गृह मंत्री अमित शाह ने 2002 में गुजरात दंगों पर आज अपनी चुप्पी तोड़ी। नरेंद्र मोदी को SIT की तरफ से मिली क्लीन चिट पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट की मुहर लगने के बाद अमित शाह ने न्यूज एजेंसी ANI को इंटरव्यू दिया। इसमें उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले, अदालती कार्रवाई के दौरान मीडिया, गैर सरकारी संगठनों और राजनीतिक दलों की भूमिका पर बात की।
शाह ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट ने सिद्ध कर दिया कि तत्कालीन गुजरात सरकार पर लगाए गए सभी आरोप पॉलिटिकली मोटिवेटेड थे। जिन लोगों ने भी मोदी जी पर आरोप लगाए थे, उन्हें भाजपा और मोदी जी से माफी मांगनी चाहिए। करीब 40 मिनट के इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि PM मोदी ने हमेशा से न्यायपालिका में विश्वास रखा है।
पढ़िए अमित शाह का पूरा इंटरव्यू....
सवालः कोर्ट ने मोदी जी और सभी आरोपियों को क्लीन चिट दे दी है, ताे आपको कैसा लग रहा है? आप तब MLA थे?
जवाब: सबसे पहले क्लीन चिट की बात करूंगा। सुप्रीम कोर्ट ने सभी आरोपों को खारिज किया है। और आरोप क्यों गढ़े गए इसपर भी सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट ने सिद्ध किया है कि ये आरोप पॉलिटिकली मोटिवेटिड थे। 18- 19 साल की लड़ाई में देश का इतना बड़ा नेता एक शब्द बोले बगैर सभी दुखों को भगवान शंकर के विषपान की तरह गले में उतारकर, सहनकर लड़ता रहा। मैंने मोदी जी को नजदीक से इस दर्द को झेलते हुए देखा है। कोई मजबूत मन का आदमी ही ऐसा स्टैंड ले सकता है।
सवाल: पॉलिटिकल व्यू की वजह से गुजरात दंगों के दौरान पुलिस और ब्यूरोक्रेसी ज्यादा कुछ नहीं कर पाई?
जवाब: भाजपा की विरोधी राजनीतिक पार्टियां, कुछ आइडियोलॉजी के लिए राजनीति में आए हुए पत्रकार और कुछ NGOs ने मिलकर इन आरोपों को इतना प्रचारित किया और इनका इकोसिस्टम इतना मजबूत था कि धीरे धीरे झूठ को ही सब सच मानने लगे।
सवाल: आपने कुछ NGOs का जिक्र किया, ये कौन से NGOs थे और उन्होंने क्या किया?
जवाब: सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि जकिया जाफरी किसी और के निर्देश पर काम करती थी। कई NGO ने कई पीड़ितों के हलफनामे पर हस्ताक्षर किए और उन्हें पता भी नहीं है। सब जानते हैं कि तीस्ता सीतलवाड़ की NGO ये सब कर रही थी और उस समय की आई UPA की सरकार ने इन NGO की बहुत मदद की थी। सब जानते हैं कि ये केवल मोदी जी की छवि खराब करने के लिए किया गया था।
सवाल: अगर सरकार सही थी तो SIT की क्या जरूरत थी जवाब: SIT का ऑर्डर कोर्ट का नहीं था। एक NGO ने SIT की मांग की थी। हमारी सरकार ने कहा कि हमें SIT से कोई परेशानी नहीं हैं। आज जब जजमेंट आया है, तो यह तय हो गया है कि कि एक पुलिस ऑफिसर, एक NGO और एक पॉलिटिकिल पार्टी ने सनसनी फैलाने के लिए झूठ बातों को फैलाया था। झूठे सबूत गढ़े गए। SIT के सामने झूठे जवाब दिए गए। कोर्ट के फैसले ने यह सिद्ध कर दिया कि दंगा रोकने के लिए सरकार ने भरसक प्रयास किए।
सवाल: उस वक्त तो आपकी सरकार दिल्ली और गुजरात दोनों जगह थी, तो फिर उन लोगों का नेटवर्क इतना मजबूत कैसे था?
जवाब: हमारी सरकार का कभी भी मीडिया के काम में दखल देने का एटीट्यूड ही नहीं है। लेकिन उस वक्त जो इकोसिस्टम बना था, उसने एक झूठ को इतना हौव्वा बनाकर जनता के सामने पेश किया कि सब झूठ को ही सच मानने लगे थे।
सवाल: अगर सरकार सही थी तो SIT की क्या जरूरत थी?
जवाब: SIT का ऑर्डर कोर्ट का नहीं था। एक NGO ने SIT की मांग की थी। हमारी सरकार ने कहा कि हमें SIT से कोई परेशानी नहीं हैं। आज जब जजमेंट आया है, तो यह तय हो गया है कि एक पुलिस ऑफिसर, एक NGO और एक पॉलिटिकिल पार्टी ने सनसनी के लिए झूठी बातों को फैलाया था। झूठे सबूत गढ़े गए। SIT के सामने झूठे जवाब दिए गए। कोर्ट के फैसले ने यह सिद्ध कर दिया कि दंगा रोकने के लिए सरकार ने भरसक प्रयास किए।
सवाल: लेकिन दंगों के सिर्फ आरोप तो नहीं लगे थे? दंगे भी तो हुए थे...
