यूं तो ब्यूरोक्रेसी के लिए माना जाता है कि वो राजनीतिक उठापटक से दूर ही रहती है, लेकिन यह केवल किताबी बातें हैं। राजनीतिक घटनाक्रम का सबसे पहला असर ब्यूरोक्रेसी के चेहरे पर ही दिखाई देता है। अक्सर हर सरकार में कुछ अफसरों को सरकार और मुख्यमंत्री के बेहद करीब माना जाता है और कुछ अफसरों को बहुत दूर। ब्यूरोक्रेसी और राजनीतिक लीडरशिप के बीच गहरे सम्बंध होते ही हैं। 25 सितम्बर को 92 विधायकों द्वारा इस्तीफे सौंपने की जो घटना हुई तो ब्यूरोक्रेसी के चेहरे पर तनाव साफ दिखने लगा था। सचिवालय में सन्नाटा व्याप्त था और आला अफसर सामान्य फाइलों के अलावा किसी महत्वपूर्ण मुद्दे पर काम नहीं कर रहे थे, लेकिन अब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की बॉडी लैंग्वेज के बदलने और सहज होने से माहौल बदल चुका है। ब्यूरोक्रेसी एक बार फिर से तेज गति से काम कर रही है। सचिवालय में रौनक लौट आई है और आला अफसर कामकाज में जुट चुके हैं।
कुछ सीनियर आईएएस अफसरों से जब भास्कर ने इस विषय पर बातचीत की तो उनका यही कहना था कि राजनीतिक नेतृत्व अंतत: ब्यूरोक्रेसी का बॉस होता ही है। मुख्यमंत्री उस बॉस के रूप में प्रमुख चेहरा होते हैं। इस पद पर बैठे राजनेता के आने-जाने, बदलने, बनने, रहने की कोई हलचल होती है, तो
उसका असर ब्यूरोक्रेसी के माइंडसेट, कार्यशैली, गति, दिशा निर्देश आदि पर पड़े बिना नहीं रहता है।
आला अफसरों का कहना है कि कोई भी राजनीतिक नेतृत्व अगर अस्थिर मांइडसेट में हो तो वो इन्वेस्टमेन्ट समिट, बजट, नए जिलों जैसे बड़े कायों पर ध्यान केन्द्रित नहीं करता है, लेकिन राजस्थान में ऐसा नहीं है। अभी ब्यूरोक्रेसी को इन्हीं चीजों पर काम करने के निर्देश मिले हैं। यह बात अब बहुत साफ हो चुकी है कि राज्य में कोई राजनीतिक अस्थिरता अब नहीं है, अन्यथा मुख्यमंत्री के स्तर पर अगला बजट तय समय से एक महीना पहले ही पेश करने जैसी गंभीर बात नहीं कही जाती।
ब्यूरोक्रेसी को यूं मिले पॉलिटिकल ऑल इज वेल के संदेशे…
1.इन्वेस्टमेन्ट समिट….
मुख्यमंत्री गहलोत ने स्वयं प्रेस कांफ्रेंस कर इन्वेस्टमेंट समिट की कमान अपने हाथों में ली। यह समिट 6-7 अक्टूबर को होनी है। मुख्यमंत्री ने केवल उद्योग विभाग के आला अफसरों को ही नहीं बल्कि मुख्य सचिव उषा शर्मा, सीएमओ के प्रमुख सचिव कुलदीप रांका सहित विभिन्न विभागों के अफसरों को इस समिट को सफल बनाने में जुटने को कहा है।
2. बजट
मुख्यमंत्री गहलोत ने हाल ही बजट घोषणाओं पर अब तक हुई प्रगति पर समीक्षा बैठक ली। इस बैठक में सभी विभागों के आला अफसर शामिल हुए। बैठक में बताया गया कि करीब 74 प्रतिशत बजट घोषणाएं पूरी हो चुकी हैं, और 90 प्रतिशत योजनाओं के कार्यादेश भी जारी हो चुके हैं। उसके बाद सभी विभागों से अगले बजट के लिए नए प्रस्ताव भी मांग लिए गए हैं, जिनकी तैयारी में ब्यूरोक्रेसी जुट गई है।
3. एक ही साथ 60 नए जिलों की बात
राज्य में फिलहाल 33 जिले हैं, जिनमें लगभग 50-60 ऐसे उपखंड मुख्यालय हैं, जिन्हें जिला बनाए जाने की मांग लंबे अर्से से की जा रही है। इनमें से आने वाले दिनों में करीब 10 नए जिलों की घोषणा सम्भव है। मुख्यमंत्री गहलोत ने भी नए जिलों की घोषणा करने के संकेत दिए हैं। पूर्व आईएएस अफसर रामलुभाया के नेतृत्व में एक कमेटी गठित है, जिसने अपना बहुत कुछ होमवर्क कर लिया है।
3. मुख्य सचिव ऊषा शर्मा की तेजी
मुख्य सचिव ऊषा शर्मा को नौकरशाही में विगत 35 वर्षों में गैर राजनीतिक पहचान हासिल है। उनकी लीडरशिप में लगातार दूसरा बजट आने वाला है। ऐसे में बजट की समीक्षा बैठक से उनके काम-काज में खासी तेजी आ गई है, जो अब लगातार अगले बजट के आने तक बनी रहेगी।
4. कुछ कानूनों पर फिर से होने लगा काम
राज्य सरकार जल्द ही सरकारी सेवाओं में जवाबदेही का कानून और कोचिंग इंडस्ट्री की लगाम कसने वाले कानून लाने वाली है। इसके अतिरिक्त भी कुछ नए कानून आने वाले हैं, जो ठंडे बस्ते में चले गए थे, लेकिन गत 3-4 दिनों से सामान्य प्रशासन, कार्मिक, उच्च शिक्षा, केबिनेट सेक्रेटेरियट, प्रशासनिक सुधार, विधि आदि विभागों के आला अफसर जुट गए हैं।
5. आईएएस कैडर रिव्यू और तबादलों पर भी कवायद
सूत्रों का कहना है कि हरियाणा, तमिलनाडू, पंजाब, मध्यप्रदेश आदि राज्यों की तुलना में राजस्थान को प्रति एक करोड़ लोगों की आबादी पर तुलनात्मक रूप से कम आईएएस अफसर उपलब्ध होते हैं। इस सम्बंध में हाल ही कार्मिक विभाग ने दिल्ली स्थित केन्द्रीय कार्मिक व प्रशिक्षण विभाग से सम्पर्क किया है। प्रमुख कार्मिक सचिव हेमंत गेरा ने दिल्ली जाकर गत दिनों राज्य का पक्ष भी रखा है। सूत्र कह रहे हैं कि राज्य सरकार के गठन के चार वर्ष पूरे होने को है। इसके साथ ही अगले महत्वपूर्ण वर्ष के लिए आला अफसरों के तबादले होना भी सम्भव है।
6. जेसीएसटीएल के प्रबंध निदेशक अजिताभ शर्मा ने हाल ही मुख्य सचिव ऊषा शर्मा के माध्यम से जेसीएसटीएल के सम्पूर्ण ढांचे में बदलाव करने की बात सरकार तक पहुंचाई है। जिसमें कार्मिकों की नई भर्तियों सहित 1000 नई बसों की खरीद जैसे प्रस्ताव शामिल है। इस तरह के नए और बड़े कार्य करने के लिए कोई भी नौकरशाह तब तक आगे नहीं बढ़ता जब तक राज्य में राजनीतिक स्थिरता का माहौल न हो।