सूचना और रोजगार अधिकार अभियान से जुड़ी सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रॉय ने कहा- जवाबदेही कानून की डिमांड को लेकर वह फिर से राजस्थान में संघर्ष करेंगी। अगस्त महीने के अंत में या सितम्बर की शुरुआत में फिर से राजस्थान में जवाबदेही यात्रा निकालेंगे। उन्होंने कहा- छोड़ेंगे नहीं, हमें तो कानून चाहिए। जवाबदेही यात्रा का रोड मैप अभी तक बना नहीं है, जल्द बन जाएगा। जितने जिले छूट गए हैं, उनमें जाएंगे। रॉय ने कहा- गहलोत सरकार ने सरपंच संघ के दबाव में सोशल ऑडिटिंग प्रोसेस रोक दिया है। यह प्रदेश में पारदर्शिता और जवाबदेही पर बड़ा हमला है। जिसका हम पुरजोर विरोध करेंगे। हमें इसकी तकलीफ है।
सरकार ने सोशल ऑडिटिंग से संशोधित आदेश निकालकर सिविल सोसाइटी संगठन सदस्य, सूचना और रोजगार अभियान के सदस्य शब्दों को हटा दिया है।
गहलोत सरकार ने सरपंच संघ के दबाव में आकर सोशल ऑडिटिंग प्रोसेस रोका
अरुणा रॉय ने आरोप लगाया है कि राजस्थान की गहलोत सरकार ने सरपंच संघ के दबाव में आकर सोशल ऑडिटिंग के प्रोसेस को फिर से रोक दिया है। सरकार ने दुर्भाग्यपूर्ण आदेश निकाला है। यह प्रदेश में पारदर्शिता और जवाबदेही पर बड़ा हमला है। उन्होंने कहा-6 अगस्त 2022 को सरपंच संघ के साथ हुई हाईलेवल मीटिंग में दिए निर्देशों पर सिविल सोसाइटी संगठन के सदस्य, सूचना व रोजगार अधिकार अभियान (SR अभियान) के सदस्य शब्दों को हटा दिया गया है। उन्होंने कहा SR अभियान ने सोशल ऑडिटिंग नहीं की है, बल्कि सोशल ऑडिटिंग टीमों ने ट्रेनिंग दी है, ताकि CAG के नॉर्म्स के मुताबिक सोशल ऑडिटिंग हो सके। मेन सवाल ये उठता है कि सरपंच या ग्राम विकास अधिकारी को सोशल ऑडिटिंग से क्या डर है। सोशल ऑडिटिंग अन-इफेक्टिव होने को केन्द्र सरकार ने भी चिन्हित किया है। राजस्थान सरकार के सोशल ऑडिटिंग नहीं करने के कारण केन्द्र ने इस साल कम लेबर बजट अलॉट किया है। पैसे जारी नहीं करने की धमकी भी दी है।
जयपुर के विनोबा भावे ज्ञान मंदिर में अरुणा रॉय ने सामाजिक कार्यकर्ता ममता जेटली, कमल टाक, कविता श्रीवास्तव, रेणुका पामेचा, निखिल डे के साथ मीटिंग की।
गांव जाकर सूचना मांगी तो सरपंचों को तकलीफ शुरू हो गई
अरूणा रॉय ने कहा- सोशल ऑडिटिंग सरकार ही करती है। सिविल सोसाइटी नहीं करती है। सिविल सोसाइटी केवल कैपिसिटी बिल्ड कर रही थी। क्योंकि हमारे सोशल ऑडिटिंग सिम्बॉलिक हो रहे थे, उस पर कुछ हो नहीं रहा था। इसलिए जरूरी था कि सोशल ऑडिटिंग सही से हो। कैपिसिटी बिल्डिंग के लिए सरकार ने हमें जिम्मेदारी लेने को पूछा, तो हमने हां कर दिया। हम केवल कैपेसिटी बिल्डिंग के लिए जिलों में गए। सरकारी कर्मचारियों के लिए हमने कई जगह एक महीने की रेसीडेंशियल ट्रेनिंग की व्यवस्था की। ताकि समझदारी के साथ सोशल ऑडिटिंग हो सके।
मनरेगा और RTI कानून को भी समझ सकें। उन्होंने कहा ट्रेनिंग तो अच्छे से हुई। उसके बाद प्रैक्टिकल ट्रेनिंग में पायलट करने के लिए सूचना मांगी। गांव में जाकर जब सूचना मांगी तो सरपंचों को तकलीफ शुरू हो गई। सरपंचों ने सूचना बांटना नहीं चाहा। प्रश्नों का जवाब नहीं देना चाहा। सरपंच कहने लगे हम सूचना नहीं देंगे। प्रदेश में बहुत साल पहले वाला पुराना सिस्टम वापस शुरू हो गया है। लेकिन वह ऐसा कह ही नहीं सकते हैं, क्योंकि अब तो सूचना का अधिकार कानून आ चुका है। सोशल ऑडिट के लिए भी नरेगा में प्रावधान है।
जनता और हम जानना चाहते हैं फंड कहां जाता है
अरुणा रॉय ने कहा ये सवाल जनता भी जानना चाहती है,हम भी जानना चाहते हैं कि ग्रामीण विकास को मिलने वाला फंड कहां जाता है। केंद्र सरकार इतना तक कह रही है कि सोशल ऑडिटिंग नहीं हुई तो हम फंड रोक देंगे। जबकि हम कह रहे हैं कि पनिशमेंट जनता को नहीं दे सकते हैं। सोशल ऑडिट नहीं हुई तो कर्मचारियों पर फाइन करें। इसलिए हम केन्द्र सरकार से भी पूरी तरह सहमत नहीं हैं कि वह पैसे रोक दे। गरीब जनता के लिए तो पैसे आने चाहिए।
हम चोरी पकड़ना सिखा रहे थे, सरकारी लोग औपचारिकता निभाकर चले जाते हैं
अरुणा रॉय ने कहा- सरकार को फैसला करना है। हम तो नैतिकता और स्वच्छ राजनीति के लिए लड़ रहे हैं। हम कभी यह नहीं कह सकते आपका चुनाव आ गया। तो आप सब कुछ छोड़कर चुनाव पर नजर डालें। स्वच्छ राजनीति में जवाबदेही और पारदर्शिता तो होनी चाहिए। हमें आपत्ति नहीं तकलीफ है, राज्य सरकार का नोटिफिकेशन आया है कि SR अभियान को हटा रहे हैं। SR अभियान को कैसे हटा सकते हैं। सरकार ने हमें बुलाकर कहा कि हमें ट्रेनिंग दो। ना तो हम सरकार के कर्मचारी हैं, ना ही वह हमें तनख्वाह देते हैं। तो वो हमें क्या हटाएंगे। वह इतना कह सकते हैं कि आपसे ट्रेनिंग नहीं करवाएंगे। सरकार से करवाएंगे। लेकिन हम तो चोरी पकड़ने के तरीके बता रहे थे। सरकार में तो औपचारिकता निभा कर चले जाते हैं। वो भी साफ दिख रहा है।