महज 15 साल की उम्र में सिर से पिता का साया उठ गया। दुनिया को देखना और समझना शुरू ही किया था कि कंधों पर परिवार का बोझ आ गया। छोटी-मोटी नौकरी के लिए चेन्नई, हैदराबाद और मुंबई की खाक छानी। आखिरकार गांव का रुख किया तो रावल चंद ने खेतों की और खेतों ने उनकी किस्मत बदल दी। म्हारे देस की खेती में आज बात जोधपुर के किसान रावल चंद पंचारिया की।
जोधपुर शहर से करीब 100 किलोमीटर दूर है लोहावट तहसील, जिसमें छोटा सा गांव है नौसर। इस गांव में आप किसी से भी सफेद शकरकंद वाले किसान के बारे में पूछेंगे तो वह आपको रावल चंद का पता बता देगा। जब हम रावल चंद के पास पहुंचे तो उनके संघर्ष की कहानी सुनकर दंग रह गए।
किसान रावल चंद अपने खेतों में ऑर्गेनिक सब्जी भी उगाते हैं। खुद की 30 बीघा जमीन है और 80 बीघा जमीन खेती के लिए ली है। 5 हजार की प्राइवेट जॉब करने वाले रावल चंद अब सिर्फ गोबर से ही 3 लाख तक कमाई कर लेते हैं।
छोटी उम्र में कंधों पर आ गया परिवार का बोझ
रावल चंद ने बताया कि उनके पिता घेवर चंद जोधपुर में ही एक फैक्ट्री में सुपरवाइजर का काम करते थे। 1998 की बात है। एक दिन अचानक पिताजी को अटैक आ गया। महज 42 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। पिता की मौत के बाद परिवार की जिम्मेदारियां मेरे कंधों पर आ गईं। तब गांव के पास ही भीकमकोर की सरकारी स्कूल में क्लास 9वीं में पढ़ रहा था। छोटा भाई भी पढ़ रहा था। मैंने पढ़ाई छोड़ी और नौकरी की तलाश में भटकने लगा।
दुकानों पर सेल्समैन की जॉब की, छोड़कर गांव आ गए
रावल चंद ने बताया- मैं जोधपुर के गुलाब सागर में एक स्टेशनरी की दुकान पर सेल्समैन का काम करने लगा। करीब डेढ़ साल यही करता रहा। इसके बाद चेन्नई और मुंबई में कपड़े की दुकानों पर सेल्समैन का काम किया। 19-20 साल की उम्र में ही बड़ों जैसी समझदारी आ गई थी। पैसा बचाने की बहुत कोशिश करता, लेकिन तीन-चार हजार की नौकरी में कुछ नहीं बचता था। लगने लगा कि नौकरी करके कुछ भी हासिल नहीं कर पाऊंगा। 2002 में मुंबई से 5 हजार की नौकरी छोड़कर अपने गांव नौसर लौट आया।
किसान रावल चंद अपने फार्म हाउस पर सौंफ के खेत में।
विचार आया- खेतों को कौन संभालेगा
गांव में आकर खेतों की हालत देखी। खेत बंजर हो चुके थे। फिर गांव में ही किराए की दुकान लेकर फैंसी, रेडीमेड सामान और स्टेशनरी की दुकान शुरू कर दी। दुकान चल निकली। 2005 में अपने घर के बाहर ही पक्की दुकान बना ली। अब किराने का काम भी करने लगा था। साल 2014 तक यही चलता रहा। अब घर चलाने की चिंता नहीं थी। सब ठीक था। खेती करने का मन शुरू से था। एक दिन बस यूं ही विचार आया कि नौकरी-दुकानदारी कब तक करते रहेंगे, खेतों को कौन संभालेगा।
किसान के लिए जमीन बहुत मायने रखती है। अब खेतों की सुध लेने का वक्त आ गया था। दुकान की जिम्मेदारी छोटे भाई खींवराज को सौंपकर मैं खेती करने लगा। हमारी 30 बीघा जमीन थी। खेतों में मेहनत की। गोबर डाला। घर के लिए सब्जियां, गेहूं, बाजरा, मिर्च और धनिया उगाना शुरू किया। जैविक खाद के इस्तेमाल से खेतों का बंजरपन जाता रहा।
काला गेहूं के खेत में किसान रावल चंद। यह गेहूं 7 हजार रुपए क्विंटल तक बिकता है।
