महज 300 पौधे हर साल लाखों रुपए की कमाई का जरिया बन सकते हैं? यकीन नहीं हो रहा न तो आप दुबई से लौटे बाड़मेर के किसान गिरधारीलाल जांगिड़ की कहानी जरूर पढ़िए।
गिरधारी लाल 40 साल पहले दुबई गए थे। वहां लकड़ी का काम था। इसी दौरान वहां खजूर की खेती देखी। बस फिर क्या था, गिरधारीलाल ने अपना सामान पैक किया और साल 2010 में वहां से 300 खजूर के पौधे लेकर आए और बाड़मेर के धोरों में इसकी खेती शुरू की।
शुरुआती 4 साल में एक भी फल नहीं आया, लेकिन वह निराश नहीं हुए। पौधों की देखभाल जारी रखी। आखिर मेहनत रंग लाई और उसमें फल आने लगे। अब गिरधारी हर साल देश के अलग-अलग राज्यों में 15 लाख के खजूर बेचते हैं।
2014 में हुई पहली पैदावार
गिरीधारी के बेटे हरीश जागिड़ ने बताया कि 2010 में 12 बीघा में 300 खजूर के पौधे लगाए थे। चार साल तक पानी व गोबर खाद देकर पौधों की देखरेख की। पहली बार 2014 में पैदावार मिली। तब से हर साल खजूर की पैदावार बढ़ती जा रही है। अब हर सीजन में 3 से 4 टन की पैदावार होती है। लास्ट सीजन में 4 टन खजूर बेचे थे।
ड्रिप सिस्टम से डालते हैं पानी
हरीश जांगिड़ बताते हैं ट्यूबवैल लगा रखे हैं। खजूर के पौधों में बूंद-बूंद करके पानी दिया जाता है। इस तरीके से पानी भी कम वेस्ट होता है और सभी पौधों को बराबर मिल भी जाता है। खास बात यह है कि गर्मी कितनी भी पड़े, इससे खजूर पर कोई फर्क नहीं पड़ता। बारिश में खजूर का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। ज्यादा बारिश में खजूर को बचाने के लिए खजूर पर पॉलीथिन बांध दी जाती है।
खजूर में नमी के कारण रखते हैं स्टोरेज डोम
खजूर पकने के बाद उसे तोड़ते हैं, तब खजूर बहुत सॉफ्ट होते हैं। थोड़ा दबाने से खराब हो जाते हैं। इसके लिए पॉलीथिन व प्लास्टिक से बने डोम में रखते हैं। डोम में करीब एक-डेढ़ दिन रखने के बाद खजूर पक जाते हैं। इसके बाद इन्हें साइज के हिसाब से अलग-अलग पैक कर देते हैं।
हर पौधे की नंबरिंग, लोगों को देते हैं ट्रेनिंग
हरीश जांगिड़ ने बताया कि खजूर की खेती में 10 लोगों की जरूरत पड़ती है। ऑफ सीजन में भी 3-4 लोगों की टीम देखरेख करती है। पेड़ के ऊपर नंबरिंग भी की जाती है ताकि ध्यान रहे कि किस पेड़ पर कब काम करना है। गिरधारीलाल ने किसानों को खेती की ट्रेनिंग भी देते हैं। आसपास के कई किसान यहां से पौधे लेकर भी गए हैं।
फोटो-वीडियो: अश्वनी रामावत