दोपहर 12 बजे का वक्त। हमने दिल्ली में अपने दफ्तर में ही बैठकर एक ऑनलाइन IPL क्रिकेट बुकी को कॉल किया। अंडरकवर एजेंट बनकर हमने बताया कि मैं नोएडा की मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता हूं और IPL क्रिकेट वाली ऑनलाइन सट्टेबाजी करना चाहता हूं, क्या आप कुछ मदद कर सकते हैं?
उधर से भारी आवाज आई- ‘कहां के रहने वाले हो और क्या करते हो।’ मैंने बताया- ‘मध्य प्रदेश का रहने वाला हूं और नोएडा की मल्टीनेशनल कंपनी में ही काम करता हूं’। सटोरिया बोला- ‘एक लिंक और अकाउंट पासवर्ड वॉट्सऐप कर रहा हूं। उससे लॉगइन कर लो। अगर कोई दिक्कत आए तभी कॉल करना।’
ये है IPL में सट्टेबाजी पर पड़ताल की दूसरी रिपोर्ट। पहली किस्त में हमने क्रिकेट सट्टेबाजी के पूरे नेटवर्क का खुलासा किया। दूसरी किस्त में हमने ऑनलाइन क्रिकेट सट्टेबाजी पर फोकस किया। टीवी पर चल रहा IPL मैच, हाथ में मोबाइल और दिमाग में जीत-हार का गणित और मन में हजारों-लाखों गंवाने का डर। शाम होते ही ये घर-घर की कहानी है।
अब सट्टा लगाने के लिए कहीं, जाना आना नहीं है, किसी को कॉल भी नहीं करना है। यहां तक कि मुंह से एक शब्द तक नहीं निकालना है। एक उंगली दबाई और मेहनत से कमाई हुई पूंजी दांव पर। गुरु अब जमाना है डिजिटल और सटोरियों का नेटवर्क भी फुली डिजिटल हो गया है।
बुकी को कॉल करने के 15 मिनट के अंदर ही एक लिंक और लॉगइन-पासवर्ड आ गया। हमने जैसे ही उस लिंक को खोलकर लॉगइन किया, एक बेटिंग प्लेटफॉर्म स्क्रीन पर खुला। इस प्लेटफॉर्म का नाम है- GAME9EXCH। लॉगइन करते ही हमारे सामने सट्टेबाजी का रेट कार्ड और ढेरों ऑप्शन खुले।
जिस तरह शेयर बाजार का पोर्टल दिखता है, सट्टेबाजी का पोर्टल भी उतना ही एडवांस है और ढेरों ऑप्शन भी हैं। एक्सपर्ट बताते हैं कि अब क्रिकेट सट्टेबाजी का सबसे बड़ा चंक डिजिटल प्लेटफॉर्म पर ही होता है। इसकी वजह ये है कि इसमें हिसाब का लोचा नहीं होता और सट्टेबाजी को ऑपरेट करने में ज्यादा ह्यूमन रिसोर्स भी नहीं लगता। सारा काम सॉफ्टवेयर ही कर देता है।
चाइनीज सर्वर से ऑपरेट होती हैं ये वेबसाइट
हमारी पड़ताल का अगला पड़ाव था कि हमें जो लिंक मिला हम उसे साइबर सुरागों तक पहुंचें और इस लिंक के सर्वर और ऑपरेटिंग सिस्टम को समझें। इस लिंक की पड़ताल हमने कराई साइबर क्राइम इन्वेस्टिगेटर अमित दुबे से। अमित देश के दिग्गज साइबर क्राइम एक्सपर्ट हैं, जो देश की एजेंसियों और राज्यों की पुलिस को साइबर टेक्नोलॉजी की ट्रेनिंग देते हैं।
साइबर क्राइम इन्वेस्टिगेटर ने बताया कि जो लिंक हमने उन्हें दिया है वो चाइनीज सर्वर पर ऑपरेट हो रहा है और इसे ट्रेस करना आसान नहीं होता है। अमित कहते हैं, ‘जो भी ऑनलाइन सट्टेबाजी का नेटवर्क काम कर रहा है उसका बड़ा हिस्सा चाइनीज सर्वर होस्ट करते हैं। ये ऐप्स और वेबसाइट सिर्फ और सिर्फ एंड्रॉइड फोन पर ही ऑपरेट होती हैं। इसे टेलीग्राम और सिग्नल जैसे मैसेजिंग ऐप के जरिए सर्कुलेट किया जाता है, जिसे ट्रेस करना मुश्किल हो जाता है।’
असली चैलेंज है रुपयों का ट्रांजैक्शन, लेकिन इसकी भी काट निकाल ली गई है
लिंक मिलने और लॉगइन करने के बाद ऑनलाइन क्रिकेट सट्टेबाजी का सफर शुरू हो जाता है, लेकिन यहां तक का काम आसान है क्योंकि ये फॉरेन सर्वर पर ऑपरेट हो रहा है। सट्टेबाजी के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण काम होता है रुपयों का ट्रांजैक्शन। साइबर एक्सपर्ट अमित बताते हैं कि इस तरह के ट्रांजैक्शन करने के लिए साइबर अपराधी UPI चैनल का इस्तेमाल करते हैं।
सट्टेबाज किसी अनजान आदमी का पहचान पत्र चुराकर सबसे पहले सिम कार्ड खरीदते हैं और फिर इसी पहचान पत्र के आधार पर बैंक अकाउंट खुलवाते हैं। बैंक अकाउंट खुलते ही UPI पेमेंट एक्टिव हो जाता है और ट्रांजैक्शन होने लगते हैं, लेकिन जिस व्यक्ति के नाम पर बैंक अकाउंट होता है, उसे इसके बारे में पता तक नहीं होता है।