अब 110 बीघा में खेती कर रहा हूं
पंचारिया ने बताया कि आस-पड़ोस के किसान खेत में रसायन व केमिकल का उपयोग करते थे। उस उपज को बाजार में बेच देते और खुद के परिवार के लिए मुझसे जैविक उत्पाद खरीदते थे। इसके बाद डिमांड बढ़ी तो फसलों का रकबा बढ़ा दिया। धीरे-धीरे ग्राहक जुड़ने लगे। पहले तहसील और जिला स्तर पर डिमांड रही। अब इतनी मांग है कि किराए की 80 बीघा जमीन और लेकर कुल 110 बीघा में खेती कर रहा हूं।
किसान रावल चंद पंचारिया ने शकरकंद के क्षेत्र में चौंकाने वाले प्रयोग किए हैं। बिना केमिकल और रसायन का इस्तेमाल किए उन्होंने ढाई फीट तक की शकरकंद उगाई है। इसकी क्वालिटी भी बहुत अच्छी है। इसके अलावा उन्होंने सफेद शकरकंद भी विकसित की है।
शकरकंद के चिप्स
आलू के चिप्स तो सभी खाते हैं, लेकिन पंचारिया अपने खेत में उगाए शकरकंद के चिप्स बनाकर बेचते हैं। इन्हें 800 रूपए प्रति किलो के हिसाब से बेचा जाता है। पिछले साल ही डेढ़ लाख के चिप्स बेचे थे। खास बात यह है कि इसे बेचने के लिए कहीं जाना नहीं पड़ा। फार्म हाउस से ही कस्टमर खरीदकर ले गए।
पंचारिया ने बताया कि जब खेती शुरू की तो उस समय नजदीकी किसानों ने मजाक उड़ाया। मैं मूंगफली के साथ गाजर, शकरकंद भी उगा रहा था। किसानों ने कहा कि मैं गलत रास्ते पर चल रहा हूं। सारी फसलें खराब हो जाएंगी। मैं अपना काम करता रहा और अब वही किसान मुझसे सलाह लेने आते हैं।
केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान, जोधपुर (काजरी) में किसान रावल चंद के ऑर्गेनिक प्रोडक्ट खरीदते लोग।
2020 में लॉकडाउन खुलने के बाद काजरी ने किसानों की आय बढ़ाने को लेकर एक प्रोजेक्ट शुरू किया था। मैं उससे जुड़ा। इस प्रोजेक्ट में किसानों को बाजरे के आटे से कुरकुरे बनाने, काचरे के बीज और काचरे से फूड प्रोडक्ट बनाने के बारे में बताया गया। आमतौर पर किसानों का बाजरा और काचरा लंबे समय तक टिकता नहीं है। ऐसे में बाजरे का कुरकुरे और काचरे का कोल्ड ड्रिंक बनाना सीखा और इसे खेत में ही तैयार किया। साल 2021 में बड़े पैमाने पर बाजरे के कुरकुरे, काचरे का सॉफ्ट ड्रिंक, आंवले के लड्डू, कैंडी, मुरब्बा, टमाटर चटनी, बाजरे के लड्डू तैयार करने शुरू किए।
इसके अलावा गाय के गोबर से धूपबत्ती, हवन के लिए कंडे, गणेश मूर्ति, ओम स्वास्तिक और हवन सामग्री बनाते हैं। यह भी साल 2021 में शुरू किया। अब रावलचंद पंचारिया की सालाना कमाई गाय के गोबर से बने उत्पादों से 2 से 3 लाख है। इस काम के लिए उन्होंने चार लेबर भी लगा रखे हैं। खेती से रावलचंद 10 से 12 लाख सालाना कमाते हैं। कभी दो-ढाई हजार रुपए की नौकरी के लिए घर से हजारों मील दूर रहने वाले रावलचंद के घर में अब ट्रैक्टर, कल्टी, तवी सहित सारे संसाधन हैं।
जोधपुर की तहसील लोहावट में गांव नौसर में किसान रावल चंद पंचारिया का फार्म हाउस जिसमें उनके पास 10 देसी गायें हैं।
मिला धरती मित्र पुरस्कार
22 फरवरी 2022 को दिल्ली में जैविक खेती के जरिए पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने में योगदान के लिए दादा साहब फाल्के अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के सहयोग से ऑर्गेनिक इंडिया प्रा. लि. को सम्मानित किया गया। इसमें देशभर के 5 जैविक किसानों को धरती मित्र पुरस्कार दिया गया। जिनमें अभिनेत्री लारा दत्ता व कर्नल तुषार जोशी ने धरती मित्र पुरस्कार 2021 के राजस्थान के रावल चंद को एक लाख रुपए का पुरस्कार दिया।
