'शहीद दिवस' कब मनाया जाता है? 30 जनवरी - महात्मा गांधी की पुण्यतिथि के दिन। अधिकतर लोग केवल इसी 'शहीद दिवस' को जानते हैं।
लेकिन देश के लिए राजगुरु, सुखदेव और भगतसिंह के शहीद होने की याद में 'शहीद दिवस', आज यानी 'मार्च 23' को भी मनाया जाता है। आज जानेंगे हमारे हिस्से के सबक।
करिअर फंडा में स्वागत!
मार्च 23, 1931 – अविभाजित भारत में गर्मियों की शुरुआत - आज के भारत और पाकिस्तान को जोड़ने वाली कई चीजों में से एक रावी नदी, इसी नदी के किनारे बसे ऐतिहासिक शहर लाहौर का बाहरी इलाका। 1841 में पंजाब के तत्कालीन गवर्नर रॉबर्ट मोंटगोमेरी के कार्यकाल में बनी और इसीलिए 'मोंटगोमेरी' जेल के नाम से प्रसिद्ध 'लाहौर की सेंट्रल जेल'।
फांसी का दिन
सोमवार, शाम का वक्त, सूरज डूब रहा था। दिन-भर चहल पहल से भरी रहने वाली लाहौर की सड़कें और गलियों में भगतसिंह और साथियों को 24 मार्च को फांसी होने वाली है यह खबर फैल चुकी थी। लाहौर सेंट्रल जेल में घड़ी की टिक-टिक के साथ समय गुजर रहा था। तीन जोड़ी, निडर आंखें, शहीद होने को तैयार, तेईस/चौबीस साल के लड़के। और फिर ‘इंकलाब जिंदाबाद’ और ‘ब्रिटिश साम्राज्यवाद मुर्दाबाद’ के नारे, और कुछ सांसों का रुक जाना। यह अंत नहीं था। शुरुआत थी भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के अंत की।
लाहौर सेंट्रल जेल में होने वाली मार्च 23, 1931 की यह घटनाएं भारतीयों को सदमा और अविश्वास देने वाली थीं। ब्रिटिश शासन ने लोगों के विरोध को देखते हुए निर्धारित दिन से एक दिन पहले ही क्रांतिकारियों को कानूनी और मानवीय परंपराओं की अवहेलना करते हुए फांसी दे दी। उनके शव उनके परिवारों को नहीं सौंपे गए बल्कि चोरी-छिपे सतलुज के किनारे ले जाकर अंतिम संस्कार किया गया और फिर अस्थियों को नदी में बहा दिया गया।
जिस दिन भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी हुई उस दिन के ट्रिब्यून अखबार का फ्रंट पेज।
अमर शहीदों की उत्पीड़न के खिलाफ लड़ी गई लड़ाई ने लाखों भारतीयों को स्वतंत्रता के आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। उनका निःस्वार्थ बलिदान और साहस हम सभी के लिए एक प्रेरणा है, खासकर उनके लिए जो प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और अपने पेशेवर करिअर को आगे बढ़ा रहे हैं।
उनका जीवन हमें कई महत्वपूर्ण सबक सिखाता है जो हमारी शैक्षणिक और व्यावसायिक गतिविधियों में हमारी मदद कर सकता है।
अमर शहीदों के जीवन से 5 बड़े लेसंस
1) चरित्र की ताकत (Power of character)
जब 8 अप्रैल, 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली में बम फेंके, तो वे दोनों वहां से भागे नहीं, बल्कि शान से खड़े रहे। उन्होंने कहा कि हम बंद कानों को खोलना चाहते हैं, और क्रांति का सन्देश देना चाहते हैं। ऐसा करने के लिए हिम्मत लगती है। गिरफ्तारी के बाद दोनों को ‘ट्रांसपोर्टेशन फॉर लाइफ’ दंड दिया गया।
लेसन - चरित्र की ताकत से हमें डर से मुक्ति मिल जाती है। अपने करिअर में भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी किसी के दबाव में आकर न करें।
2) भगत सिंह की रीडिंग हैबिट्स (Reading habits of Bhagat Singh)
