यूपी के मदरसों में अंग्रेजी, विज्ञान और गणित पढ़ाने वाले शिक्षकों को 60 महीने से सैलरी नहीं मिली है। 3 मई को आने वाली ईद की वजह से शिक्षक एक बार फिर से सैलरी भुगतान के लिए सीएम योगी और अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री दानिश आजाद अंसारी से गुहार लगा रहे हैं। उनके ट्वीट के कमेंट बॉक्स में अपनी खराब होती आर्थिक स्थिति को बता रहे हैं। विभाग अभी चुप्पी साधे हुए है।
सवाल है कि 60 महीने से केंद्र सरकार ने सैलरी क्यों नहीं दी? स्कीम शिक्षा मंत्रालय से अल्पसंख्यक मंत्रालय को ट्रांसफर हो गया तो फिर कहां पेंच फंस गया? बिना सैलरी के किन स्थितियों में शिक्षक हैं? सैलरी की मांग के लिए उनका अगला कदम क्या होगा? आइए बारी-बारी से सब बताते हैं।
मदरसों को आधुनिक शिक्षा से जोड़ा गया
यूपी में कुल 19,213 मदरसे हैं। इसमें 14,677 तहतानिया यानी प्राइमरी स्तर और फौकानिया यानी जूनियर हाईस्कूल स्तर के हैं। 4,536 मदरसे आलिया के तहत हैं जहां उर्दू, अरबी और फारसी की पढ़ाई होती है। 19 हजार मदरसों में 7,356 मदरसे सीधे सरकार से अनुमोदित हैं। 20,965 शिक्षक इन मदरसों में बच्चों को हिन्दी, गणित, अंग्रेजी, विज्ञान और कम्प्यूटर पढ़ाते हैं।
2009 में सरकार ने SPQEM के तहत मदरसों में बेहतर शिक्षा के लिए अध्यापकों की भर्ती की।
ये सभी शिक्षक SPQEM के अंतर्गत मदरसों में पढ़ाने का काम कर रहे हैं। यह स्कीम 1993 में शुरू हुई थी लेकिन 2008 में इसे बड़े स्तर पर लांच किया गया और नाम दिया गया "स्कीम फॉर प्रोवाइडिंग क्वालिटी एजूकेशन इन मदरसा।" मकसद था कि मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों को न सिर्फ धार्मिक बल्कि आधुनिक शिक्षा दी जाए। यह योजना पूरी तरह से केंद्र सरकार की थी इसलिए इसका पैसा भी केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय ने जारी किया।
सैलरी कम थी इसलिए राज्य ने भी देना शुरू कर दिया
केंद्र सरकार ने ग्रेजुएट शिक्षकों को 6000 और पोस्ट ग्रेजुएट शिक्षकों को 12 हजार रुपए महीने वेतन देना तय किया। शुरुआत में यह योजना बढ़िया तरीके से चली। हर साल बजट जारी होते। हर महीने शिक्षकों को सैलरी मिल जाती। 2013 से केंद्र सरकार भुगतान देने में देरी करने लगी। 2013-14 में बकाया जहां 59 लाख था वहीं 2014-15 में यह 8.01 करोड़ पहुंच गया।
2016 में उस वक्त यूपी की अखिलेश सरकार ने ग्रेजुएट शिक्षकों को हर महीने 2000 और पोस्ट ग्रेजुएट शिक्षकों को 3000 रुपए अपनी तरफ से देने का फैसला किया। 2017 में बनी बीजेपी सरकार ने भी इसे बरकरार रखा लेकिन केंद्र बजट देने में लगातार पिछड़ता गया। 2017-18 में बकाया राशि 266.69 करोड़ पहुंच गई।
राज्य ने ग्रेजुएट शिक्षकों को 2000 और पोस्ट ग्रेजुएट शिक्षकों को 3000 रुपए प्रति माह देने का फैसला किया।
