'मीठी भरी कटोरी आए, मुन्नी सुड़क-सुड़क पी जाए'
बूझ गये क्या?
अगर नहीं, तो मनोज मुंतशिर की ये पंक्तियां सुनिए....
'शोहरत, न तालियों का शोर चाहिए, बस नुक्कड़ पे चाय मिल गई, क्या और चाहिए...'
चाय, जिसकी तलब सूरज निकलते ही लग जाती है। जिस पर 'एक गर्म चाय की प्याली हो...' जैसे फिल्मी गाने तक बन गए। वही चाय जिसकी चुस्कियों के साथ महफिल जम जाती है। दुश्मन दोस्त बन जाते हैं और गपशप का दौर शुरू हो जाता है।
यूं तो चाय हर हर आम और खास के घर में बनती है, लेकिन आज हम बात करेंगे जयपुर की उन 'थड़ियों' की जहां सच में महफिलें जमती हैं। जहां बैठकर क्या मुख्यमंत्री और क्या देश के प्रधानमंत्री, सब चाय की चुस्कियां ले चुके हैं। बड़े-बड़े सेलिब्रिटी आवाज लगाकर कहते हैं...भाई साहब चार बटे तीन कर देना....कोई कहता है- भैया डबल लगा देना।
सिगड़ी पर उबलते दूध में जैसे ही स्पेशल चाय पत्ती और सीक्रेट मसाले डलते हैं, उसकी सौंधी-सौंधी महक चाय के दीवानों को बेकाबू कर देती है। भगौनी से छनकर जब चाय कुल्हड़ में उतरती है तो पीने वालों की भीड़ ऐसे टूटती है मानो चाय की लत लग गई हो।
आखिर ये चायवाले कौनसा जादू घोल देते हैं? यह जानने के लिए जायका टीम उन थड़ियों पर पहुंची जहां लोग ये कहते सुनाई देते हैं कि गुलाबी नगरी में सुबह की गुलाबी-गुलाबी ठंड में गुलाब जी, साहू जी और सम्राट वाले की चाय मिल जाए तो कहना ही क्या?
तो राजस्थानी जायका में चाय की उन तीन चुस्कियों की कहानी, जिस पर दीवानों ने इतना प्यार लुटाया कि आज चायवाले करोड़ों का कारोबार कर रहे हैं...
76 साल पुराना 'अड्डा', यहां फ्री में मिलती है चाय और 2 ब्रेड
देश को आजाद हुए 75 साल हो गए लेकिन 'गुलाब जी' की चाय का स्वाद जयपुर में 76 साल से मिल रहा है। यह जयपुर की पहली थड़ी है जहां लोग मुफ्त में भी चाय पी सकते हैं।
सुनने में ये बात भले ही मजाक लगती हो, लेकिन सच है।
1926 में सरना डूंगरी गांव में जन्मे गुलाब सिंह धीरावत जागीरदार फैमिली छोड़कर जयपुर आ गए और आकाशवाणी में नौकरी करने लगे। पहले महीने ही उन्हें बतौर सैलरी 50 रुपए मिले, लेकिन गुलाब सिंह को 10 से 5 की नौकरी कुछ खास पसंद नहीं आई। पहली सैलरी में मिले 50 रुपयों से उन्होंने ठेला खरीदा और आकाशवाणी की नौकरी छोड़ एमआई रोड पर चाय बेचना शुरू कर दिया।
सीक्रेट मसालों से चाय को बनाया ब्रांड
पीतल के पतीले में प्योर दूध से गुलाब जी ऐसी चाय बनाते जिसके स्वाद ने लोगों को दीवाना बना दिया। सौंठ और इलायची के अलावा ने तीन चीजों से उन्होंने चाय का एक सीक्रेट मसाला तैयार किया, जिसका राज केवल उन्हीं के पास था। जो भी उनके हाथ से बनी चाय की चुस्की एक बार ले लेता, वो उसी का मुरीद होकर रह जाता। पीने वालों ने माउथ पब्लिसिटी से ही गुलाब सिंह धीरावत की चाय को 'गुलाब जी' ब्रांड बना दिया। जयपुर में कहा जाने लगा था चाय का मतलब 'गुलाब जी'।
उन्हीं दिनों एक खास शख्सियत भी उनकी चाय की थड़ी पर चुस्कियां लेने पहुंचती थी। ये थे पूर्व उपराष्ट्रपति और राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे भैरोंसिंह शेखावत। गुलाब जी के हाथ की बनी चाय के लिए उनकी दीवानगी कॉलेज और हॉस्टल टाइम से ही थी। जब वे सीएम बने तब भी अपना काफिला रोककर वहां जाते थे। आज गुलाब जी के यहां कई बड़े नेता चाय पीने आते हैं। आम जनता के साथ बैठ कर चाय का मजा लेते हैं। इस खास चाय की कीमत 1946 में 5 पैसे हुआ करती थी, लेकिन अब वही एक कप 25 रुपए में मिलता है। इस चाय के सचिन पायलट, राजेंद्र राठौड़, प्रताप सिंह खाचरियावास सहित कई बड़े नेता फैन हैं।
