राजस्थान में कांग्रेस और पायलट गुट के बीच जिस तरह की लड़ाई छिड़ी हुई है उसमें मुख्यमंत्री के लिए विधानसभा चुनाव प्रतिष्ठा का सवाल बना हुआ है। वे किसी भी कीमत पर सरकार रिपीट कराने की कोशिश में जुटे हैं।
इसके लिए मुख्यमंत्री गहलोत ने कर्नाटक में कांग्रेस का चुनावी कैंपेन संभालने वाली टीम काे ही प्रचार और रणनीति बनाने की जिम्मेदारी दी है।
ये टीम ही महंगाई राहत कैंप जैसे अलग-अलग प्रयोग करने में जुटी है। इसके लिए राज्य सरकार करीब 150 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च करने की तैयारी में है। कर्नाटक वाली इस टीम के मध्य प्रदेश कांग्रेस के साथ भी जुड़ने की चर्चा है।
उधर, सचिन पायलट के लिए नरेंद्र मोदी और भाजपा का कैंपेन संभाल चुके राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर के मोर्चा संभालने की चर्चा है।
राजस्थान में ऐसा पहली बार हो रहा है, जब राजनीतिक पार्टियों के लिए पेशेवर टीमें काम कर रही हों। रणनीतिकारों की प्लानिंग अभी गुप्त है, लेकिन कई तरह के सर्वे, कैंपेनिंग और स्ट्रैटजी पर काम चल रहा है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लिए यह टीम कैसे काम कर रही है? क्या सचिन पायलट की पदयात्रा से लेकर उनकी हर कैंपेनिंग प्रशांत किशोर संभाल रहे हैं?
पढ़िए, भास्कर की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट में….
कांग्रेस को राजस्थान में क्यों पड़ी अरोड़ा और सुनील कानुगोलू की जरूरत
कांग्रेस ने पिछले एक दशक में केवल राजस्थान, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, पंजाब और मध्यप्रदेश में जीत हासिल की। इनमें सबसे बड़ी जीत कर्नाटक में हाल ही हुई है। कर्नाटक देश के सबसे बड़े पांच राज्यों में शामिल है। इस जीत के पीछे कांग्रेस की अपनी मेहनत और भाजपा के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी तो है ही, साथ ही पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष डी. के. शिवकुमार के साथ रहे सुनील कानुगोलू और नरेश अरोड़ा की भूमिका भी महत्वपूर्ण मानी गई है।
कर्नाटक में कांग्रेस के कई सारे कैंपेन नरेश अरोड़ा और सुनील कानुगोलू ने ही डिजाइन किए थे। चुनाव से पहले कांग्रेस का 'PayCM' कैंपेन काफी चर्चा में रहा था।
अरोड़ा चूंकि राजस्थान में बजट थीम और महंगाई राहत कैंप की प्लानिंग कर चुके हैं, जिसे सीएम गहलोत ने बहुत पसंद भी किया है। वे स्वयं इन कैंपों में जा रहे हैं। ऐसे में कर्नाटक के नतीजे और राष्ट्रीय स्तर पर विचार विमर्श के बाद यह फैसला किया गया है कि अरोड़ा की टीम छह महीने बाद होने वाले राजस्थान विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के लिए रणनीति बनाएगी।
राजस्थान की बजट थीम और इसका प्रचार-प्रसार का काम अरोड़ा की टीम ने ही किया था।
करीब तीन महीने पहले जब सीएम गहलोत ने बजट पेश किया था, तब भी पहली बार ऐसा हुआ था कि बजट की ब्रांडिंग की गई थी। उनकी कंपनी डिजाइन बॉक्स्ड ने राजस्थान सरकार के बजट की थीम (बचत, राहत और बढ़त) तैयार करने के बाद हाल ही महंगाई राहत कैंप का आयोजन किया है।
जल्द ही राजस्थान के लिए बनाएंगे रणनीति : नरेश अरोड़ा
डिजाजन बॉक्स्ड के निदेशक नरेश अरोड़ा ने भास्कर को बताया कि हाल ही कर्नाटक की जीत से हम सभी लोग उत्साहित हैं। फिलहाल हम दिल्ली में पार्टी के साथ विभिन्न स्तरों पर बातचीत कर रहे हैं। हम राजस्थान में भी रणनीतिक सलाहकार हैं। सरकार के साथ मिल कर हम काम कर रहे हैं। कर्नाटक में कांग्रेस को जो सफलता मिली है, वैसी ही राजस्थान में भी दोहराने का प्रयास है।
