उमा भारती। उम्र 63 साल। पहनावा, भगवा। साफगोई वैसे ही, जिसके लिए पहचानी जाती हैं। इन दिनों मप्र की सड़कों पर हैं। शराबबंदी के खिलाफ। नई शराब नीति में कुछ बदलाव चाहती हैं। विरोध में कभी शराब की दुकानों पर पत्थर फेंक रहीं हैं तो कभी गोबर।
भास्कर ने शराबबंदी से लेकर 2024 में चुनाव लड़ने और योगी-शिवराज तक पर उमा से सवाल-जवाब किए। उन्होंने बेबाकी से बात की। पढ़िए और देखिए ये इंटरव्यू।
मैं डेढ़ साल से शिवराज जी से कह रही थी, लेकिन किसी को बताया नहीं….
सवाल: आप इन दिनों इतनी आक्रामक क्यों हैं। शराब की दुकानों पर पत्थर उछाल रही हैं। गोबर फेंक रही हैं। झंडे उतार रही हैं। आप किससे नाराज हैं। क्या आप CM शिवराज सिंह चौहान को कोई संदेश देना चाहती हैं?
उमा: संदेश देने की जरूरत ही नहीं क्योंकि हम बात करते हैं। लॉकडाउन हटा तो UP में शराब दुकान पर इतने लोग जमा हो गए कि, लाठीचार्ज करना पड़ा। मैंने योगी जी को कहा था कि, आपके पास मौका है। जो निषिद्ध स्थानों की दुकानें हैं वो खोलिए ही मत। तो अलग से बंद करने की नौबत ही नहीं आएगी।
यही मैं शिवराज जी को बोलने गई, क्योंकि मैं उनके साथ बहुत कम्फर्टेबल हूं। मैंने कहा, भैया मैं आज ऑफिस आकर बात करूंगी। मैं वल्लभ भवन गई। वरना, वो घर आ जाते हैं या मैं उनके घर चली जाती हूं। मैंने कहा कि देखिए सबसे अच्छा मौका आ गया आपके हाथ में। कोशिश करिए कम से कम शराब की दुकानें खुलें। पहले तो कोशिश करिए खुले ही न। उन्होंने कहा अच्छा है। मैं देखता हूं।
फिर बीच में मुझे सूचना मिली कि नई शराब नीति आ रही है, लेकिन आई नहीं। तो मुझे लगा कि नई शराब नीति में मेरे संशोधन ले लिए जाएंगे। जब मेरे संशोधन नहीं लिए गए तो मुझे आघात लगा।
क्योंकि यहां लागू की गई नीति की चार-पांच बातें बहुत गलत हैं। जैसे, अहातों में शराब पिलाना और मजदूर की बस्ती में अहाते खोलना। हमारे देश में शराब पीकर गाड़ी चलाना अपराध है, तो जब कोई अहाते में शराब पीकर निकलेगा तो गाड़ी चलाकर ही घर जाएगा। तो हम स्वयं अपराध कर रहे हैं।
मप्र में एक आदमी 11 बोतलें घर ले जा सकता है। देसी में विदेशी और विदेशी में देसी बिकने लगी। अहाते भी हैं तो शराब की दुकानों की संख्या सीधे 18 हजार पर पहुंच गई।
सवाल: आपकी बातों से ऐसा लगता है कि आप शराबबंदी के पक्ष में नहीं हैं, लेकिन मप्र की शराब नीति ठीक नहीं है, आप जो चाहती हैं उसमें आपको सरकार का सपोर्ट नहीं मिल रहा है?
उमा: ऐसा नहीं है कि मैं शराबबंदी के पक्ष में नहीं हूं। मेरा बस चले तो मैं पूर्ण शराबबंदी ही कर दूं, लेकिन मुझे इसके डिसक्वॉलिफिकेशन समझाए गए हैं। हम हरियाणा, आंध्र में फेल हुए। गुजरात-बिहार में बैन है। मेरा ये कहना है कि बिहार की आबादी मप्र से ज्यादा है। गरीबी रेखा के नीचे हमसे ज्यादा लोग हैं। राजस्व की उनको ज्यादा कमी है। फिर भी उन्होंने हिम्मत की। मप्र के लिए मैंने कहा कि कम से कम महिलाओं की इतनी इज्जत तो रख लो कि बाजार में चल रहे अहाते बंद हो जाएं।
सवाल: इसका मतलब ये हुआ कि आपकी जो आक्रामकता है, उसके कोई सियासी मायने नहीं हैं?
