साल 2012 की बात है, मैं दिल्ली के एक कब्रिस्तान में था। सारे साजोसामान के साथ। दूसरे छोर पर टीम के बाकी लोग। मैंने शूट शुरू किया, लेकिन एक के बाद सबकी बैटरी लो होने लगी। आखिर में वॉकी-टॉकी हाथ में लिया कि किसी को बुला सकूं, लेकिन वो भी धड़ाक से बंद हो गया। घबराया हुआ वहां से निकला। घर पहुंचा तो गले के पास गहरी खरोंच से खून रिस रहा था। वो दूसरी दुनिया से मेरी पहली मुलाकात थी।
धीरे-धीरे मैं उस काम में डूबता चला गया, जिसे सीधी-सादी जबान में भूतों से मुलाकात कहते हैं। दोस्तों में कोई डॉक्टर बना, कोई इंजीनियर तो कोई कुछ और, लेकिन मैं पैरानॉर्मल इनवेस्टिगेटर बन गया। ये वो काम नहीं, जिसमें एयर कंडीशन्ड कमरे में लैपटॉप ठकठकाना हो और शाम ढले घर लौटा जा सके। मैं देर रात घर से निकलता और सुबह लौटता। कभी उजाड़ जगहों पर जाता, कभी ऐसी इमारत में, जो सालों से बंद पड़ी है। अक्सर रातें कब्रिस्तान में बीततीं। साथियों के हंसी-ठहाकों की बजाए मेरे कानों में अजीबोगरीब चीखें गूंजती।
अगर कहूं कि हां, मैंने वाकई आत्माओं से मुलाकात की है, तो शायद कोई यकीन न करे। बहुत से लोग मुझसे दूर भागते हैं, कुछ हंसते हैं तो बहुतेरे डरते हैं। कोई-कोई ये भी सोचता है कि इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर होकर भी मैंने ये पेशा चुना, तो जरूर कुछ न कुछ गड़बड़ है। वे मुझे शक से देखते हैं। अजीबोगरीब उपकरणों के साथ रात को घर से निकलता और अलसुबह लौटता आदमी किसी के लिए नॉर्मल नहीं!
रांची के अपने छोटे से दफ्तर में बैठकर वकार राज जब ये कह रहे हैं तो उनके चेहरे पर कोई भाव नहीं। ये वो सपाटपन है, जो तब आता है, जब परेशानी आदत बन जाए। वे याद करते हैं- इतने साल बीते, किसी ने मेरी तनख्वाह नहीं पूछी। किसी ने प्रमोशन की बात नहीं की। कोई दोस्त मेरे लिए नई नौकरी लेकर नहीं आया, न ही किसी ने रिज्यूमे मांगा। हां, कई पुराने साथियों ने जरूर कहा कि मुझे अब इस काम से तौबा कर लेनी चाहिए। मुझे अपनी दुनिया में लौट जाना चाहिए।
मैं सब सुनता और चुप रह जाता हूं। नहीं कह पाता कि जैसे तुम किसी कंपनी या प्रोजेक्ट पर काम करते हो, मैं पैरानॉर्मल ताकतों की मदद के लिए काम करता हूं।
वकार संभली हुई भाषा में खुद को पैरानॉर्मल एक्टिविटी इनवेस्टिगेटर कहते हैं। वे मानते हैं कि आत्माओं के भी अपने दर्द होते हैं। वे बोलना चाहती हैं, बात करना चाहती हैं, छूकर प्यार जताना चाहती हैं, लेकिन कर नहीं पातीं। ऐसे में वो परेशान होकर उठा-पटक करने लगती हैं। बकौल वकार, वे उन्हें इसी दर्द से छुटकारा दिलाने की कोशिश कर रहे हैं।
ये अलग बात है कि दूसरी दुनिया से मुलाकात करते-करते मेरी अपनी ही दुनिया के लोग मुझसे खौफ खाने लगे।
पैरानॉर्मल की फील्ड वो गहरा दलदल है, जहां एक बार पांव पड़े तो मुश्किल से ही बाहर निकल सकते हैं। कम से कम वकार के तजुर्बे से तो यही लगता है। वे एक के बाद एक ऐसे कई वाकये गिनाते हैं, जहां कथित तौर पर ‘आत्माओं से कनेक्शन’ के कारण उनका नुकसान हुआ।
वकार एक के बाद एक कई वाकये गिनाते हैं, जहां कथित तौर पर ‘आत्माओं से कनेक्शन’ के कारण उनका नुकसान हुआ।
