कांग्रेस अध्यक्ष पद का मुकाबला अब मल्लिकार्जुन खड़गे, शशि थरूर और झारखंड के केएन त्रिपाठी के बीच सिमट गया है। नामांकन करने के लिए टाइम ले चुके दिग्विजय सिंह कुछ मिनटों में रेस से बाहर हो गए। उम्मीदवारों में नया नाम जुड़ा मल्लिकार्जुन खड़गे का। दिग्विजय के अलावा शुरुआत में अध्यक्ष पद के उम्मीदवार माने जा रहे अशोक गहलोत उनके प्रस्तावक बने।
राजनीतिक विश्लेषक राशिद किदवई का मानना है कि दिग्विजय सिंह कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति का शिकार हो गए। वहीं, CSDS में प्रोफेसर अभय दुबे कहते हैं- खड़गे को अध्यक्ष बनाना मजबूरी का सौदा है, क्योंकि सोनिया गांधी शशि थरूर को अध्यक्ष नहीं बना सकतीं। दिग्विजय को लग गया था कि उन्हें अध्यक्ष नहीं बनाया जाएगा, इसलिए उन्होंने अपनी दावेदारी वापस ले ली।
नामांकन के दौरान मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ कांग्रेस के बड़े नेता प्रस्तावक बनकर पहुंचे। खड़गे ने कहा कि 17 अक्टूबर को देखते हैं, क्या नतीजा आता है। उम्मीद है मैं जीतूंगा।
अब दो दिन में तेजी से बदले सिनेरियो को समझिए...
नामांकन से ठीक एक दिन पहले दिग्विजय सिंह से पूछा गया कि आप अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ रहे हैं, तो ये माना जाए कि आपको गांधी परिवार का समर्थन हासिल है?
दिग्विजय का जवाब- गांधी परिवार की कृपा हमेशा मुझ पर रही है। हर पल, हर पद, हर समय उन्हीं की बदौलत मिला।
अगला सवाल- क्या अगला पद भी गांधी परिवार की बदौलत मिलेगा?
दिग्विजय का जवाब- गांधी परिवार ने चुनाव को खुला छोड़ रखा है। मैं तो यही मानता हूं, कोई भी चुनाव लड़ सकता है।
फिर शुक्रवार आया यानी नामांकन का आखिरी दिन...
सुबह 10:35 बजे: कांग्रेस की सेंट्रल इलेक्शन अथॉरिटी के अध्यक्ष मधुसूदन मिस्त्री ने कहा कि शशि थरूर, दिग्विजय सिंह और शायद मल्लिकार्जुन खड़गे नामांकन दाखिल करेंगे। इस बार ज्यादा लोग नामांकन करना चाहते हैं, इसलिए हम चुनाव के लिए तैयार हैं। शशि थरूर जी ने 11:25 बजे तक और दिग्विजय सिंह जी ने 11 से 11:30 के बीच नामांकन दाखिल करने के लिए कहा था।
सुबह 11:30 बजे: अचानक पूरा सीन बदल गया। पहली बार नामांकन के लिए मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम चलने लगा। दिग्विजय सिंह सामने आए और कहा- मैं उनका काफी आदर करता हूं। इसलिए मैंने तय किया है कि मैं उनका समर्थन करूंगा।
जिन दिग्विजय सिंह को कांग्रेस का अगला अध्यक्ष माना जा रहा था, वे खुद पीछे हट गए। राजनीति के जानकारों को भी समझ नहीं आया कि ये कैसे हो गया। कांग्रेस के कई नेताओं से हमने ऑफ द रिकॉर्ड पूछा कि ये सब क्या हो गया? उन्होंने कहा कि वे खुद हैरान हैं।
अब खड़गे अध्यक्ष पद के लिए सबसे मजबूत दावेदार हैं। इसके पीछे 4 वजहें हैं।
1. गहलोत की न के बाद विकल्प के तौर पर खड़गे चुने गए
कांग्रेस आलाकमान पहले अशोक गहलोत को राजस्थान के मुख्यमंत्री पद से हटाकर राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाना चाह रहा था। मंशा ये थी कि एक चुना हुआ प्रतिनिधि और बड़े राज्य का मुख्यमंत्री अध्यक्ष पद संभालेगा। वह कठपुतली न लगते हुए, असल का नेता लगेगा। गहलोत के बगावती तेवरों ने इस कवायद पर पानी फेर दिया। गहलोत मुख्यमंत्री बने रहेंगे या नहीं, अभी नहीं पता, लेकिन ये तय हो गया कि पार्टी के अध्यक्ष नहीं बनेंगे।
