रूस और यूक्रेन के बीच भीषण जंग में फंसे भारतीय स्टूडेंट्स यूक्रेन में इंडियन एम्बेसी के अधिकारियों के गैरजिम्मेदाराना रवैये को जीवनभर नहीं भूल पाएंगे। स्टूडेंट्स का कहना है कि भारत सरकार ने समय रहते सक्रियता न दिखाई होती तो एम्बेसी के भरोसे तो वे माइनस 3 डिग्री टेम्प्रेचर में अब तक बर्फ बन चुके होते। उन्होंने सरकार से ऐसे अधिकारियों पर एक्शन लेने की मांग की है।
भास्कर ने यूक्रेन में कड़ाके की ठंड और बमों- मिसाइलों के हमले से बचकर भारत लौटे कुछ स्टूडेंट्स से बात की। आप भी पढ़िए उनकी रोंगटे खड़े कर देनेवाली आपबीती…
कोई अरेंजमेंट नहीं, बस कह दिया- रेलवे स्टेशन पहुंचें
यूक्रेन में इंडियन एम्बेसी ने 28 फरवरी को एक नोटिस जारी किया, जिसमें लिखा था- सभी इंडियन स्टूडेंट्स को सलाह दी जाती है कि वे आज भारत लौटने के लिए बॉर्डर पर पहुंचें। यूक्रेन सरकार ने स्पेशल ट्रेनों की व्यवस्था की है।
कीव से 900 किलोमीटर का सफर तय कर रोमानिया बॉर्डर पहुंचीं मेडिकल यूनिवर्सिटी की सेकेंड ईयर की छात्रा अवंतिका कहती हैं कि नोटिस में यह नहीं बताया गया कि हम मिसाइलों के बीच रेलवे स्टेशन कैसे पहुंचे?
नोटिस के बाद हमने कई फोन एम्बेसी को लगाए, लेकिन वहां से कोई रिस्पॉन्स नहीं मिला। वॉट्सऐप पर हम जो मैसेज भेज रहे थे, वे पढ़े तो जा रहे थे, लेकिन उनका जवाब नहीं दिया जा रहा था। रिस्क लेकर हम जैसे-तैसे रेलवे स्टेशन तक पहुंचे, वहां से दो ट्रेन बदलकर लवीव तक पहुंचे।
ट्रेनों में ठूंसे हुए हम लवीव पहुंचे। कीव से करीब 450 किलोमीटर का 5- 6 घंटे का सफर हमने खड़े होकर तय किया। जितने लोग बैठे थे, उससे तीन गुना लोग खड़े थे। ट्रेन में भीड़ की हालत ये थी कि टॉयलेट सीट्स पर भी खड़े होकर स्टूडेंट्स ने ये सफर किया। हमसे कहा गया था कि लवीव में इंडियन एम्बेसी के कैंप लगे हैं, वहां से बॉर्डर तक बसों के जरिए हमें एम्बेसी पहुंचाया जाएगा।
मेडिकल यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स के लिए बसों के बेहद कम इंतजाम थे। उन्हें घंटों इंतजार करना पड़ा और खड़े होकर ज्यादातर सफर करना पड़ा।
लवीव पहुंचे तो इंडियन एम्बेसी ने हाथ खड़े कर दिए
लवीव के हालात देखकर हमारे पैरों तले जमीन खिसक गई। यहां आकर हमें पता चला हमारे लिए यहां कुछ है ही नहीं। न बॉर्डर तक पहुंचने के लिए बस और न ही खाने-पीने का इंतजाम। कैंप के हालात ये थे कि उसमें हम ठीक से खड़े भी नहीं हो सकते थे। यहां हमें रात भी गुजारनी थी। कंबल, मैट्रेसेस कुछ भी नहीं थे।
अवंतिका बात करते-करते कहती हैं, “मैं आपको वीडियो भेजती हूं, आपको समझ में आ जाएगा कि इंडियन एम्बेसी आखिर हमारे साथ कर क्या रही है? इतनी भी जगह नहीं है कि कैंप में हम ठीक से बैठ सकें।”
सर्कुलर में जिन अफसरों के नाम और नंबर, उन पर एक्शन ले सरकार
कीव मेडिकल यूनिवर्सिटी की एक छात्रा ने वॉट्सऐप कॉल पर जवाब दिया, 'हम भारतीय स्टूडेंट्स हैं। क्या हमें सुरक्षित निकालना एम्बेसी की जिम्मेदारी नहीं है?
एम्बेसी का काम क्या सिर्फ सर्कुलर जारी करना होता है, युद्ध जैसे हालात में मदद करना नहीं? स्टूडेंट्स को उनके हाल पर छोड़ दिया गया। अफसरों ने मदद के नाम पर नोटिस जारी कर हाथ झाड़ लिए।'
यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई करने गई इस छात्रा ने नाम न छापने की रिक्वेस्ट की। उसे डर था कि कहीं वह निशाने पर न आ जाए! उसने कहा, मेरे नाम से ज्यादा जरूरी यह सवाल है जो मैं पूछ रही हूं।
यूक्रेन में इंडियन एम्बेसी के रोल पर क्या पूछताछ होगी? भारत सरकार को उन अधिकारियों को तलब करना चाहिए, जिनके नंबर हमारी मदद के लिए सर्कुलर में छापे गए थे। जिन्हें हमने सैकड़ों मैसेज भेजे, फोन किए, लेकिन हमें उनके रिप्लाई कभी नहीं मिले।
वॉट्सऐप कॉल पर मौजूद एक स्टूडेंट ने फोन दिखाते हुए कहा- 'मैंने इस अधिकारी को सैकड़ों कॉल और मैसेज किए, लेकिन किसी का जवाब नहीं मिला। हां, सारे मैसेज पढ़े जरूर जा रहे थे।' वह पूछती है कि एम्बेसी का क्या रोल होता है?
जमा देने वाली ठंड में स्टूडेंट्स को उनके हाल पर छोड़ दिया गया।
हम रोमानिया बॉर्डर पहुंचे, यहां समझ आई सुकून की कीमत
कीव से निकलने से लेकर बॉर्डर तक करीब 900 किलोमीटर के सफर के बीच मेडिकल स्टूडेंट अवंतिका ने हर पड़ाव पर दैनिक भास्कर से चैट की, वीडियोज भेजे। बॉर्डर पर पहुंचने के बाद पहली बार उनकी आवाज में सुकून था।
25 फरवरी से अब तक तक उनसे रोज ही बातचीत हुई और उनकी आवाज में गहरी नाराजगी और हताशा साफ दिखी। वे बस इतना ही कहतीं, दुआ कीजिए हम घर पहुंच जाएं। रोमानियन बॉर्डर पहुंचने के बाद अवंतिका की आवाज में पहली बार उम्मीद दिखी।
उन्होंने कहा, 'अब हम घर पहुंच जाएंगे।' फोन काटने के बाद उनका मैसेज आया, 'इतने दिनों बाद पहली बार कुछ अच्छा मिला। यहां चौबीसों घंटे फ्रेश फूड है। मैट्रेस हैं, कंबल हैं। शेल्टर है। सबसे बड़ी चीज यहां सुकून है। लग रहा आज नींद आ जाएगी।'
अब आइए आपको इंफोग्राफिक से बताते हैं किन देशों से यूक्रेन को मिल रही है सैन्य और मानवीय मदद