एक बार मेरी चेन्नई के किसी क्लाइंट से बात हो रही थी। डील पक्की हो गई, बस पैसे डालना बाकी था। उसी रात मैं एक कब्रिस्तान पहुंचा और वहां की तस्वीर अपने वॉट्सऐप पर लगा ली। रात के दो बजे होंगे। फोन पर क्लाइंट का मैसेज चमका- ये कौन-सी जगह है! मैंने बताया कि मैं पैरानॉर्मल इनवेस्टिगेशन का भी काम करता हूं। मैं आगे भी कुछ कहना चाहता था, लेकिन पता लगा कि उसने मेरा नंबर ही ब्लॉक कर दिया। शायद वो डर गया हो। या शायद ये सोचा हो कि ऐसी अजीब चीज पर काम करने वाला नॉर्मल नहीं हो सकता।
ऐसे मेरे कई प्रोजेक्ट छूटे। कई क्लाइंट्स छिटक गए। उनके लिए मेरी पहचान ही ऐसे आदमी की हो गई थी, जो भूत-भभूत जैसी चीजें मानता है और रातभर भटकता है।
सालों के काम ने मुझे सिखा दिया कि भूतों से मिलने-जुलने वाला आदमी भी अपने-आप में भूत जैसा ही लगता है। ये कहते हुए वकार हंस रहे हैं, तीखी भेदने वाली हंसी, जैसे मेरे दिमाग को भी स्कैन कर रहे हों।
वकार काफी उत्साह से पैरानॉर्मल की बातें करते हैं। अपने उपकरण दिखाते हैं। कनविंस करने की कोशिश करते हैं कि आत्माएं वाकई होती हैं। वे याद करते हैं- 10 सालों में 2 हजार से ज्यादा ऐसी जगहों पर जा चुका, जहां पैरानॉर्मल वाकये घटते थे। कभी कानों में जोरदार चीख की आवाज आती, तो कभी सामान यहां से वहां उछलता। परिवार से साथ कुछ बुरा होता तो लगता, जैसे ताकतें दूर रहने की वॉर्निंग दे रही हों।
कुछ समय पहले ऐसा लगातार हुआ था। ऐसे ही एक प्रोजेक्ट के सिलसिले में मैं दिल्ली के निगम बोध घाट पहुंचा। वहां पहले भी जा चुका था, तब भी मुझे वहां किसी अलग ताकत का अहसास हुआ था। हालांकि, तब मैं सही-सलामत लौट आया। अबकी बार पहुंचा तो कुछ बदला हुआ था। घर लौटकर सोया तो रात में चीख की आवाज से नींद खुल गई। आसपास कोई नहीं था। तभी एक फोन आया और पता लगा कि मेरे छोटे भाई की गाड़ी तालाब में डूबते-डूबते बची। हादसे का समय वही था, जब मैं श्मशान में शूट करने की कोशिश में था। इसके बाद जब भी मैं सोता, कानों में किसी भयंकर आवाज से जाग जाता।
ऐसा एक या दो नहीं, लगातार कई हफ्तों तक चला। बार-बार यही लगता कि कोई ताकत मुझसे नाराज है और सजा दे रही है। वो दौर काफी मुश्किल रहा। तब दवाओं की मदद लेनी पड़ी थी कि दिमाग की तनी हुई नसें खुल जाएं और नींद आ सके।
आत्माओं की मौजूदगी पर वकार गर्मजोशी से बात करते हैं। वे एक के बाद एक कई उपकरण दिखाते हैं, जिनसे उनके मुताबिक ‘घोस्ट डिटेक्शन’ में मदद मिलती है। इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड डिटेक्टर से इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फ्रीक्वेंसी चेक होती है। ये उन तमाम जगहों पर होती है, जहां भी मोबाइल टावर, वाईफाई राउटर या सड़क के नीचे तार जा रहे हों। बस फर्क ये है कि आमतौर पर फ्रीक्वेंसी स्थिर होती है, जबकि जहां आत्माएं हों, वहां ये बदलती रहती है।
हम हवा में सवाल करते हैं, लेकिन डिजिटल वॉइस रिकॉर्डर में जवाब कैद हो जाता है। अक्सर ये फुसफुसाहट होती है। कई बार चीखें और रोने की आवाज भी आती है। बेहद आधुनिक एसएलएस गोस्ट कैमरा होता है, जिसमें वो चीजें दिख पाती हैं, जिन्हें हम नंगी आंखों से नहीं देख पाते। इनके अलावा नाइट विजन फुल स्पेक्ट्रम कैमरा, कंपास और वॉकीटॉकी हमारे पास हरदम रहते हैं।
कथित तौर पर घोस्ट डिटेक्शन में मदद करने वाली चीजें दिखाते वकार को टोकते हुए मैं पूछती हूं- आप 10 सालों से ये काम कर रहे हैं। किस तरह के लोग आपको बुलाते हैं? और आप कितनी मदद कर पाते हैं?