जवाब: आरोप यह था कि दंगे मोटिवेटेड थे, दंगों में राज्य सरकार का हाथ था। दंगों में CM का हाथ होने के भी आरोप लगाए गए। दंगे से कौन इनकार कर रहा है। देश में दंगे कई जगह पर हुए। जहां तक दंगो का सवाल है, कांग्रेस के शासन के किन्हीं 5 सालों और भाजपा के शासन के किन्हीं 5 सालों की तुलना करके देख लीजिए। कितने घंटे कर्फ्यू रहा, कितने लोग मारे गए, कितने दिन बंद रहा और दंगा कितने दिन तक चला इन बातों कि तुलना करने पर पता चल जाएगा कि दंगे किसके शासनकाल में अधिक हुए।
दंगा होने का मूल कारण गुजराती ट्रेन को जला देना था। 60 लोगों को और 16 दिन की बच्ची को उसकी मां की गोद में बैठे हुए जिंदा जलते हुए मैंने देखा है और मेरे हाथ से मैंने अंतिम संस्कार किया है। इसके कारण दंगे हुए और आगे जो दंगे हुए वो राजनीति से प्रेरित होकर हुए थे। सरकार के खिलाफ किया गया स्टिंग ऑपरेशन भी पॉलिटिकली मोटिवेटेड था, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया।
सवाल: 3 दिन तक सेना को बुलाया नहीं गया, अगर आप उस वक्त गृह मंत्री होते तो क्या आप सेना को जल्दी नहीं बुलाते?
जवाब: जिस दिन गुजरात बंद का ऐलान हुआ, उसी दोपहर को हमने सेना को बुला लिया था। सेना को पहुंचने में थोड़ा समय लगता है। जहां तक गुजरात सरकार का सवाल है, एक दिन की भी देरी नहीं हुई थी। इस बात को कोर्ट ने भी माना और एप्रिशिएट किया है। परंतु दिल्ली में सेना का मुख्यालय है। जब इतने सारे सिख भाइयों को मार दिया गया, 3 दिन तक कुछ नहीं हुआ। कितनी SIT बनी? हमारी सरकार आने के बाद SIT बनी। इतने सालों तक सिख नरसंहार में विपक्ष की सरकारों के दौरान कभी गिरफ्तारियां नहीं हुई। ये लोग हम पर आरोप लगा रहे हैं?
कल सुप्रीम कोर्ट ने पीएम मोदी की क्लीन चिट को बरकरार रखा था
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को PM मोदी के खिलाफ दाखिल याचिका को खारिज कर दी थी। यह याचिका 2002 गुजरात दंगों में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट देने वाली SIT रिपोर्ट के खिलाफ दाखिल की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि जकिया की याचिका में मेरिट नहीं है।
यह याचिका जकिया जाफरी ने दाखिल की थी। दरअसल, गोधरा कांड के बाद 2002 में गुजरात में सांप्रदायिक हिंसा भड़क गई थी। उपद्रवियों ने पूर्वी अहमदाबाद स्थित अल्पसंख्यक समुदाय की बस्ती 'गुलबर्ग सोसाइटी' को निशाना बनाया था। इसमें जकिया जाफरी के पति पूर्व कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी सहित 69 लोग मारे गए थे। इनमें से 38 लोगों के शव बरामद हुए थे, जबकि जाफरी सहित 31 लोगों को लापता बताया गया।
जकिया ने मजिस्ट्रेट के आदेश को दी थी चुनौती
जकिया ने दंगे की साजिश के मामले में मजिस्ट्रेट के आदेश को चुनौती दी थी। मजिस्ट्रेट ने SIT की उस क्लोजर रिपोर्ट को स्वीकार किया था, जिसमें तत्कालीन CM नरेंद्र मोदी समेत 63 लोगों को दंगों की साजिश रचने के आरोप से आजाद किया गया था। हाईकोर्ट भी इस फैसले को सही करार दे चुका है।
सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2021 में फैसला सुरक्षित रखा
जकिया ने हत्या का केस दर्ज करने की मांग की थी
गुजरात दंगों के बाद जकिया ने 2006 में राज्य के DGP (पुलिस महानिदेशक) के सामने नरेंद्र मोदी, कई अफसरों और नेताओं के खिलाफ शिकायत की थी। जकिया की मांग थी कि इन लोगों के खिलाफ हत्या समेत कई अन्य धाराओं में FIR दर्ज की जाए। तब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे।
सुप्रीम कोर्ट ने SIT गठित की थी
2008 में सुप्रीम कोर्ट ने SIT का गठन किया। उसे इस मामले में हुईं तमाम सुनवाइयों पर रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया। बाद में जकिया की शिकायत की जांच भी SIT को सौंपी गई। SIT ने मोदी को क्लीन चिट दी और 2011 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर SIT ने मजिस्ट्रेट को क्लोजर रिपोर्ट सौंपी।
2013 में जकिया ने क्लोजर रिपोर्ट का विरोध करते हुए मजिस्ट्रेट के सामने याचिका दायर की। मजिस्ट्रेट ने यह याचिका खारिज कर दी। इसके बाद जाकिया ने गुजरात हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट ने 2017 में मजिस्ट्रेट का फैसला बरकरार रखा। तब जकिया ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।