2. बयानों की वजह से बनी दिग्विजय की खराब छवि
दिग्विजय सिंह कई बार अपने बयानों से पार्टी की किरकिरी करवा चुके हैं। चाहे वह आतंकी ओसामा बिन लादेन को ओसामाजी बोलना हो, या UPA सरकार के बारे में कहना कि सत्ता के दो केंद्र (मनमोहन और सोनिया) ठीक से काम नहीं कर सके। कई जानकार दिग्विजय सिंह को ही मध्य प्रदेश से कांग्रेस की सरकार जाने की वजह मानते हैं।
उनका कहना है कि दिग्विजय अपने राज्य में सरकार नहीं बचा सके, तो राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी का कौन सा उद्धार कर देंगे। कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक, कई नेताओं ने सोनिया गांधी से मिलकर कहा था कि दिग्विजय सिंह को प्रमुख उम्मीदवार नहीं बनाना चाहिए। इससे पार्टी का नुकसान होगा। इसी के बाद दिग्विजय को हटाकर खड़गे का नाम आगे किया गया।
3. खड़गे गांधी परिवार के भरोसेमंद और ‘यस मैन’
80 साल के मल्लिकार्जुन खड़गे कर्नाटक से आते हैं। पार्टी में नीचे से उठकर ऊपर आने वाले नेता हैं। नामांकन भरने के बाद वे भावुक हो गए। बताया कि मैं छठी क्लास में पढ़ता था, तब कांग्रेस के लिए पर्चे बांटा करता था। दीवारों पर लिखकर प्रचार करता।
कांग्रेस को करीब से जानने वाले बताते हैं कि वे हमेशा गांधी परिवार के करीबी रहे और हर आदेश को सरमाथे पर रखकर स्वीकार करते रहे। ऐसे में अगर खड़गे अध्यक्ष बनते हैं, तो ये तय है कि कुछ भी हो जाए वे पार्टी हाईकमान को चुनौती नहीं देंगे। दूसरे नेताओं के मामले में ये भरोसे के साथ नहीं कहा जा सकता था। इस मामले में गहलोत का उदाहरण सबसे ताजा है।
4. खड़गे की राहुल से करीबी और सहमति
विजय चौक पर एक प्रदर्शन के दौरान राहुल गांधी अचानक सड़क पर बैठ गए। इसके बाद कांग्रेस के दूसरे दिग्गज नेताओं ने भी सड़क पर बैठना शुरू कर दिया। उम्र ज्यादा होने की वजह से मल्लिकार्जुन खड़गे को बैठने में दिक्कत थी। राहुल गांधी ये बात समझ गए।
उन्होंने खड़गे को रिलैक्स रहने का इशारा किया और पानी की बोतल उनकी तरफ बढ़ा दी। राहुल और खड़गे की करीबी की ऐसी कई सारी कहानियां हैं। कांग्रेस सूत्र बताते हैं कि खड़गे का नाम फाइनल करने से पहले राहुल ने भी दिग्विजय के मुकाबले खड़गे के नाम पर जोर दिया।
खड़गे की उम्मीदवारी पर अध्यक्ष पद के दूसरे उम्मीदवार शशि थरूर ने जो कहा, वह भी पढ़ लीजिए
दिग्विजय अंदरूनी राजनीति के शिकार, खड़गे मजबूरी वाली पसंद
राजनीतिक विश्लेषक राशिद किदवई कहते हैं कि मुझे लगता है दिग्विजय सिंह कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति का शिकार हो गए। सियासी तौर पर दिग्विजय सिंह का कद अच्छा है और वे कांग्रेस के हाईकमान कल्चर से भी बखूबी वाकिफ हैं।
ये कहना बड़ा मुश्किल है कि दिग्विजय सिंह ने अपनी मर्जी से कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने का फैसला लिया हो। अब यही सबसे बड़ा सवाल है कि उन्हें ये इशारा कहां से मिला?