जब तक पुलिस को इस तरह के UPI अकाउंट के बारे में पता चलता है, तब तक इसे बंद कर दिया जाता और फिर से नए व्यक्ति के नाम पर नया अकाउंट खोल लिया जाता है। पुलिस के लिए यही सबसे चुनौती है, क्योंकि सट्टेबाजी के शातिर अपराधी ये अकाउंट बदलते रहते हैं। वहीं पुलिस पहचान पत्र के आधार पर जिन लोगों तक पहुंचती है वो लोग निर्दोष निकलते हैं।
लंदन की बेटिंग वेबसाइट्स से रेट का पैमाना तय होता है
क्राइम इन्वेस्टिगेटर और एक्सपर्ट विवेक अग्रवाल बताते हैं कि देश और विदेश में जो भी छोटे-बड़े क्रिकेट बुकी काम करते हैं उन्होंने अपने ऐप और वेबसाइट बनवा ली हैं। उनके बैकड्रॉप में बेटफेयर या Bet365 जैसे लंदन के बड़े पोर्टल पर आधारित हैं। सारी वेबसाइट्स का डेटा उसी के जरिए आता-जाता है। भारत के बुकी अपनी वेबसाइट पर विदेशी रेट्स से अलग रेट रखते हैं। इसकी वजह ये है कि लंदन में लो रेट पर बेटिंग होती है, वहीं इंडिया का रेट हाई होता है।
सट्टेबाजी अब रह गया है ‘बटन का खेल’
विवेक बताते हैं कि अब बुकीज के बीच ये चर्चा रहती है कि सट्टेबाजी अब ‘बटन का खेल’ हो गया है। पहले कैश का लेनदेन ज्यादा होता था। आपको किसी व्यक्ति से कैश का लेनदेन करना होता था, या आप बड़े बुकी हैं तो आपको हवाला के जरिए पैसे का लेनदेन करना होता था। अब पोर्टल पर ही कैश डिपॉजिट करने की व्यवस्था होती है। अगर आप 100 रुपए जमा कर रहे हैं तो आपसे 2 रुपए कन्वीनिएंस चार्ज काट लिया जाएगा। अगर आप एक हजार रुपए जीत जाते हैं और आप अपना पैसा विड्रॉ करना चाहते हैं तो फिर से 2% के हिसाब से 20 रुपए काट लिए जाते हैं। पहले की व्यवस्था में इस तरह का कन्वीनिएंस चार्ज नहीं देना होता था, लेकिन अब सटोरिए इस चैनल के जरिए भी करोड़ों-अरबों रुपए काम लेते हैं।
क्विक मनी कमाने का थ्रिल आत्महत्या तक ले जाता है, जरूरत है सही काउंसलिंग की
19 साल के आरव (बदला हुआ नाम) दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ते हैं। आरव के पिता का ज्वेलरी का बिजनेस था और ये अपर मिडिल क्लास फैमिली थी। पिछले साल दोस्तों की संगत में आरव ने भी ऑनलाइन सट्टेबाजी शुरू की। शुरू में बहुत मजा आया, लेकिन ये मजा तब सजा में बदल गया जब आरव पर डेढ़ लाख रुपए का कर्ज हो गया। कर्ज न चुकाने पर धमकियां मिलने लगीं। आरव का मेंटल प्रेशर बढ़ने लगा और उन्हें आत्महत्या करने के खयाल आने लगे।
IPL में सट्टेबाजी के खेल का सबसे दर्दनाक पक्ष आरव जैसे ही करोड़ों युवा हैं। इस तरह के ज्यादातर मामलों में परिवार वाले बदनामी के डर से गैंबलिंग के मामले में केस दर्ज नहीं करवाते और ये सिर्फ आम आत्महत्या का केस बनकर रह जाता है।
क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट रुचि शर्मा बताती हैं कि सट्टेबाजी की तरफ युवाओं का रुझान बढ़ने की 3 अहम वजहें हैं। पहला- उनकी नादान उम्र, दूसरा- क्विक मनी बनाने का चस्का, तीसरा- दोस्तों का दबाव यानी पीयर प्रेशर। लेकिन मां-बाप को अगर पता लगता है कि उनका बच्चा सट्टेबाजी की लत का शिकार है तो अपने बच्चे पर चिल्लाने और नाराज होने से कुछ नहीं होगा। ज्यादातर लोग सट्टेबाजी में पैसा गंवाते हैं, पैसा गंवाने के बाद बच्चों में चिंता और डिप्रेशन बढ़ने लगता है और उनकी मेंटल हेल्थ पर इसका बेहर खराब असर होता है।
रुचि कहती हैं कि पेरेंट्स को अपने बच्चों को मॉनीटर करते रहना चाहिए और अगर कुछ असामान्य दिखे तो बच्चों से इस बारे में बात करना चाहिए। अगर बच्चा मुसीबत में है तो क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट की मदद लेनी चाहिए।