रोज 500 लोग पीते हैं मुफ्त चाय
गुलाब सिंह के पोते चेतन सिंह बताते हैं कि उनकी चाय पीने लोगों की लाइन लगती थी। उसमें कई गरीब और जरूरतमंद भी होते थे जिनके लिए गुलाब जी फ्री में चाय बनाते थे। फिर उन्होंने इसे परंपरा ही बना दिया कि सुबह का पहला पतीला वे गरीबों के लिए बनाने लगे। गुलाब सिंह तो अब इस दुनिया में नहीं रहे, लेकिन उनकी लेगेसी को आज उनका गोद लिया हुआ बेटा शिवपाल सिंह और उनके बेटे यानी पोते चेतन सिंह आगे बढ़ा रहे हैं।
शिवपाल सिंह बताते हैं कि 1946 में ही गुलाब जी ने जब थड़ी की शुरुआत की तो पहली चाय उस गरीब को पिलाई जिसके पास पैसे नहीं थे। यहीं से फ्री में चाय पिलाने की परंपरा शुरू हुई जिसे हम आज तक निभा रहे हैं। पहले बहुत कम लोग लाइन में लगते थे। आज करीब 500 से 600 लोग डेली सुबह 4:30 बजे से लाइन लगा लेते हैं। चाय के साथ गरीबों को 2 ब्रेड भी फ्री दिए जाते हैं।
MBA होल्डर पोते ने खोल दी 4 ब्रांच
गुलाब जी के बाद 2017 में उनके पोते चेतन सिंह ने 24 साल की उम्र में बिजनेस की कमान संभाली। इस नाम की वैल्यू को समझते हुए चेतन ने 'गुलाब जी' को एक ब्रैंड बनाया। चेतन एमबीए हैं और उन्होंने अपनी स्किल्स के बलबूते शहर में 4 आउटलेट खोले हैं। ये 4 आउटलेट बनी पार्क, एमआई रोड, मानसरोवर और मसाला चौक में हैं। इन आउटलेट्स को कैफे का लुक दिया गया है। एक ऐसा टी कैफे जिसे हर तबके का आदमी अफोर्ड कर सके। यहां गुलाब जी स्पेशल मैन्यू का सबसे महंगा आइटम 50 रुपए का है। सुबह 5 बजे से जो भीड़ लगने लगती है वो 11 बजे तक कम नहीं होती, लेकिन एमआई रोड पर 'गुलाब जी' की पुश्तैनी दुकान आज भी मौजूद है।
आगे बढ़ने से पहले देते चलिए, आसान से सवाल का जवाब...
ये चाय है करोड़ों का बिजनेस
चेतन बताते हैं कि चाय प्योर भैंस के दूध में बनाई जाती हैं। एक बूंद भी पानी नहीं डालते। जयपुर के आस-पास के गांवों से दूध मंगवाते हैं। पीतल के पतीले (भगोनी) में अच्छे से उबालने के बाद तैयार चाय को पीने रोज के करीब 5000 लोग आते हैं।
वीकएंड पर चारों आउटलेट पर यह संख्या डबल हो जाती है। उनके डेली 400 किलो दूध की खपत होती है। वहीं वीकएंड पर 600 किलो दूध की चाय बिक जाती है। एक कप चाय की कीमत 25 रुपए है। एक अनुमान के मुताबिक सभी आउटलेट पर चाय का सालाना कारोबार 5 करोड़ के करीब है।
इस चाय वाले के CM भी आते हैं गपशप करने, PM भी चख चुके स्वाद
जयपुर में पॉलिटिशियन से लेकर VVIP लोगों के लिए चाय का एक स्पेशल अड्डा है, साहू जी चाय वाला। ये कोई फाइव स्टार होटल नहीं बल्कि चौड़ा रास्ता पर चलने वाली एक छोटी सी चाय की थड़ी है। यहां की चाय का बेहतरीन स्वाद ही है जो धर्मेंद्र, हेमा मालिनी, गोविंदा और डैनी जैसी बॉलीवुड स्टार को भी दुकान तक खींच लाया।
साहू रेस्टोरेंट के मालिक इंद्र कुमार बताते हैं फिल्म जय विक्रांता की शूटिंग के दौरान संजय दत्त, माधुरी की शाम की चाय तो यहां फिक्स थी। कई बार बॉलीवुड हस्तियों की मीटिंग भी यहीं चाय की चुस्की के साथ होती थी। इतना ही नहीं यहां की चाय के दीवानों की लिस्ट में पीएम नरेंद्र मोदी भी हैं। गुजरात में तीसरी बार CM बनने के बाद साहू समाज के एक कार्यक्रम में वे जयपुर आए थे। तब उन्होंने भी इस चाय का स्वाद चखा था। मुख्यमंत्री रहते हुए अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे तो कई बार यहां आकर मीटिंग तक कर चुके हैं। जयपुर की पूर्व रॉयल फैमिली की सदस्या दिया कुमारी भी यहां चाय की चुस्कियां ले चुकी हैं।