2018 में केंद्र सरकार ने अपने हिस्से के बजट को कम कर दिया
2018 में केंद्र सरकार ने इस स्कीम में राज्य को भी शामिल कर लिया। मानव कल्याण विकास मंत्रालय ने खर्च को 60:40 में बांट दिया। यानी 60% केंद्र सरकार देगी और 40% खर्च राज्य सरकार देगी। जिस वक्त ये फैसला लिया जा रहा था उस वक्त तक 30 महीने से मदरसा शिक्षकों की सैलरी नहीं आई थी। 6 सितंबर 2018 को वह दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना प्रदर्शन कर रहे थे।
उस वक्त के एमएचआरडी मिनिस्टर प्रकाश जावड़ेकर से मदरसा शिक्षक संघ के पदाधिकारियों ने मुलाकात की थी तब उन्होंने कहा था कि अगले दो महीने यानी नवंबर 2018 तक बजट जारी कर दिया जाएगा। हालांकि, ऐसा हुआ नहीं। शिक्षक संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष एजाज अहमद एक और बात बताते हैं, वह कहते हैं, 2014 में पीएम मोदी ने मदरसों की स्थिति सुधारने के लिए 375 करोड़ रुपए का बजट जारी किया लेकिन प्रकाश जावड़ेकर ने उसे 120 करोड़ कर दिया।
राज्य सरकार को 40% देने थे लेकिन वह केंद्र सरकार के 60% का इंतजार करती रही
2018 में यह तो तय हो गया कि राज्य सरकार को 40% पैसे देने हैं लेकिन वह केंद्र सरकार के 60% का इंतजार करती रही। इस दौरान शिक्षकों को राज्य की तरफ से मिलने वाला 2000 और 3000 ही मिलता रहा। प्रदेश अध्यक्ष आरिफ उस्मानी ने बताया, "राज्य सरकार भी हर हर महीने रेगुलर पैसे नहीं देती, कई बार 4-5 महीने बीत जाते हैं लेकिन हां, साल भर के अंदर सब दे दिया जाता है।"
जनवरी 2022 में मदरसा शिक्षक दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करने पहुंचे थे।
MHRD मिनिस्ट्री ने अल्पसंख्यक विभाग को स्कीम सौंपी तो बकाया लटक गया
2021 में केंद्र सरकार ने बड़ा फैसला लेते हुए एसपीक्यूईएम को MHRD मिनिस्ट्री से अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय को ट्रांसफर कर दिया। जिस वक्त यह फैसला लिया गया उस वक्त शिक्षकों का बकाया 777.51 करोड़ पहुंच गया।
लखनऊ से लेकर दिल्ली तक शिक्षकों का प्रदर्शन जारी रहा
सैलरी नहीं मिलने को लेकर शिक्षक संघ लगातार प्रदर्शन करता रहा। कभी देशभर के मदरसा शिक्षक दिल्ली के जंतर-मंतर पर इकट्ठा हुए तो कभी यूपी के शिक्षक लखनऊ के जीपीओ पार्क में धरने पर बैठे। केंद्र सरकार के प्रोजेक्ट अप्रूवल बोर्ड की बैठक हुई, बैठक में 17,306 पोस्ट ग्रेजुएट और 3,659 ग्रेजुएट शिक्षकों को सैलरी देने के लिए यूपी की सरकार ने 275.55 करोड़ का बजट तैयार किया। लेकिन इसमें से 200 करोड़ को ही पास किया गया।
उस वक्त यूपी मदरसा शिक्षा बोर्ड के रजिस्ट्रार आरपी सिंह ने कहा था कि मदरसा शिक्षकों की सैलरी के लिए पैसा सैंक्शन हो गया है लेकिन कितना हुआ है इसके बारे में वह जानकारी नहीं दे सके। आरपी सिंह ने कहा, राज्य सरकार अपनी तरफ से काम कर रही है। उसने बकाया राशि जारी करने के लिए के लिए दो बार केंद्र सरकार को चिट्ठी लिखी है।