इसके अलावा उन्हें केंद्रीय कृषि मंत्री ने कृषि व्यवसायी अभिपोषण केंद्र जोधपुर में उद्यमिता विकास कार्यक्रम के तहत देसी गायों द्वारा डेयरी उद्योग में ट्रेनिंग पाने और कृषि व पशुपालन का कार्य करने के लिए सम्मानित किया गया। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्रसिंह तोमर ने उन्हें सितम्बर 2022 में काजरी में हुए कार्यक्रम में सम्मानित किया।
दादा साहब फाल्के इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल 2022 में अभिनेत्री लारा दत्ता और कर्नल तुषार जोशी ने जैविक खेती करने वाले 5 किसानों को पुरस्कृत किया था। इनमें रावल चंद(दाए से दूसरे) भी शामिल थे।
जैविक खाद के अर्क की यूनिट
अपने फार्म हाउस पर रावलचंद ने जैविक खाद का अर्क निकालने की यूनिट भी लगा रखी है। यह भी रावल चंद का ही इनोवेशन है। यह अर्क फसल के लिए बेहद उपयोगी है। सीमेंटेड टैंक में एक ट्रॉली गोबर, गोमूत्र, 10 किलो गुड़ और पानी मिलाकर एक महीने तक रखा जाता है। इसे रोजाना हिलाया जाता है। फिर एक पाइप के जरिए अर्क को अलग निकाल लिया जाता है। एक ट्रॉली गोबर का यह अर्क 10 बीघा में खाद का काम करता है।
ऐसे बनाया लाल शकरकंद को सफेद
रावलचंद ने 20 बीघा में शकरकंद बोई थी। कुछ शकरकंद में उन्हें सफेद लकीर नजर आई। इन्हें रावलचंद ने अलग रख लिया। सलेक्शन विधि से अलग रखी सफेद लकीर वाली शकरकंद को अगले साल बोया तो सफेद हिस्से की मात्रा बढ़ गई। इस तरह उन्होंने 5 साल में लाल शकरकंद को पूरी तरफ सफेद बनाने में सफलता हासिल की। इसका साइज दो से ढाई फीट है। क्वालिटी भी बेहतर है और यह शुद्ध ऑर्गेनिक है। उनका टारगेट है 4 फीट की 4 किलो वजनी शकरकंद उगाने का।
अपने प्रोडक्ट के साथ किसान रावलचंद पंचारिया।
10 देसी गायों से कमाई
रावलचंद के फार्म हाउस पर 10 देसी गायें हैं। इनका गोबर और गोमूत्र खाद के अलावा अन्य प्रोडक्ट बनाने में काम आ रहा है। गोबर और गोमूत्र में तांबे के बर्तन में रखी खट्टी छाछ मिलाकर जैविक खाद तैयार कर रहे हैं। इसके अलावा नस्ल संवर्धन के लिए थारपारकर नंदी भी है। जिस पर काम कर रहे हैं। गाय का दूध 50 से 60 रुपए लीटर और घी 1200 से 1400 रुपए किलो तक बेच रहे हैं।
नर्सरी कॉकपिट में वे लाल पत्तागोभी और ब्रोकली भी तैयार कर रहे हैं। यह सब ऑर्गेनिक है। इसके अलावा फलों का बगीचा भी है लगाया हुआ है। इसमें सीताफल, संतरा, थाईबेर, इमली, आंवला, कटहल, शहतूत, लीची और आलू बुखारा समेत कई फल लगा रखे हैं। सिंचाई के लिए तालाब बना रखा है, जिसमें वर्षा का जल संग्रहीत होता है।
रावलचंद के परिवार में पत्नी, दो बेटियां और एक बेटा है। दोनों बेटियां 10 और 8 साल की हैं, जो पढ़ाई कर रही हैं। बेटा 3 साल का है। जब रावल चंद मुंबई में 5 हजार की नौकरी कर रहे थे तब घर-परिवार से बहुत दूर थे और घर की जरूरतों को पूरा भी नहीं कर पा रहे थे। अब यह परिवार खुशहाल है।
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