उमा: ये पूरी तरह से सामाजिक है। 1996 में एक वक्त ऐसा आया था कि BJP भी मंदिर आंदोलन से पीछे हट गई थी, लेकिन मैं नहीं हटी। जब अयोध्या में अशोक सिंघल और रामचंद्र दास परमहंस जी अनशन पर बैठ गए तो मैं भी अयोध्या गई थी।
मुझे अटल जी ने नहीं रोका। मैंने कहा, आप चाहें तो मेरा इस्तीफा ले सकते हैं, उन्होंने कहा, न न। जाओ, ये तुम्हारी निजी आस्था का विषय है। शराब भी मेरी लिए सामाजिक विषय है। मैं सरकार के खिलाफ नहीं हूं। मैं शराब के खिलाफ हूं।
सवाल: मप्र में पंचायत चुनाव चल रहे हैं, उसमें सरकार ने OBC आरक्षण भी लागू कर दिया है। आप OBC आरक्षण को आप किस नजरिए से देखती हैं और पंचायत चुनाव का रिजल्ट 2023 के विधानसभा चुनाव पर क्या असर डालेगा?
उमा: 1996 में देवगौड़ा जी प्रधानमंत्री थे, तब महिलाओं के 33 परसेंट आरक्षण का प्रस्ताव आया था जिसके विरोध में सबसे पहले मैं ही खड़ी हुई थी। बाद में इसे वापस लिया गया।
मैं तो हमेशा से आरक्षण की पक्षधर रही हूं। मेरे मन में तो यहां तक है कि सरकारी नौकरियों की तरह प्राइवेट सेक्टर में भी आरक्षण हो। और इसमें गरीब तबके के सवर्णों को भी 10 परसेंट आरक्षण मिले।
सवाल: पंचायत चुनाव पर इसका क्या असर होगा?
उमा: कांग्रेस मप्र में खत्म हो चुकी है। उन्होंने सुसाइड किया है। उनके पास एक हीरा ज्योतिरादित्य जी थे। उन्होंने ग्वालियर में हमारा यानी BJP का सूपड़ा साफ कर दिया था। हमें सिर्फ दो विधानसभा सीटें मिली थीं।
उनको इतना अपमानित किया और दिग्विजय सिंह जी और कमलनाथ जी ने इतनी हंसी उड़ाई कि उनके पास अपनी अस्मिता को बचाने का कोई रास्ता नहीं बचा। आज कांग्रेस के पास कोई कैंपेनर तक नहीं है। कमलनाथ जी ज्यादा मेहनत कर नहीं पाते। दिग्विजय सिंह जी जहां जाते हैं, वहां वोट कम हो जाते हैं।
सवाल: मप्र में अगले साल चुनाव हैं। यहां की सियासत की बात आती है तो कहीं न कहीं नजरें आप पर टिकती हैं। जैसा आपने कहा कि मैंने सियासत से ब्रेक लिया है, तो क्या ये ब्रेक खत्म हो गया और 2023 में आपकी इच्छा है कि मप्र से ही सियासत में आएं। चुनाव लड़ें?
उमा: सियासत सिर्फ चुनाव लड़ने से नहीं होती। बिना MLA-MP के भी मेरी राजनीति चल ही रही है। मैं राजनीति कभी नहीं छोड़ूंगी। 2024 का चुनाव जरूर लडूंगी। 2023 में मेरी तरफ से MP के लिए जो भी कॉन्ट्रीब्यूशन हो सकेगा वो करूंगी।
सवाल: 2024 के चुनाव से अगर हम जोड़कर देखें तो आप लोकसभा चुनाव MP से लड़ना चाहती हैं या UP से ?
उमा: ये सवाल आपको BJP से करना चाहिए कि क्या आप उमा भारती को 2024 का चुनाव लड़ाएंगे और लड़ाएंगे तो कहां से लड़ाएंगे। राष्ट्रीय अध्यक्ष के पास ही इस सवाल का जवाब देने की अथॉरिटी है।
सवाल: आपकी कोई इच्छा ?
उमा: मैं UP, MP और उत्तराखंड कहीं से भी चुनाव लड़ सकती हूं। उत्तराखंड मेरा पसंदीदा राज्य है और जोधपुर मेरा पसंदीदा शहर है।
सवाल: गंगा सफाई आपका बहुत प्रिय सब्जेक्ट रहा है। अभी गंगा सफाई की स्थिति क्या है और क्या सियासी तौर पर गंगा को लेकर जो सरोकार हैं, वो सामाजिक से ज्यादा सियासी संदेश देने को लेकर हैं, खासतौर से गंगा सफाई की सफाई पर?