सभी तरह के। आपकी तरह भी- वकार का जवाब आता है। कल्पना कीजिए, किसी ऐसे अपार्टमेंट की, जो ऐन शहर के बीच भी खाली पड़ा हो। लोगों को शक रहता है कि वहां कुछ है, जो नॉर्मल नहीं। तब प्रॉपर्टी के मालिक हमें बुलाते हैं।
कुछ वक्त पहले दिल्ली की घनी आबादी के बीच एक बिल्डिंग से कॉल आया। घबराई हुई आवाज। दरअसल वहां की बेसमेंट पार्किंग में सालभर के भीतर कई सिक्योरिटी गार्ड्स ने खुदकुशी कर ली। कोई एकाध दिन भी ड्यूटी पर रहा तो अजीबोगरीब हरकतें करने लगा। अब पार्किंग छोड़िए, पूरी इमारत में ही कोई गार्ड काम करने को तैयार नहीं था।
खोजबीन की, तो दबी जबान में वहीं रहनेवालों ने बताया कि वहां एक बच्चे की दर्दनाक मौत हुई थी, जिसके बाद ही हादसे होने लगे। हम वहां पहुंचे। बहुतेरी कोशिशें कीं, लेकिन उस जगह पर सबकुछ पहले जैसा नहीं हो सका। हम लौट आए। ये भी हमारे प्रोफेशन का एक हिस्सा है- हार मान लेना।
कोई यकीन करे, न करें, लेकिन हम जानते हैं कि हम किनसे डील कर रहे हैं। वकार बार-बार दोहराते हैं।
मैं उनसे उस बेसमेंट का नाम बताने को कहती हूं, वकार इनकार कर देते हैं। ‘लोग बीमारी से उतना नहीं मरते, जितना खौफ से मर जाते हैं।’... वे कहते हैं।
वकार से मुलाकात के दौरान रांची में जोरदार बारिश हो रही थी। पानी कुछ थमा तो हम कथित घोस्ट डिटेक्टर चीजें लेकर बाहर निकले। वो शहर का बाहरी हिस्सा था, जहां वकार के मुताबिक पैरानॉर्मल चीजें हो सकती हैं। पेड़ों से घिरी उस जगह पर पहुंचते ही वकार ने अलर्ट करते हुए कहा कि यहां सांप-बिच्छू हो सकते हैं।
ये इस पेशे का एक और खतरा है। खंडहरों, जंगलों या सालों से बंद गोदाम में काम करते हुए कभी सांप पर पांव पड़ता है, तो कभी कोई जंगली जानवर ही सामने पड़ जाता है। आत्माएं भले हमारा कुछ न बिगाड़ें, लेकिन सांप का जहर जान ले लेगा। देश-विदेश में कई पैरानॉर्मल इनवेस्टिगेटर्स के साथ ऐसे हादसे हो चुके। हालांकि, आत्माओं की आवाज सुनने, उनकी मदद की इच्छा के आगे जहर का डर हल्का पड़ जाता है।
कभी ऐसा वक्त आया, जब आपने इस काम को छोड़ने का सोचा? कई बार! एक नहीं, कई बार मैंने इससे दूरी बनानी चाही। जब नींद आने के बाद भी सो नहीं पाता था, आंखें जलती रहतीं, तब भी सोचा था कि अब बाकियों की तरह काम करूं। जब फैमिली में हादसे हुए, तब भी लगा जैसे किसी ताकत का गुस्सा ऐसा कर रहा है।
पिछले साल कोविड की दूसरी लहर में भी मैं काफी परेशान रहा था। लोग कॉल करते और अपने मरे हुए पिता-मां-पति-पत्नी से बात करना चाहते। वे उनकी आत्मा से एक आखिरी बार बात करना चाहते थे। उसी समय मेरे घर पर भी दो मौतें हुई थीं। मैं बहुत परेशान रहा। कई बार सोचता कि अब ये काम नहीं कर सकूंगा, लेकिन फिर लौट आता।
पक्का नहीं हूं, लेकिन शायद वे ताकतें भी मुझे छोड़ना नहीं चाहतीं- वकार थूक गटकते हुए से कहते हैं!