दुबई-थाईलैंड तक सप्लाई होने वाला सीकर का प्याज आज खुद की हालत पर रो रहा है। कोरोना के बाद अब मौसम की मार ने मीठे प्याज के स्वाद को कड़वा कर दिया है। पहले सर्दी और अब तेज गर्मी ने तैयार फसल को खराब कर दिया है। प्याज दो दिन में ही खराब होने से सप्लाई भी नहीं हा पा रहा। हालत ये है कि, किसानों को लागत से दुगुना घाटा हुआ है।
दरअसल, देश में महाराष्ट्र के नासिक के बाद शेखावाटी के सीकर का मीठा प्याज पसंद किया जाता है। हर साल बंपर पैदावार से किसानों को लाखों का मुनाफा होता है। मगर इस बार किसानों को प्रति क्विंटल लागत के हिसाब से 2 से 3 लाख का घाटा हुआ है। किसानों को 16 रुपए लागत से तैयार एक किलो प्याज के 5 रुपए ही मिल रहे हैं। स्पेशल रिपोर्ट में पढ़िए शेखावाटी का मीठा प्याज कैसे किसानों के लिए कड़वा साबित हो रहा है...
किसानों को भी नहीं मिल पा रही लागत
किसानों का कहना है कि इस बार तो लागत भी नहीं निकल पाई है। एक बीघा फसल तैयार करने से मंडी तक पहुंचाने में करीब 3 से 5 हजार रुपए का खर्च आता था। महंगाई बढ़ने पर अब खर्च बढ़कर 10 से 12 हजार रुपए हो चुका है। पिछली बार मंडी में भाव 6 से 9 रुपए प्रति किलो थे। इस बार पिछले डेढ़ महीने से थोक भाव औसतन 5 रुपए किलो बने हुए हैं। ऐसे में मुनाफा तो दूर किसानों को घाटा झेलना पड़ रहा है।
मौसम की मार का पड़ा असर
सीकर के प्याज कारोबारी झाबर कुल्हरी ने बताया कि सीकर में इस बार तेज सर्दी के साथ ही गर्मी ने भी हालत खराब कर रखी हैं। मार्च की शुरुआत से ही तेज धूप पड़ने लगी थी। फसल को पूरा पानी भी नहीं मिल पाया। गर्मी के डर से किसानों ने फसल को समय से पहले ही काटना शुरू कर दिया था। ऐसे में प्याज की पैदावार तो बंपर हुई, लेकिन क्वालिटी का प्याज तैयार नहीं हो पाया। इस कारण दो दिन में खराब हो रहा हैं।
किसान और कारोबारी दोनों निराश
मीठे प्याज की खेती करने वाले किसान और कारोबारी दोनों ही इस बार निराश है। मौसम में लगातार बदलाव के चलते प्याज की क्वालिटी की फसल तैयार नहीं हो पाई। इस कारण करीब डेढ़ महीने से प्याज के भाव में बढ़ोतरी नहीं हुई है। वहीं इस बार प्याज की जो फसल तैयार हुई है वह कुछ दिनों में ही खराब हो रही है। ऐसे में उसका लंबी दूरी तक और ट्रांसपोर्टेशन भी नहीं किया जा सकता है। जिसके चलते व्यापारियों को भी प्याज की बिक्री से अच्छा मुनाफा नही मिल पा रहा है। इस साल से पहले किसानों को फायदा होता था। किसानों को प्रति किलो 7 से 10 रुपए भी मिले हैं।
सीकर के प्याज की विदेशों तक डिमांड
सीकर के मीठे प्याज की देश ही नहीं विदेशों में भी डिमांड है। बड़ी मात्रा में दूसरे देशों में एक्सपोर्ट किया जाता है। देश में हरियाणा, पंजाब और पड़ोसी राज्यों तक सप्लाई किया जाता है। शेखावाटी में सबसे ज्यादा सीकर और धोद में प्याज की बुवाई की जाती है। यहां फसल को पर्याप्त मात्रा में पानी मिलता है। साथ ही मिट्टी भी प्याज के फसल के लायक होती है।
हर साल 6000 करोड़ से ज्यादा का कारोबार
कारोबारियों की माने तो सीकर में सालों में हर साल प्याज का कारोबार 6000 करोड़ से ज्यादा होता है। इसके साथ ही पिछले साल 19000 हैक्टेयर क्षेत्र में प्याज की बुवाई हुई थी। इस बार भाव ठीक न मिल पाने के कारण कारोबार कम रहने की संभावना है।
किसानों को लागत से दोगुना घाटा
किसान बनवारी लाल ने बताया कि इस बार लागत से दोगुना घाटा हुआ है। किसानों को मंडी में प्रति किलो भी 5 रुपए ही मिल रहे हैं। करीब 3 लाख 60 हजार रुपए की लागत से प्याज की फसल तैयार की। बेचने पर करीब 1 लाख 60 हजार रुपए ही मिले हैं। पिपराली इलाके के किसान हरि ने बताया कि 1 लाख 50 हजार की लागत के बदले केवल 50 हजार रुपए ही मिले हैं।
बालू मिट्टी और पानी के कारण मीठा होता है
कृषि अनुसंधान केंद्र फतेहपुर कैलाश वर्मा ने बताया कि सीकर के अधिकतर इलाकों में बालू मिट्टी हैं। इसमें हवा का आदान प्रदान ठीक तरह से होता रहता है। इसके साथ ही यहां प्याज की फसल को पानी भी पर्याप्त मात्रा में मिलता है। यही कारण है कि सीकर इलाके का प्याज अन्य क्षेत्रों की बजाए मीठा होता है।