23 वर्षीय क्रन्तिकारी भगतसिंह को साहित्य पढ़ने का बहुत शौक था। लाहौर जेल में उनके साथ रहे शिव वर्मा बताते हैं कि ‘समाजवाद के प्रति उनके मन में एक नरम कोना होने के बावजूद डिकेन्स, अप्टॉन सिंक्लेयर, हॉल केन, विक्टर ह्यूगो, गोर्की, स्टेप्निक, ऑस्कर वाइल्ड और लियोनार्ड एंड्रू उनके पसंदीदा लेखक थे। शायद पढ़ने के कारण ही उनके विचार इतने क्रन्तिकारी और मेच्योर थे कि 23 की उम्र वे अपने घरवालों से कहा करते थे की मैंने आजादी (देश की) से शादी कर ली है।’
लेसन - खूब पढ़िए। अलग-अलग तरह की जनरल किताबें पढ़िए। अपने दिमाग को खुराक दीजिए। रुक मत जाइए।
3) सुखदेव की लीडरशिप स्किल्स (Leadership skills of Sukhdev)
सुखदेव अपने लीडरशिप स्किल्स के लिए जाने जाते थे और विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक कारणों के लिए लोगों को संगठित करने और जुटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। वह एक प्रतिभाशाली वक्ता भी थे और अपने भाषणों से लोगों को प्रेरित करने में सक्षम थे। यह कहते हुए कि ब्रिटिश साम्राज्य को हिला देने वाली साजिश के पीछे उनका ही दिमाग था! लाहौर षडयंत्र केस की FIR में सुखदेव का नाम प्रथम स्थान पर आता है। 25 अभियुक्तों की सूची में भगत सिंह 12वें स्थान पर थे, जबकि राजगुरु 20वें स्थान पर! वास्तव में, सुखदेव 1930 के लाहौर षडयंत्र केस में मुख्य अभियुक्त थे, जिसका शीर्षक ‘क्राऊन बनाम सुखदेव और अन्य’ था!
लेसन - अपने एक्शन्स (कर्मों) की पूरी जिम्मेदारी लीजिए। डरिए मत।
4) भाषाओं और अन्य स्किल्स पर राजगुरु की पकड़ (Rajguru’s skills)
राजगुरु का जन्म पुणे के पास खेड़ में शिवराम हरि राजगुरु के रूप में हुआ था। वे स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ साथ विद्वान भी थे। उन्होंने खेड़ में प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की और बाद में पुणे में न्यू इंग्लिश हाई स्कूल में अध्ययन किया। वे संस्कृत, मराठी और अंग्रेजी सहित विभिन्न विषयों में कुशल थे। वे एक कुशल निशानेबाज थे। उन्हें ‘भगत सिंह की पार्टी का गनमैन’ भी कहा जाता था।
लेसन - अपनी स्किल्स और ज्ञान में लगातार इन्वेस्ट कीजिए।
5) गंभीर सोच और नवाचार (इनोवेशन) (Always innovate)
राजगुरु, भगत सिंह और सुखदेव महत्वपूर्ण विचारक और नवप्रवर्तक थे जिन्होंने पारंपरिक ज्ञान को चुनौती दी और नए विचारों और रणनीतियों के साथ आए। वे सत्ता से सवाल करने, यथास्थिति को चुनौती देने और साहसिक कदम उठाने से नहीं डरते थे। रचनात्मक रूप से सोचने और नया करने की उनकी क्षमता ने उनकी सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भगत सिंह ऑर्गेनाइज्ड रिलिजन को नहीं मानते थे।
लेसन : ये सबक विशेष रूप से उन प्रोफेशनल्स के लिए प्रासंगिक है जो तेजी से बदलते कारोबारी माहौल का सामना कर रहे हैं, क्योंकि ये हमें याद दिलाते हैं कि आधुनिक कार्यस्थल में सफलता के लिए महत्वपूर्ण सोच, नवाचार और अडैप्टेबिलिटी, एजुकेशन, रीडिंग हैबिट्स आवश्यक स्किल्स हैं।
आज का करिअर फंडा है कि सफलता केवल व्यक्तिगत उपलब्धि के बारे में नहीं है, बल्कि दूसरों की सेवा करने और दुनिया पर सकारात्मक प्रभाव डालने के बारे में भी है।
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