इस स्वाद की शुरुआत लादू राम साहू और उनकी पत्नी ने इसे 1964 में की थी। दोनों ही अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन लादूराम के तीनों बेटों ( पुत्र भंवर, लक्ष्मीनारायण और गणेशराम) के बाद अब तीसरी पीढ़ी इस बिजनेस को आगे बढ़ा रही है। इंद्र बताते हैं शुरुआत में यहां चाय सिगड़ी पर बना करती थी। सर्दियों में सिगड़ी की मध्यम आंच पर सिकती चाय लोगों में आकर्षण हुआ करती थी।
इंद्र कुमार साहू बताते हैं की चाय में वो कुछ भी सीक्रेट मसाले नहीं डालते। बेहतरीन क्वालिटी की पत्ती इस्तेमाल होती है। इसमें इलायची, काली मिर्च और अदरक के अलावा कोई तीसरी चीज एक्ट्रा नहीं डालते। लेकिन चाय के टेस्ट में मैथमेटिक्स है। कब दूध डालना है, कब पत्ती, अदरक या बाकी चीजें। कितनी देर उबालना है सबका टाइम फिक्स होता है। फिर चाय की सिकाई ही इसे लाजवाब बना देती है। कारण है कि क्वालिटी में कॉम्प्रोमाइज नहीं करते।
सबसे छोटे कप में चाय का रेट 10 रुपए है। उसके बाद 15 रुपए में मीडियम साइज कुल्हड़ और 25 रुपए में फुल प्याली कुल्हड़ चाय मिलती है। आज साहू रेस्टोरेंट की तीन ब्रांच हैं। एक मालवीय नगर और दो चौड़ रास्ता में। डेली तीनों आउटलेट पर 6 हजार कप चाय के बिकते हैं। एक अनुमान के मुताबिक सालाना इनकम 5 करोड़ से भी ज्यादा है।
सम्राट चाय वाला, जो चाय के साथ समोसे से फेमस हुआ
चौड़ा रास्ता पर दुकान नंबर 273 पर कोयले से चलने वाले तंदूर पर पीतल के पतीले पर यहां चाय बनते हुए 74 साल हो गए। यह जयपुर की पहली चाय की थड़ी थी जहां केवल चाय ही समोसे भी फेमस है।
ललित खंडेलवाल बताते हैं कि इस दुकान की शुरुआत उनके दादा जुगल किशोर पूरी वाला ने की थी। पहले वे मुंबई में सब्जी पूरी बेचते थे। लेकिन 1948 में जयपुर लौटकर चाय की दुकान खोली। दादाजी चाय बनाते थे और दादी जी समोसा। चाय की स्पेशल बात है कि कोयले से जलने वाली सिगड़ी पर बनती थी। वहीं उनकी दादी के हाथ के बने समोसे इतने लाजवाब थे कि आस पास के सिनेमाघरों में उमड़ने वाली भीड़ भी इंटरवेल में यहां चाय पीने और समोसा खाने आती थी।
चायपत्ती का खुद करते हैं 6 दिन तक टेस्ट
ललित बताते हैं दादा जुगल चाय में मसाले के तौर पर दालचीनी, मोटी इलायची और सौंठ का एक मिश्रण डालते थे। दूसरा वह खास बागानों से डायरेक्ट चाय पत्ती खरीदते थे। एक की बजाय अलग-अलग 5 तरीके की चाय मंगवाते थे। किसी बागान की चाय में अरोमा अच्छा होता था तो किसी का रंग बढ़िया आता।
उन पत्तियों से चाय बनाकर कम से कम 7 दिन तक घर पर ही टेस्ट करते थे। सैंपल पास होने पर उन सभी का मिश्रण कर खुद की स्पेशल चाय पत्ती तैयार करते थे। इतना ही नहीं सर्दियों के लिए अलग और गर्मियों के लिए अलग मिश्रण बनाकर तैयार कर लेते थे। उन्ही की बनाई ये तकनीक आज भी हम फॉलो कर रहे हैं।
सर्दियों में लोग कड़क चाय पीना पसंद करते हैं, इसलिए उसमें कड़क टेस्ट लाने वाली स्पेशल पत्तियां एड की जाती हैं। चाय और नाश्ते के कई सेलिब्रिटी मंत्री फैन है। यहां तक कि खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से लेकर उनके बेटे वैभव यहां चाय पीना पसंद करते हैं। एक कप 20 रुपए, 25 रुपए और स्पेशल चाय 30 रुपए में मिलती है। डेली 500 कप बिक जाते हैं। पहले एक दुकान थी लेकिन धीरे-धीरे तीन खरीद ली हैं। उनकी कोई ब्रांच नहीं है।