वहीं, खड़गे मजबूरी वाली पसंद हैं। उनका सामाजिक आधार, राजनीतिक कद और वफादारी अगर इतनी ही होती, तो अशोक गहलोत के मुकाबले उन्हें क्यों नजरअंदाज किया गया था। अगर गहलोत मान जाते तो आज वही मजबूत दावेदार होते और खड़गे उनका समर्थन कर रहे होते। पंजाब में पिछले साल उठापटक में उनकी भूमिका थी, बाद में क्या हश्र हुआ सबने देखा। बीते दिनों वे बतौर पर्यवेक्षक राजस्थान भी गए, लेकिन खाली हाथ लौट गए।
कांग्रेस ने खुद का नुकसान किया, अंदरूनी लोकतंत्र सिर्फ कहने की बातें
CSDS में प्रोफेसर अभय दुबे कहते हैं कि नामांकन के दिन सुबह जो कुछ भी हुआ, उससे कांग्रेस ने खुद का नुकसान कर लिया है। चुनाव प्रक्रिया से कांग्रेस को जो फायदा होना था, अब वह नहीं होगा। अशोक गहलोत ने साफ संकेत दिया कि उन्हें राजस्थान की गद्दी सुरक्षित रखनी है और उनकी प्राथमिकता में वही था।
खड़गे को अध्यक्ष का उम्मीदवार बनाना मजबूरी का सौदा है। सोनिया गांधी शशि थरूर को अध्यक्ष नहीं बना सकतीं, क्योंकि थरूर उन्हीं नेताओं में से हैं, जो कांग्रेस अध्यक्ष को पत्र लिखा करते थे।
ये चुनाव 22 साल बाद हो रहा है अगर कांग्रेस को लोकतंत्र की चिंता होती तो 22 साल बाद चुनाव होता? बीच में कई बार चुनाव होना चाहिए था। किसी भी पार्टी में लोकतंत्र नहीं है, बल्कि ये पार्टी चलाने का एक बंदोबस्त है। इसमें बड़े नेताओं की तरफ से ऐसे नेता का चुनाव किया जाता है, जो पार्टी के सांगठनिक कामों की देखभाल करेगा।
जो कुछ भी हुआ, उसमें अशोक गहलोत कामयाब रहे। पायलट हाईकमान के जरिए CM बनना चाहते थे, गहलोत ने उस संभावना को खत्म कर दिया। हालात ये हैं कि सचिन पायलट के समर्थकों को बगावत करनी पड़ रही है। गहलोत ने साबित कर दिया कि राजस्थान में उन्हें कोई नहीं हरा सकता।
अब आपके लिए एक सवाल...
अब पूरे मसले पर कांग्रेस के मीडिया प्रभारी जयराम रमेश का बयान पढ़ लीजिए..
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1. मल्लिकार्जुन रेस में आगे, 30 लीडर्स उनके नॉमिनेटर बने; थरूर-त्रिपाठी भी कैंडिडेट
कांग्रेस में अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए 3 नामांकन हुए हैं। पहला नामांकन शशि थरूर, दूसरा नामांकन झारखंड के कांग्रेस लीडर केएन त्रिपाठी और तीसरा नॉमिनेशन मल्लिकार्जुन खड़गे ने किया। इसके साथ ही तय हो गया है कि अगला अध्यक्ष गैर-गांधी ही होगा। गांधी फैमिली की पसंद बताए जा रहे मल्लिकार्जुन खड़गे के प्रस्तावकों की लिस्ट में 30 बड़े नेताओं के नाम हैं।
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2. खड़गे जीते तो कांग्रेस के दूसरे दलित अध्यक्ष होंगे, मोदी लहर में भी नहीं हारे
गांधी परिवार के बैकडोर सपोर्ट की वजह से खड़गे का कांग्रेस अध्यक्ष बनना तय माना जा रहा है। सब कुछ सही रहा तो मजदूर आंदोलन से करियर की शुरुआत करने वाले खड़गे कांग्रेस की कमान संभाल सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो खड़गे बाबू जगजीवन राम के बाद दूसरे दलित अध्यक्ष बनेंगे। जगजीवन राम 1970-71 में कांग्रेस के अध्यक्ष थे।
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