उमा: गंगा का अभियान तो सालों से चल रहा है। गंगा किनारे सिविलाइजेशन, इंडस्ट्रियलाइजेशन और फर्टिलाइजर से जो केमिकल आए उनसे गंगा गंदी हुई। मोदी जी ने इसमें सुधार किया है।
जब गंगा की मंत्री बनी तो अविरलता पर हमारे मतभेद थे, क्योंकि मेरा कहना था कि सेवन आईआईटी के कंसोर्टियम ने जो रिकमंड किया है, उसी के मुताबिक पानी छोड़िए। इससे जो पावर प्रोजेक्ट बंद होंगे, उससे जो क्षति होगी, उसकी भरपाई हम राज्य को केंद्र से करेंगे।
मैंने कोर्ट में शपथ पत्र दे दिया था कि गंगा पर पावर प्रोजेक्ट नहीं लगेंगे, जबकि यह तय हुआ था कि हम उर्जा और पर्यावरण मंत्रालय के साथ मिलकर शपथ पत्र देंगे। अब मेरे शपथ पत्र देने से वो कोर्ट की प्रॉपर्टी हो गई। उसे बदलना मतलब फिर नई समस्या खड़ी करना। इसलिए मेरा विभाग बदल दिया गया।
हालांकि गंगा के बारे में अब साइंटिस्ट की रिपोर्ट आ गई है कि गंगा की वाटर क्वॉलिटी में सुधार हो गया। क्योंकि कुछ एसटीपी फंक्शनल हो गए।
सवाल: यमुना भी बहुत मैली है। उसकी कोई बात नहीं होती। क्या गंगा की बात इसीलिए होती है कि उसके धार्मिक और सियासी मायने बड़े हैं?
उमा: ऐसा नहीं है। गंगा यानी गंगा और यमुना। सिर्फ बोलने में गंगा कहा जाता है। योजना दोनों के लिए बनी है।
सवाल: RSS प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि हर मस्जिद में मंदिर ढूंढना गलत है। क्या आप इस राय से सहमत हैं?
उमा: इस्लाम के मूल तत्व में जिहाद का कॉन्सेप्ट है। दूसरे धर्म के अस्तित्व को वो लगभग नहीं मानते। जैसे ईसाई हैं तो वो दूसरे धर्म के व्यक्ति को इग्नोरेंट मानते हैं और उसको नॉलेज प्रदान करना अपना परम कर्तव्य समझते हैं।
इस्लाम में ऐसा नहीं है। काफिर का कॉन्सेप्ट भी है। इन सब कारणों से आक्रमणकारियों ने बहुत मंदिर तोड़े। इस हिसाब से भागवत जी का कहना सही है, क्योंकि इसका तो अंत ही नहीं होगा।
लेकिन 1991 में जब अयोध्या, मथुरा और काशी के लिए विधेयक आया था, तब अयोध्या का मामला कोर्ट में था। विधेयक में ये था कि अयोध्या को छोड़कर बाकी को 1947 की स्थिति में रखा जाए। वो चीज मथुरा, काशी पर लागू नहीं हो रही है।
मैं उस विधेयक पर पार्टी की पहली प्रवक्ता बनाई गई थी और मैंने 1991 में ही कहा था कि अयोध्या के साथ इसमें काशी-मथुरा को भी जोड़ लो, क्योंकि मथुरा-काशी और अयोध्या में जो मस्जिदें हैं, वो मुसलमानों की सामान्य मस्जिदें हैं, लेकिन हिंदुओं के आस्था के वैसे ही स्थान हैं, जैसे मुसलमानों के लिए मक्का-मदीना हैं।
इसलिए इनको सामान्य स्थान माना तो शांति हो जाएगी। नहीं ये तो यह किसी दिन फिर अपना सिर उठाएंगे। और देखिए वही हो रहा है। बाकी मोहन भागवत जी ने जो कहा हम लोग तो उस पर टिप्पणी नहीं करते। संघ प्रमुख को हम भगवान की जगह देखते हैं। सर्वे की रिपोर्ट कोर्ट के पास है। वो फैसला सुनाएंगे। मेरी इच्छा वहां मंदिर बनता देखने की है।
सवाल: क्या आपको व्यक्तिगत तौर पर लगता है कि अति धार्मिकता या अति राष्ट्रवाद समाज में विरोध के स्वर पैदा करता है?
