श्रीनगर में G-20 के टूरिज्म वर्किंग ग्रुप की मीटिंग हुई। इसमें चीन, तुर्की और सऊदी अरब ने हिस्सा नहीं लिया। भारत ने जिन 9 विशेष मेहमानों को इनवाइट किया था, उनमें से ओमान और इजिप्ट शामिल नहीं हुए। पाकिस्तानी मीडिया इसे भारत के लिए झटका और पाक की डिप्लोमेटिक जीत बता रहा है, लेकिन क्या वाकई ऐसा है? भास्कर एक्सप्लेनर में जानेंगे...
श्रीनगर में G-20 की बैठक से भारत क्या हासिल करना चाहता है?
अनुच्छेद 370 हटने के बाद यह कश्मीर में होने वाला पहला अंतरराष्ट्रीय इवेंट था। इस कार्यक्रम के सफल आयोजन से पूरी दुनिया में कश्मीर के हालात सामान्य होने का संदेश जाता।
कुछ देशों के बायकॉट पर PMO राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि, ‘सभी बैठकों में सारे लोग नहीं आते। यह निर्भर इस पर करता है कि किसका किस चीज में हित है। कुछ देशों ने प्राइवेट ट्रेड डेलिगेशन भेजे हैं, क्योंकि टूरिज्म आमतौर पर प्राइवेट सेक्टर द्वारा चलाया जाता है।’
चीन का शामिल न होना पहले से तय था
चीन ने कहा, ‘हम कश्मीर को विवादग्रस्त क्षेत्र मानते हैं। ऐसे में हम वहां होने वाले इस कार्यक्रम में हिस्सा नहीं लेंगे।’
पुराने जम्मू-कश्मीर और आज के लेह के एक इलाके अक्साई चिन पर चीन का कब्जा है। पाकिस्तान भी शाक्शगाम घाटी को चीन के हवाले कर चुका है, जिस पर भारत अपना दावा करता है। कुल मिलाकर चीन का हित कश्मीर में हालात सामान्य ना दिखाने में है, जिससे मुद्दे का अंतर-राष्ट्रीयकरण करने में मदद मिलेगी। पाकिस्तान का भी यही स्टैंड है।
हालांकि चीन को छोड़कर बैठक में हिस्सा ना लेने वाले किसी भी देश ने शामिल ना होने की वजह साफ तौर पर कश्मीर नहीं कहा है।
23 मई, 2023 को श्रीनगर के एसकेआईसीसी सम्मेलन केंद्र में जी-20 पर्यटन बैठक में हिस्सा लेते विदेशी डेलीगेट्स।
चीन के अलावा बाकी 4 देश बैठक में क्यों शामिल नहीं हुए?
तुर्की, सऊदी अरब, इजिप्ट या ओमान जैसे देशों के फैसले के पीछे की वजह जानने से पहले हमें मुस्लिम देशों की राजनीति और कश्मीर पर उनके स्टैंड को समझना जरूरी है। 57 देशों का समूह ओआईसी, यूनाइटेड नेशंस के बाद दूसरा सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय संगठन है।
ओआईसी की बात यहां इसलिए है कि इस संगठन का इतिहास कश्मीर मुद्दे पर खुलकर भारत का विरोध रहा है। संगठन का मानना है कि ‘कश्मीर एक विवादित क्षेत्र है और यूनाइटेड नेशंस के प्रावधानों के मुताबिक इसका हल होना चाहिए।’
2020 में ओआईसी ने कश्मीर पर रेजोल्यूशन पास करते हुए कहा था, ‘अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त विवादित क्षेत्र- आईओके में स्थिति को बदलने के लिए, भारत द्वारा उठाए गए गैरकानूनी और एकतरफा कदम को ओआईसी खारिज करता है।’
अंतरराष्ट्रीय मामलों के एक्सपर्ट प्रकाश नंदा कहते हैं, ‘ओआईसी का कश्मीर मामलों पर स्टैंड ज्यादातर सदस्यों के लिए एक हिस्टोरिकल बैगेज है। जिसके चलते उन्हें मजबूरन ऐसा स्टैंड लेना पड़ता है। इसका मतलब यह नहीं है कि व्यक्तिगत आधार पर इन देशों से भारत के संबंध खराब हो रहे हैं।’
तुर्की के साथ बेहतर हो रहे थे रिश्ते, क्या अब संबंधों में पड़ सकता है असर?