कहां से आई चाय
बताते हैं ईसा से लगभग 2500 वर्ष पहले चीन के सम्राट शैन नुंग ने पहली बार चाय बनाई थी। एक बार सम्राट जंगल में था और वहां लगे कैंप में एक जगह पानी गर्म कर रहा था। तभी गर्म पानी में हवा के झोंके के साथ कुछ पत्तियां आ गिरी, जिससे पानी रंगीन हो गया। जब सम्राट ने उसे चखा तो स्वाद बहुत पसंद आया। इसका नाम 'चा' रखा। बाद में इसका नाम 'टीई' पड़ गया। यहीं से चाय और 'Tea' शब्द चर्चा में आए और चाय का सफर शुरू हो गया। सोलहवीं शताब्दी में (1610) में डच व्यापारी चीन से चाय यूरोप ले गए। वहां से धीरे-धीरे चाय पूरी दुनिया में पहुंची।
भारत में चाय पहली बार कब पहुंची
- हालांकि, जंगली अवस्था में यह असम में पहले से ही पैदा होती थी।
- फिर वर्ष 1815 में अंग्रेज यात्रियों का ध्यान असम में उगने वाली चाय की झाड़ियों पर गया।
- असम के स्थानीय कबाइली लोग इसका पेय बनाकर पहले से ही पीते थे। लेकिन पूरे भारत में इसका प्रचार नहीं था।
- भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड बैंटिक ने भारत में चाय की परंपरा शुरू की।
- चाय का प्रोडक्शन बढ़ाने के लिए एक समिति का गठन किया।
- 1835 में असम में चाय के बाग लगाए गए।
- पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग क्षेत्र में पैदा होने वाली चाय सबसे ज्यादा स्वादिष्ट होती है।
- असम की चाय तेज सुगंध और रंग के लिए प्रसिद्ध है।
18% लोगों ने इसे कुरकुरे और 17% लोगों ने इसे नमक पारा बताया। लेकिन सही जवाब बताया 65% लोगों ने। ये कोटा के फेमस कड़के हैं। कोचिंग के लिए मशहूर कोटा में लोगों के दिन की शुरुआत हींग से बनी कचौरी से होती है, लेकिन जब तक चाय की चुस्की लेते समय कड़कदार कड़के न मिल जाएं, सारा स्वाद अधूरा रहता है। सर्दियों में तो डिमांड कई गुना बढ़ जाती है। ये हैं कोटा के कड़के। जिसके तीखे और कुरकुरे स्वाद के दीवाने विदेशों में भी हैं।
शहर में खाने के शौकीन हींग कचौरी को 'कोटा की रानी' कहकर बुलाते हैं, तो कड़कों को 'कोटा का राजा' कहा जाता है। बेसन के मोटे कड़क सेव को यहां कड़के नाम से जाना जाता है। जिसकी शुरुआत करीब 120 साल पहले सन 1902 में बाल जी सैनी ने की थी। उनके 72 साल के पोते मोहन सैनी आज भी सुबह 6 बजे भट्टी जलाकर कड़के के पाये तैयार करने में जुट जाते हैं। 7 बजते ही दुकान के बाहर ग्राहकों की भीड़ लगती है। दिनभर 12 से 15 घंटे ऐसा स्वाद तैयार करते हैं जो कहीं और नहीं मिलता।
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मेरा टेसू यहीं खड़ा, खाने को मांगे दही बड़ा....बचपन में आपने भी ये जिद जरूर की होगी और दही बड़ों का स्वाद भी चखा होगा। ऐसी जिद के साथ जयपुर में एक ठेले पर भीड़ जुटती है, नाम है कलकत्ता चाट भंडार। जिस VVIP इलाके में यह ठेला लगता है, वहां CM से लेकर मंत्री-विधायकों का काफिला गुजरता है। कार की विंडो खोलकर बड़े से बड़ा VIP भी रिस्पेक्ट के साथ ऑर्डर देता है- 'पंडित जी एक प्लेट हमारी भी लगा देना।' बॉलीवुड स्टार आमिर खान, अभिषेक बच्चन से लेकर सोनम कपूर तक पंडित जी के हाथ से बने दही बड़े के जबरा फैन हैं... (यहां क्लिक कर पढ़ें पूरी खबर)