काशी में ज्ञानवापी और मथुरा में ईदगाह मस्जिद के बाद अब दिल्ली में कुतुब मीनार को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। कुतुब मीनार पर जारी विवाद के बीच संस्कृति मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि उसने इसके परिसर की खुदाई का फिलहाल आदेश नहीं दिया गया है। इससे पहले आई रिपोर्ट्स में कहा गया था कि संस्कृति मंत्रालय ने आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया यानी ASI को कुतुब मीनार परिसर की खुदाई और वहां स्थित मूर्तियों की आइकोनोग्राफी कराने का आदेश दिया है।
संस्कृति सचिव गोविंद मोहन ने शनिवार को कुतुब मीनार परिसर का दौरा किया था। इसके बाद परिसर में खुदाई कराए जाने का आदेश दिए जाने की खबरें आई थीं। वहीं हाल में कुछ हिंदूवादी संगठनों ने कुतुब मीनार का नाम बदलकर विष्णु स्तंभ किए जाने की मांग की थी। कुतुब मीनार परिसर में पूजा का अधिकार दिए जाने की मांग को लेकर एक याचिका दाखिल हुई है, जिस पर 24 मई को सुनवाई होनी है।
चलिए जानते हैं कि क्या है कुतुब मीनार से जुड़ा विवाद? क्यों उठी कुतुब मीनार के अंदर पूजा का अधिकार दिए जाने की मांग? क्या है कुतुब मीनार का इतिहास?
जानिए कुतुब मीनार का इतिहास
कुतुब मीनार का निर्माण 1199 से 1220 के दौरान कराया गया था। कुतुब मीनार को बनाने की शुरुआत कुतुबुद्दीन-ऐबक ने की थी और उसके उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने पूरा कराया था। कुछ इतिहासकारों ने इसे विष्णु स्तंभ बताते हुए कहा कि इसे 5वीं शताब्दी में विक्रमादित्य ने बनवाया था।
कुतुब मीनार देश की प्रमुख ऐतिहासिक इमारतों में से एक है। ये साउथ दिल्ली के महरौली इलाके में स्थित है। करीब 238 फीट की ऊंचाई वाला कुतुब मीनार भारत का सबसे ऊंचा पत्थरों का स्तंभ है। कुतुब मीनार इसके आसपास स्थित कई अन्य स्मारकों से घिरा हुआ और इस पूरे परिसर को कुतुब मीनार परिसर कहते हैं।
माना जाता है कि कुतुब मीनार का निर्माण 1199 से 1220 के दौरान कराया गया था। कुतुब मीनार को बनाने की शुरुआत कुतुबुद्दीन-ऐबक ने की थी और उसके उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने पूरा कराया था।
कुतुबुद्दीन ऐबक पृथ्वीराज चौहान को हराने वाले मोहम्मद गोरी का पसंदीदा गुलाम और सेनापति था। गोरी ऐबक को दिल्ली और अजमेर का शासन सौंपकर वापस लौट गया था। 1206 में गोरी की मौत के बाद ऐबक आजाद शासक बन गया और उसने दिल्ली सल्तनत की स्थापना की।
14वीं और 15वीं सदी में कुतुब मीनार को बिजली गिरने और भूकंप से नुकसान पहुंचा था। पहले इसकी शीर्ष दो मंजिलों की फिरोज शाह तुगलक ने मरम्मत करवाई थी। 1505 में सिकंदर लोदी ने बड़े पैमाने पर इसकी मरम्मत कराई थी और इसकी ऊपरी दो मंजिलों का विस्तार किया था। 1803 में आए एक भूकंप से कुतुब मीनार को फिर से नुकसान पहुंचा। तब 1814 में इसके प्रभावित हिस्सों को ब्रिटिश-इंडियन आर्मी के मेजर रॉबर्ट स्मिथ ने रिपेयर कराया था।
कुतुब मीनार के नाम के पीछे की कहानी क्या है?
यह कहीं भी स्थापित नहीं है कि कुतुब मीनार का नाम उस कुतुबद्दीन ऐबक के नाम पर रखा गया है, जिसने इसका निर्माण शुरू किया था या इसका नाम मशहूर मुस्लिम सूफी संत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर पड़ा है। वहीं इतिहासकारों का कहना है कि कुतुब या कुटुब मीनार नाम ब्रिटिश पीरियड में काफी प्रचलित हुआ।
कुतुब मीनार और उससे सटी कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद के निर्माण में वहां मौजूद दर्जनों हिंदू और जैन मंदिरों के स्तंभों और पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था।
कुतुब मीनार पर ताजा विवाद किस बात को लेकर है?