राहत, योद्धा और नए वादे : इन तीन तरीकों से बनेगी मुख्यमंत्री गहलोत की इमेज
सीएम गहलोत को आगामी चुनावों में कुछ इस तरह से पेश किया जाएगा कि वे जनता को महंगाई से राहत देने वाले मुख्यमंत्री हैं। केन्द्र की ताकतवर भाजपा सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी-अमित शाह की जोड़ी के सामने एक राजनीतिक योद्धा हैं। साथ ही राहुल गांधी-प्रियंका गांधी के साथ नए वादों की गारंटी भी कांग्रेस की तरफ से दी जाएगी।
पहली इमेज : 4 करोड़ 70 लाख लोगों को महंगाई से राहत देने वाले मुख्यमंत्री
प्रदेश में करीब 6 करोड़ मतदाता हैं। इनमें से 4 करोड़ 63 लाख लोगों के राहत कार्ड (विभिन्न योजनाओं के) सरकार द्वारा लगाए गए शिविरों में बन चुके हैं। यह कार्ड एक करोड़ 3 लाख (1.03 करोड़) लोगों के नाम पर बने हैं। अब इसी राहत पर आधारित एक ऐसी इमेज बनाई जाएगी जिसमें सीएम गहलोत को इन लोगों को केन्द्र सरकार की महंगाई की मार से राहत देने वाला सीएम बताया जाएगा।
महंगाई राहत कैंप के दौरान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत आमजन से भी मिल रहे है और उनसे इन कैंप को लेकर फीडबैक ले रहे हैं।
दूसरी इमेज : ताकतवर राजनीतिक योद्धा का रूप
कांग्रेस ने हमेशा केंद्र की भाजपा सरकार पर विपक्षी पार्टियों की सरकारें गिराने का आरोप लगाया है। कर्नाटक, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र में कांग्रेस की सरकारें गिरीं, लेकिन राजस्थान ही ऐसा राज्य है जहां सियासी संकट आने के बावजूद गहलोत सरकार बचाने में कामयाब रहे।
खुद सीएम गहलोत केन्द्रीय मंत्री अमित शाह, गजेन्द्र सिंह शेखावत सहित पायलट पर उनकी सरकार गिराने के आरोप लगाते रहे हैं।
सीएम गहलोत को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के समक्ष एक ताकतवर योद्धा के रूप में पेश किया जाएगा।
कर्नाटक में चुनावी कैंपेन के दौरान सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के साथ नरेश अरोड़ा।
तीसरी इमेज : कर्नाटक की तर्ज पर नए वादों की गारंटी के साथ मैदान में उतरेगी कांग्रेस
राजस्थान में कांग्रेस सरकार ने बहुत सी जन कल्याणकारी योजनाएं चला रखी हैं, लेकिन इन स्कीम को अगले चुनावों में कैंपेन का मुख्य हिस्सा नहीं बनाया जाएगा।
एक खास रणनीति के तहत पार्टी का मानना है कि जो कर चुके हैं, उसका ढोल बजाने की बजाए आगे जो करना है, उसका वादा किया जाएगा। यही फॉर्मूला हाल ही में कर्नाटक में भी अपनाया गया।
वहां कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने वादों को अपनी गारंटी देते हुए निभाने के दावे किए थे। सूत्रों के अनुसार कर्नाटक की तर्ज पर राजस्थान में प्रत्येक गृहणि को 2000 रुपए मासिक देने और 200 यूनिट तक बिजली मुफ्त देने का वादा चुनावों में किया जाएगा, जिसे पूरा करने की गारंटी राहुल गांधी, प्रियंका गांधी के साथ खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत करेंगे। इसके आर्थिक पक्ष पर इन दिनों कांग्रेस, सरकार व रणनीतिकारों के बीच उच्च स्तर पर मंथन किया जा रहा है।
पेशेवर रणनीतिकारों का साथ जरूरी : मोहन प्रकाश
वर्तमान में कर्नाटक में कांग्रेस की स्क्रीनिंग कमेटी के चेयरमैन मोहन प्रकाश ने भास्कर को बताया कि अब आधुनिक जमाना है। संचार के हजारों तरीके हो गए हैं। लोगों तक अपनी बात पहुंचानी है, तो पेशेवर रणनीतिकारों की जरूरत कांग्रेस को भी है। कर्नाटक में हमारा प्रयोग सही रहा है। राजस्थान में महंगाई राहत शिविर भी सफल हो रहे हैं। हम इसी राहत को लेकर जनता के बीच जाएंगे। रणनीतिकार इसकी तैयारी कर रहे हैं।
क्या सचिन पायलट के पीछे प्रशांत किशोर का दिमाग?
