेस में
11 जून 2000...सचिन पायलट की उम्र 22 साल थी, जब जयपुर में हुए एक सड़क हादसे में उन्होंने अपने पिता को खो दिया। यही वो समय था कि जब उन्होंने राजस्थान की राजनीति में एंट्री ली। 2004 में 26 साल की उम्र में लोकसभा चुनाव जीतकर सबसे कम उम्र के सांसद बने। इसी साल राहुल गांधी भी पहली बार सांसद बनकर लोकसभा पहुंचे थे। यहां दोनों में दोस्ती हुई। दोनों को कई मौकों पर एक साथ देखा जाता था।(पूरी खबर पढ़ें)