कुतुब मीनार को लेकर ताजा विवाद का कारण ASI के पूर्व रीजनल डायरेक्टर धर्मवीर शर्मा का बयान है। शर्मा ने दावा किया है कि कुतुब मीनार को राजा विक्रमादित्य ने बनवाया था न कि कुतुबुद्दीन ऐबक ने जैसा कि इतिहास की किताबों में बताया गया है। धर्मवीर शर्मा ने इससे पहले बताया था कि कुतुब मीनार एक सन टावर है जिसे 5वीं शताब्दी में गुप्त साम्राज्य के विक्रमादित्य ने बनवाया था। उन्होंने दावा किया कि इस संबंध में मेरे पास बहुत सारे सबूत हैं।
शर्मा का दावा है कि कुतुब मीनार की मीनार में 25 इंच का झुकाव है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इसे सूर्य का अध्ययन करने के लिए बनाया गया था। 21 जून को जब सूर्य आकाश में जगह बदलता है तो भी कुतुब मीनार की उस जगह पर आधे घंटे तक छाया नहीं पड़ती। यह विज्ञान और आर्कियोलॉजिकल फैक्ट है। शर्मा ने कहा कि कुतुब मीनार एक स्वतंत्र इमारत है और इसका संबंध करीब की मस्जिद से नहीं है। दरअसल, इसके दरवाजे नॉर्थ फेसिंग हैं, ताकि इससे रात में ध्रुव तारा देखा जा सके।
कुतुब मीनार के कॉम्प्लेक्स के खंभों को हिंदू शैली में डिजाइन किया गया है। खंभों पर घंटियां हैं। ये घंटियां बिल्कुल वैसी ही दिखती हैं जैसी हिंदू मंदिर में इस्तेमाल की जाती हैं।
कुतुब मीनार को लेकर पहले कब-कब हो चुका है विवाद?
यह स्मारक अपने मूल और इसके वास्तविक निर्माता को लेकर कई बार विवादों में रहा है। इस साल अप्रैल में नेशनल म्यूजियम अथॉरिटी यानी NMA ने ASI को कुतुब कॉम्प्लेक्स से गणेश जी की दो मूर्तियों को हटाने और नेशनल म्यूजियम में उनके लिए सम्मानजनक जगह खोजने के लिए कहा था। इसके बाद यह विवाद अदालत तक भी पहुंच गया। दिल्ली की एक कोर्ट ने आदेश दिया कि कोई कार्रवाई नहीं की जाए और मामले की सुनवाई तक कॉम्प्लेक्स से मूर्तियां नहीं हटाई जाएं।
इस वर्ल्ड हेरिटेज साइट को लेकर यह एकमात्र विवाद नहीं है। विश्व हिंदू परिषद यानी VHP भी इस मामले में कूद चुका है। परिषद ने दावा किया है कि 73 मीटर ऊंचा स्ट्रक्चर विष्णु स्तंभ था। उन्होंने दावा किया कि इसके कुछ हिस्सों को बाद में मुस्लिम शासकों ने बनवाया था। VHP के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल ने दावा किया कि ऐतिहासिक स्ट्रक्चर हिंदू शासक के समय में भगवान विष्णु के मंदिर पर बनाया गया था।
बंसल ने दावा किया कि जब मुस्लिम शासक यहां पर आए तो उन्होंने 27 हिंदू और जैन मंदिरों को तोड़कर इसके कुछ हिस्सों का पुनर्निर्माण कराया। साथ ही इसका नाम बदलकर कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद कर दिया गया। उन्होंने कहा कि जबकि यह वास्तव में विष्णु मंदिर पर बना विष्णु स्तंभ था। बंसल ने दावा किया कि मुस्लिम शासकों ने इसका निर्माण नहीं कराया बल्कि इसे हमारे हिंदू शासकों ने बनवाया था
यूनाइटेड हिंदू फ्रंट ने भी एक याचिका दाखिल की है। याचिका में कहा गया था कि कुतुब मीनार स्थित कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद को हिंदू और जैन धर्म के 27 मंदिर को तोड़कर बनाया गया है। ऐसे में वहां फिर से मूर्तियां स्थापित की जाएं और पूजा करने की इजाजत दी जाए। यूनाइटेड हिंदू फ्रंट के इंटरनेशनल वर्किंग प्रेसिडेंट भगवान गोयल ने भी दावा किया कि कुतुब मीनार विष्णु स्तंभ है, जिसे महान राजा विक्रमादित्य ने बनवाया था।
दो हफ्ते पहले दक्षिणपंथी समूह के सदस्यों ने कुतुब मीनार परिसर के बाहर हनुमान चालीसा का पाठ किया था और इसका नाम बदलकर विष्णु स्तम्भ करने की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन किया था। इस दौरान 30 प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया गया था।
कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद में सदियों पुराने मंदिरों का भी एक बड़ा हिस्सा शामिल है। देवी-देवताओं की मूर्तियां और मंदिर की वास्तुकला अभी भी आंगन के चारों ओर के खंभों और दीवारों पर स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।
27 मंदिरों को तोड़कर बनाई गई थी कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद
दिल्ली की पहली शुक्रवार मस्जिद देश की प्रमुख धरोहरों में से एक कुतुब मीनार परिसर के अंदर स्थित है। इस मस्जिद का निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने कराया था। माना जाता है कि इस मस्जिद का निर्माण 27 हिंदू और जैन मंदिरों को नष्ट करके किया गया था।
राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद के दौरान अयोध्या में खुदाई में शामिल रहे प्रसिद्ध आर्कियोलॉजिस्ट केके मुहम्मद ने हाल ही में कहा था कि कुतुब मीनार के पास स्थित कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद को बनाने के लिए 27 हिंदू और जैन मंदिरों को तोड़ गया था। केके मुहम्मद के मुताबिक, ‘’मस्जिद के पूर्वी गेट पर लगे एक शिलालेख में भी इस बात का जिक्र है।’’
कुतुब मीनार के प्रवेश द्वार पर एक शिलालेख में लिखा है कि कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद वहां बनाई गई है, जहां 27 हिंदू और जैन मंदिरों का मलबा था।
इस मामले में दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए इस साल फरवरी में साकेत जिला अदालत ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था। याचिकाकर्ता का कहना है कि इस बात में कोई विवाद नहीं है कि यहां मंदिरों को नष्ट किया गया है। इसलिए उन्हें यहां पूजा करने का अधिकार दिया जाए। याचिका में ये भी कहा गया है कि इस मस्जिद में पिछले 800 सालों से नमाज नहीं अदा की गई है।
मस्जिद की पश्चिम दिशा की ओर का जो हिस्सा है, वह प्रारंभिक इस्लामी शैली में बनाया गया है। मेहराब (जहां खड़े होकर इमाम साहब नमाज पढ़ाते हैं) की दीवारों में कुरान की आयतें और फूलों की नक्काशी की गई है।
कुतुब मीनार परिसर में स्थित लौह स्तंभ किसने बनवाया
वर्तमान में दिल्ली के महरौली में कुतुब मीनार परिसर में स्थित लौह स्तंभ या लोहे के खंभे का इतिहास भी बहुत रोचक है। इस स्तंभ का निर्माण चंद्रगुप्त द्वितीय ने 375 से 415 ईस्वी के दौरान कराया था। इस स्तंभ की लंबाई 23.8 फीट है, जिनमें से 3.8 फीट जमीन के अंदर है। इसका वजन 600 किलो से ज्यादा है।
इस स्तंभ पर खुदे अभिलेख में इसे ताकतवर राजा चंद्र, जोकि भगवान विष्णु के भक्त थे, द्वारा 'ध्वज स्तंभ' के रूप में 'विष्णुपद की पहाड़ी' पर बनाए जाने का जिक्र है। इस ताकतवर राजा की पहचान आमतौर पर गुप्त साम्राज्य के चंद्रगुप्त द्वितीय के तौर पर की जाती है। करीब 1600 सालों बाद भी इस लौह स्तंभ में जंग नहीं लगी है, जो कि प्राचीन भारत की इंजीनियरिंग कौशल का प्रमाण है।
कुतुब मीनार परिसर में स्थित लौह स्तंभ का निर्माण चंद्रगुप्त द्वितीय ने कराया था।1600 साल बाद भी इस स्तंभ में जंग नहीं लगी है।
माना जाता है कि इसे मध्य प्रदेश के विदिशा स्थित भगवान विष्णु की पूजा से जुड़ी उदयगिरी गुफाओं के बाहर लगाया गया था, जहां से 11वीं शताब्दी में तोमर राजा अनंगपाल इसे महरौली ले आए थे।
हालांकि, कुछ इतिहासकार इस स्तंभ को मुस्लिम शासकों द्वारा लगाए जाने का दावा करते हैं। उनका मानना है कि मुस्लिम शासकों ने इस स्तंभ को अपनी विजय के प्रतीक के तौर पर कुतुब मीनार परिसर में लगवाया था। ऐसा करने के ऐतिहासिक प्रमाण मौजूद नहीं हैं।