वर्ष 2012 में नरेंद्र मोदी, 2017 में कैप्टन अमरिन्दर सिंह, 2019 में जगनमोहन रेड्डी, 2015 में नितीश कुमार, 2015 में अरविंद केजरीवाल, 2021 में स्टालिन और 2021 में ममता बनर्जी के चुनाव रणनीतिकार रह चुके प्रशांत किशोर की गिनती देश के दिग्गज चुनाव रणनीतिकारों में होती है। वे इन दिनों बिहार में जन सुराज पद यात्रा निकाल रहे हैं। उनकी संस्था आई-पेक राजस्थान में भी काम कर रही है और यहां युवाओं को राजनीति ज्वॉइन करने का आह्वान कर रही है।
किशोर की तरफ से कहा जा रहा है कि पॉलिटिक्स ज्वॉइन करने के इच्छुक युवाओं को स्वयं वे (किशोर) प्रशिक्षण देंगे। सूत्रों का कहना है कि ऐसे उत्साही युवाओं की एक पूरी टीम राजस्थान में तैयार की जा रही है, जिन्हें पायलट के साथ जोड़ा जाएगा। इसके लिए युवाओं से ऑनलाइन एक फॉर्म भरवाकर उन्हें जोड़ा जा रहा है। इसे यूथ इन पॉलिटिक्स कार्यक्रम (वायआईपी) नाम दिया गया है। इन फॉर्म में युवाओं के नाम-पते, शिक्षा, रूचि, कार्यक्षेत्र आदि की सम्पूर्ण जानकारी ली जा रही है।
प्रशांत किशोर की संस्था राजस्थान में कई पॉलिटिकल इवेंट और सर्वे में जुटी है। माना जा रहा है, उनकी टीम ही सचिन पायलट गुट को सुझाव दे रही है।
हाल ही जब राजस्थान में पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट ने अपनी ही पार्टी की सरकार के खिलाफ तीन मांगों को लेकर आरपीएससी (अजमेर) से राजधानी जयपुर तक पद यात्रा निकाली और उससे पहले एक दिवसीय अनशन किया था तो देश भर के मीडिया में पायलट के इस कदम के पीछे प्रशांत किशोर की रणनीति को ही बताया गया है। हालांकि पायलट ने कभी किसी मंच पर इसकी पुष्टि नहीं की।
आरपीएससी (अजमेर) में पायलट की सभा के मुख्य आयोजक रहे कांग्रेस नेता महेन्द्र सिंह रलावता ने भास्कर को बताया कि पायलट की पद यात्रा युवाओं को न्याय दिलाने के लिए है। वे चाहते हैं कि जिन वादों को करने के बाद 2018 में पार्टी की राजस्थान में सरकार बनी उन वादों को पार्टी पूरा करे। तब कांग्रेस ने भाजपा के भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई करने की बात कही थी, तो कार्रवाई होनी भी चाहिए। यह पद यात्रा और अनशन उनकी स्वयं की सोच और रणनीति है।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट...
अब मार्केट तय करता है कि किस राजनीतिक पार्टी की क्या रणनीति होगी
बीबीसी के पॉलिटिकल एडिटर और पूर्व सूचना आयुक्त रहे नारायण बारेठ एजेंसियों को हायर करने और उन पर जनता के पैसे लुटाने को सैद्दांतिक रूप से गलत मानते हैं। उनका कहना है कि राजनीतिक पार्टियों द्वारा सर्वे, प्लानिंग, स्ट्रेटेजिक एजेन्सियों और रणनीतिकारों को हायर करने का काम गुजरात में भाजपा ने शुरू किया था। अब सभी कर रहे हैं।
अब मार्केट की ताकतें यह तय करती हैं कि किस राजनीतिक पार्टी या राजनेता को क्या, कैसे और कब कोई फैसला करना है। महात्मा गांधी ने दुनिया की सबसे बड़ी ताकत अंग्रेजों को हराया और भगाया था तो उन्होंने इस तरह की एजेन्सियों की मदद नहीं ली थी। इस तरह के राजनीतिक रणनीतिकारों से परिणामों पर विशेष फर्क नहीं पड़ता, अंतत: सुशासन ही महत्वपूर्ण होता है।
एजेंसियों से जनता के दिल पर राज संभव नहीं : वेद माथुर
राजनीतिक टिप्पणीकार व लेखक वेद माथुर का कहना है कि राजनीति रणनीति बनाना भी एक बिजनेस है। कमजोर राजनेताओं व उनकी पार्टियों को इसकी जरूरत पड़ती है। इंदिरा, चंद्रशेखर, वाजपेयी जैसे नेताओं को इनकी जरूरत कभी नहीं थी।
मूल रूप से अगर कोई पार्टी सत्ता में है तो सुशासन और विपक्ष में तो कैसे वो सत्ता की कमजोरियों को उजागर करे यही महत्वपूर्ण है। इस तरह की एजेंसियां-कंपनियां आपका प्रचार-प्रसार कर सकती है, लेकिन जनता के दिलो-दिमाग में तो आप केवल अपने चरित्र, जुबान और नीतियों से ही घुस सकते हैं।