भले ही तुर्की भारत का कश्मीर मुद्दे पर विरोधी रहा है, पर हाल में जब वहां भूकंप आया था, तब भारत सबसे पहले मदद भेजने वाले देशों में से था। “ऑपरेशन दोस्त” के तहत भारत ने ना केवल दो टन मदद, बल्कि 100 लोगों का सबसे बड़ा रेस्क्यू ग्रुप भी भेजा था।
उम्मीद लगाई जा रही थी कि भारत की कश्मीर पॉलिसी पर कठोर रवैया रखने वाले तुर्की के रुख में कुछ बदलाव आएगा। हालांकि तुर्की से इतनी जल्दी यू-टर्न की उम्मीद भी नहीं है। ऐसा भी नहीं है कि तुर्की के इस कदम से भारत के साथ सुधरते रिश्ते डिरेल हो जाएंगे।
एक्सपर्ट प्रकाश नंदा आगे कहते हैं, ‘तुर्की, सऊदी अरब जैसे देशों के साथ रिश्तों में G-20 में ना आने के चलते कोई गिरावट नहीं आएगी। उनके लिए फिलहाल इस हिस्टोरिकल बैगेज को दूर कर पाना मुश्किल है। भले ही सऊदी अरब के साथ हमारे रिश्ते बहुत मजबूत स्थिति में हैं। तुर्की के साथ भी सुधर ही रहे हैं। उन्होंने निश्चित तौर पर कश्मीर में ना आ पाने की यह वजह भारत को अनौपचारिक तौर पर बताई होगी।’
क्या श्रीनगर में G-20 की वजह से डिरेल हो जाएंगे इजिप्ट, ओमान और सऊदी से भारत के रिश्ते?
भारत और इजिप्ट के बीच संबंध नेहरू-नासिर के जमाने से शानदार रहे हैं। कमोबेश यह आज भी बेहतरीन हैं। हाल की इन घटनाओं पर नजर डालिए-
- गणतंत्र दिवस पर इजिप्ट के राष्ट्रपति अल सीसी मुख्य अतिथि थे।
- दोनों देश अपने संबंधों को अपग्रेड करते हुए “स्ट्रैटजिक पार्टनरशिप” का दर्जा दे चुके हैं।
- हाल में सेना प्रमुख मनोज पांडे ने इजिप्ट का दौरा भी किया था।
- मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो इजिप्ट भारत से 70 तेजस लड़ाकू विमान खरीदने की योजना बना रहा है। भारत इसके लिए वहां प्रोडक्शन यूनिट भी लगाने पर राजी है।
इसी तरह सऊदी अरब से भी भारत के बेहद गहरे रिश्ते हैं। यहां तक कि कश्मीर में अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद भी ओआईसी (ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन) के अध्यक्ष सऊदी अरब ने पाकिस्तान के जोरदार दबाव के बावजूद तुरंत बैठक नहीं बुलाई। बदले में पाकिस्तान ने ईरान, मलेशिया और तुर्की जैसे प्रतिद्वंदी देशों से मदद लेने की धमकी दी। 2020 में जाकर यह बैठक आयोजित हो पाई।
ओमान के साथ भी भारत के ऐतिहासिक व्यापारिक रिश्तों में हाल में बहुत ग्रोथ हुई है। ओमान में भारतीय डॉयस्पोरा भी काफी प्रभावी है और हजारों की संख्या में वहां प्रवासी भारतीय रहते हैं। ओमान जैसा छोटा देश, G-20 की बैठक का निमंत्रण पाकर हाल तक काफी पॉजिटिव रुख अपना रहा था।
एक बार फिर यहां मुस्लिम देशों की वह राजनीति आड़े आ जाती है, जिसमें कश्मीर मुद्दे पर एक रिजिड स्टैंड ले लिया गया है। इस स्टैंड का आधार कम्यूनल है। जबकि कश्मीर मुद्दा एक जियोग्राफिकल समस्या है।
ऐसे में सऊदी अरब और इजिप्ट के साथ रिश्तों में अब भी सुधार की इतनी गुंजाइश तो है कि वे यूएई की तरह मुस्लिम राजनीति को एक किनारे कर भारत के पक्ष में खड़े हो सकें। ओमान का स्टैंड भी ओआईसी के हिस्टोरिकल बैगेज और पियर प्रेशर के चलते ही लिया हुआ ज्यादा नजर आता है, जहां बड़े मुस्लिम देशों के रास्ते को अपनाया गया है।
पाकिस्तान जैसे देश जहां इस तरह के बॉयकॉट को खुद की जीत की तरह देख रहे हैं, वहीं असलियत इससे अलग नजर आती है। जैसा ऊपर बताया कि चीन का ना आना तो सबको मालूम ही था, जबकि ओआईसी के मेंबर्स का भी अपने ऐतिहासिक स्टैंड से बदलना फिलहाल के हिसाब से मुमकिन नहीं था। अहम बात यह है कि चीन को छोड़कर इनमें से किसी ने भी खुलकर भारत का विरोध नहीं किया है, वहीं 24 देशों को कश्मीर में साथ लाकर भारत अपने स्ट्रैटजिक टार्गेट्स को भी पाता दिख रहा है।