उमा: नहीं। अतिराष्ट्रवाद क्या है। अतिराष्ट्रवाद है कि, आप इच्छा रखें कि PoK हमारा होगा। मैंने पढ़ा जिस घर से अफजल निकलेगा, उस घर में घुसकर मारेंगे… ये क्यों निकला, क्योंकि कितने अफजल मारोगे हर घर से अफजल निकलेगा… ये नारा लगा। तो अतिवादी जो होते हैं, वो सब जगह होते हैं। हिंदू और मुस्लिम दोनों ही पक्षों को उदार होना होगा।
इस्लाम को भी रिफॉर्मेटिव होना पड़ेगा। नहीं तो वो कहेंगे कितने अफजल मारोगे, हर घर से अफजल निकलेगा, तो यहां भी एलिमेंट तैयार होने लग जाएंगे कि हर घर में घुसकर मारेंगे, जिस घर से अफजल निकलेगा। इसलिए हमें खराब चीजों की खुलकर निंदा करनी चाहिए।
नूपुर शर्मा पर पार्टी ने सही कार्रवाई की, क्योंकि उनका बयान पार्टी की नीति के खिलाफ था। नूपुर पर FIR दर्ज है। वो दबंग हैं। शेरनी हैं। उनके पुतले को फांसी लगा रहे हैं, उनके फोटो को जूतों से रौंद रहे हैं।
औवेसी को तुरंत इसकी निंदा करनी चाहिए थी। सारे मुस्लिम नेताओं को निंदा करनी चाहिए थी कि यह इस्लाम की तहजीब के खिलाफ है। इन्हीं कृत्यों से फिर ऐसे नारे निकलते हैं कि, जिस घर से अफजल निकलेगा, उस घर में घुसकर मारेंगे।
सवाल: मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और UP के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इन दोनों के काम के दायरे को आप कैसे देखती हैं ?
उमा: दोनों की परिस्थितियां अलग हैं। मप्र में हम 2003 से सत्ता में हैं। UP में 6 साल भी पूरे नहीं हुए। मप्र शांतिपूर्ण राज्य रहा है। यहां डीसेंट पॉलिटिक्स हुई। यहां शिवराज जी के सामने इतना ही चैलेंज था कि वायदों को अच्छे से पूरा करें और सरकार की निरंतरता बनाए रखें। इसमें उनका रोल बहुत बड़ा रहा और उन्होंने बहुत बेहतर तरीके से सरकार चलाई।
योगी को ऐसी स्थिति का सामना करना है कि प्रशासन ही सपा-बसपा में बंट गया था। कांग्रेस, BJP का तो राज्य में अस्तित्व ही खत्म हो गया था। वहां पर लोगों में राजनीतिक शुचिता भी नहीं थी। उस कल्चर को ठीक करना बहुत बड़ी चुनौती थी। वहां बुल्डोजर चलाना भी जरूरी था।
सवाल: योगी आदित्यनाथ और शिवराज सिंह चौहान में आपका पसंदीदा कौन है?
उमा: ऐसा नहीं बोल पाऊंगी, क्योंकि दोनों की परिस्थितियां अलग-अलग हैं।
सवाल: क्या मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने का दर्द आपको आज भी है?
उमा : मुझे हटाया नहीं गया था, बल्कि मैंने इस्तीफा दिया था। फिर कभी CM बनना भी नहीं चाहा। मुझे रोकने के लिए तो विधायक ट्रेन के सामने लेट गए थे।
सवाल: MP में सरकार लाने में आपका संघर्ष था और फिर आप कह रही हैं कि मैंने तो अपनी इच्छा से इस्तीफा दिया?
उमा : मैं यह कह नहीं रही हूं, ये तो फैक्ट है।
सवाल: तो वो कौन सी परिस्थितियां थीं, जिनमें आपको इस्तीफा देना पड़ा?
उमा: तिरंगे के कारण रिजाइन किया। तिरंगे की शान मुझे बड़ी लगी। हम तो देश के लिए मरने मिटने वाले लोग हैं।
सवाल: आप शराबबंदी को लेकर विरोध की आवाजें उठाती रहीं। आप खुद CM रहीं तब आपने क्या किया। नई पॉलिसी में कौन से बदलाव देखना चाहती हैं?
उमा: मैंने माफियाओं की कमर तोड़ी दी थी। शिवराज जी से भी पूर्ण बैन की मांग नहीं कर रही, लेकिन संशोधित नीति लागू करने में क्या दिक्कत है। हमारी नीति होनी चाहिए कि कैसे कम से कम शराब लोग पिएं। हमने नीति अपना ली है कि कैसे ज्यादा से ज्यादा लोग शराब पिएं।
जब BJP के ही वरिष्ठ नेता मेरी बात से सहमत हैं तो मैं समझ नहीं पा रही कि शिवराज जी सहमत क्यों नहीं हो रहे। ये सवाल आपको शिवराज जी से ही पूछना चाहिए।