लखनऊ के जीपीओ पार्क में बड़ी संख्या में शिक्षक प्रदर्शन कर रहे थे।
मंत्रालय बदला तो सैलरी फंसने का डर बढ़ गया
बहराइच के मसूदिया-दारुल-उलूम में पढ़ाने वाले और मदरसा शिक्षक संघ के पदाधिकारी सिकंदर बताते हैं कि हमने इस स्कीम को बचाने और बाकी सैलरी के लिए बहुत संघर्ष किया। लखनऊ में दिन-रात बैठे रहे। विभाग के मंत्रियों और अधिकारियों से मिलते रहे। नतीजा यह रहा कि स्कीम बंद करने जैसी स्थिति नहीं आई और इसे अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय को सौंप दिया गया।
सिकंदर बताते हैं, "जब विभाग बदला गया तो शिक्षकों के दिमाग में यह शंका आ गई कि क्या अब बाकी की सैलरी मिलेगी? ऐसा इसलिए जब एमएचआरडी से सैलरी की मांग हुई तो उसने कह दिया विभाग बदल गया है अब हमारी जिम्मेदारी नहीं, अल्पसंख्यक विभाग से मांग हुई तो उसने कह दिया वह बकाया एमएचआरडी के वक्त का था। इससे शिक्षक सैलरी को लेकर शंका में रहे।"
शिक्षकों का बकाया 942 करोड़ पहुंच गया
2013 से भुगतान में जो देरी शुरू हुई वह 2021-22 तक पहुंचते-पहुंचते 942.84 करोड़ पहुंच गई। एक एक शिक्षक का बकाया 4 लाख रुपए हो गया है। शिक्षक संघ की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जमशीदा ने बताया, मेरे जानने वाले मोहम्मद आजम गोरखपुर में मदरसा के टीचर थे, पिछले साल कोरोना हो गया, परिवार के पास इलाज के लिए पैसा नहीं था और उनकी मौत हो गई।
कोरोना संकट के बीच कई शिक्षक कोरोना से संक्रमित हुए तो उन्हें इलाज के दौरान पैसे की किल्लत का सामना करना पड़ा था।
जमशीदा कहती हैं, "राज्य सरकार अपने स्तर पर कोशिश करती नजर आती है, वह अपने हिस्से का पैसा तो भेज देती है लेकिन केंद्र सरकार ऐसा नहीं कर रही है। वहीं दूसरी ही लाइन में कहती हैं कि केंद्र और राज्य के बीच जो 60:40 की बात हुई थी उसमें भी अगर राज्य 40% देता तो लोगों को इतनी मुसीबतों का सामना नहीं करना पड़ता। लेकिन वह ऐसा नहीं कर रहे हैं।"
शिक्षकों की आगे की क्या तैयारी है
आगे की तैयारी को लेकर प्रदेश अध्यक्ष सिकंदर ने बताया कि नई सरकार को नया सेटअप बैठाने में 100 दिन लगते हैं। हम 100 दिन कुछ भी नहीं बोलेंगे। नए अल्पसंख्यक मंत्री दानिश साहब ने भी हमारे हित में फैसला लेने की बात कही थी इसलिए हम आगे अभी किसी भी तरह के प्रदर्शन की नहीं सोच रहे हैं।
सोशल मीडिया पर 5 मई को लखनऊ में धरने के लिए चलने की अपील वाले पोस्ट को लेकर पूछने पर सिकंदर ने बताया, "यह फर्जी है। शिक्षक संघ इस वक्त किसी भी तरह के कोई विरोध प्रदर्शन की नहीं सोच रहा है। हम अपनी मांग को सोशल मीडिया के जरिए लगातार रखते रहेंगे। ईद से पहले कोई फैसला हो जाता तो हमारी ईद खुशनुमा हो जाती।