कोटा में घनी आबादी में मगरमच्छ निकलने का सिलसिला थम नहीं रहा है। चंबल नदी और इसकी नहरों से मगरमच्छ शहर के आबादी इलाके में पहुंच रहे हैं। डीसीएम, प्रेम नगर, कंसुआ, किशोरपुरा कोतवाली इलाके में मगरमच्छ आबादी क्षेत्रों में आ चुके हैं। कुछ दिन पहले भी 7 फीट लंबा मगरमच्छ आबादी क्षेत्र में आ गया। वहीं, कोटा में ही एक ऐसा गांव है जहां सुस्ताते मगरमच्छों को देखेंगे तो लगता है जैसे इनका एक पूरा गांव बस गया है। ये है चंद्रलोई नदी। कोटा से करीब 15 किमी दूर बसे गांव हाथीखेड़ा में कुल 1300 लोग रहते हैं। लेकिन इस नदी में 2 हजार से भी ज्यादा मगरमच्छों ने डेरा डाल रखा है। हाथीखेड़ा गांव की पहचान अब के रूप में बन चुकी है। लेकिन बस्तियों की तरफ बढ़ते मूवमेंट से लोगों में हमेशा जान का खतरा बना भी रहता है।
हाथीखेड़ा गांव का करीब 4 किलोमीटर एरिया चंद्रलोई नदी के किनारे सटा हुआ है। इतने क्षेत्र में मगरमच्छों की संख्या करीब 2 हजार बताई जाती है। यहां 16 किमी की रेंज में मगरमच्छ रहते हैं। सजब मगरमच्छ धूप सेकने के लिए किनारे पर आते हैं तो ऐसा लगता है जैसे पूरा गांव बस गया हो। दिनभर धूप रहने तक ये मगरमच्छ बाहर ही रहते हैं। ये कई बार 10 से 12 के झुंड में भी देखे गए हैं।
दोपहर होते ही मगरमच्छ पानी से बाहर आकर दिनभर सुसताते हैं।
एक दर्जन से ज्यादा गांवों में खतरा
हाथीखेड़ा गांव वार्ड 9 में आता है। कोटा के चंद्रलोई नदी के 16 किलोमीटर एरिया के किनारे 15 से ज्यादा गांव हैं। सभी में बड़ी संख्या में मगरमच्छ हैं। गांवों के 35 हजार से ज्यादा लोगों की जिंदगी हर वक्त खौफ में गुजरती है। कुछ महीने पहले ही मंदानिया गांव में दो लोगों पर मगर हमला कर चुके हैं। गांव के ही शख्स ने बताया कि मगरमच्छों के खौफ से लोगों ने नदी के आस-पास जाना ही बंद कर दिया है। हर वक्त डर बना रहता है कि कब, कहां, किसे मगरमच्छ अपने जबड़े में पकड़ ले। नदी में पानी पीने के लिए आने वाले मवेशियों को भी ये शिकार बना लेते हैं।
बारिश के समय आ जाते हैं आबादी में
बारिश के दिनों में यहां खतरा ज्यादा होता है क्योंकि पानी का स्तर काफी बढ़ जाता है और खेतों तक भी पहुंच जाता है। ऐसे में मगरमच्छ कई बार गांव में भी घुस चुके हैं। बारिश के समय लोगों का खतरा ज्यादा बढ़ जाता है। जल स्तर बढ़ने से ये मगरमच्छ आबादी में घुस आते हैं। कई बार इन मगरमच्छों को पकड़ा गया है। चन्द्रलोई नदी मंदरगढ़ की पहाड़ियों से निकलती है और एक दर्जन गांवों के किनारे से होती हुई चंबल नदी में मिल जाती है।
कई बार मगरमच्छ के छिपे होने का पता नहीं चलता। ऐसे में मवेशी इनके शिकार बन जाते हैं।
रेंजर कुंदन सिंह ने बताया कि अक्टूबर से लेकर अब तक करीब 25 मगरमच्छ रेस्क्यू किए जा चुके हैं। ये सभी कोटा शहर की आबादी में नदी से होते हुए लहरों के जरिए पहुंच गए। साल भर के आंकड़ों की बात की जाए तो 66 से ज्यादा है। उन्होंने बताया कि बारिश के समय शहरी आबादी में इनके आने की संख्या ज्यादा हो जाती है। हालांकि नदी के किनारे बसे हुए गांवों में आए दिन घुस जाते हैं। पिछले 1 साल में चंद्रलोई नदी किनारे बसे गांवों में करीब एक दर्जन हादसे हुए हैं। ग्रामीणों के अनुसार इनमें पशुओं पर हमला और इंसान पर हमला शामिल है। हालांकि वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार 3-4 हादसे ही रिपोर्ट है।
मगरमच्छों की बढ़ती आबादी को डायवर्ट करने की जरूरत
विभाग के रेंजर कुंदन सिंह ने बताया कि नदी किनारे स्थित खेतों में ज्यादा खतरा रहता है। जहां पर लोग काम करने जाते हैं। बचाव के लिए ग्रामीण या तो सुबह जल्दी या फिर शाम के समय खेतों में जाते हैं। फिर भी डर बना रहता है। शहरी आबादी में मगरमच्छों को रोकने के लिए इन्हें डाइवर्ट करना होगा। नदी के किनारे कई गांव बसे हुए हैं। वहां मगरमच्छ न जाए इसके लिए अगर फेंसिंग भी की जाती है तो यह स्थानीय स्तर पर संभव नहीं है। मगरमच्छों को नदी में ही आगे ऐसी जगह डाइवर्ट करना होगा जहां उन्हें खाने-पीने से लेकर प्रजनन तक की सुविधा हो, जगह अनुकूल हो। यह सरकार के स्तर का काम है।