घुमंतू समुदाय बावरिया से संबंध रखने वाले मजदूर टीकूराम और उनकी पत्नी नान्ति देवी के बेटी हुई। शुरू में बेटी रजनी बावरिया आम बच्चों की तरह ही थी। लेकिन, उम्र बढ़ने के बाद भी उसकी एक्टिविटी पांच साल के छोटे बच्चे जैसी ही थी। परिवार झोपड़ी में रहता था। मजदूरी का काम करने वाले माता-पिता ख़राब आर्थिक स्थिति के चलते उसका इलाज नहीं करवा सके। मानसिक रूप से कमजोर अब 14 साल की उसी रजनी ने भुवनेश्वर (उड़ीसा) नेशनल पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 1500 मीटर दौड़, लम्बी कूद में दो सिल्वर मेडल और 400 मीटर दौड़ में एक ब्रॉन्ज मेडल जीता है। पढ़िए उसी रजनी के हौसले की कहानी ...
चैंपियनशिप में दौड़ लगाती रजनी।
6 भाई-बहन, माता-पिता मजदूरी करते हैं
रजनी की बड़ी बहन सरिता बावरिया ने बताया कि वे 6 भाई-बहन हैं। पिता टीकूराम और माता नान्ति देवी दोनों मजदूरी करके अपना परिवार चलाते हैं। पहले सीकर शहर में बाहरी इलाके में झोपड़ियों में रहते थे। सरिता के स्पोर्ट्स में आने के बाद कोच महेश नेहरा ने ही मदद की और उन्हें दो कमरों का एक घर बनवाकर दिया। इसके साथ ही रजनी के बाकी भाई-बहनों को ट्रेनिंग दी। बड़ी बहन सरिता और भाई साबरमल कई खेलों में ऑलराउंडर हैं जिन्होंने स्टेट और नेशनल लेवल पर भी मेडल जीते हैं।
रजनी ने 20वीं नेशनल पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में तीन मेडल जीते हैं।
रजनी की स्पोर्ट्स में रुचि देखते हुए उसने अपनी कॉलेज की पढ़ाई के साथ-साथ ट्रेनिंग दी। पैसों के अभाव के चलते बिना जूतों के ही सड़कों, बीहड़ों और सीकर के आस-पास के पहाड़ों में प्रैक्टिस करवाई। रजनी मानसिक रूप से कमजोर है। जब वह दौड़ती तो लोग ताने मारते कि ये तो बावरिया जाति की है।
मेंटर महेश नेहरा और बहन सरिता के साथ रजनी।
पढ़ाई में कमजोर, लेकिन स्पोर्ट्स में आगे
रजनी बावरिया की बड़ी बहन सरिता ने बताया कि रजनी भले ही पढ़ाई में कमजोर है, लेकिन उसने स्पोर्ट्स में हमेशा रूचि रखी। जब रजनी पांचवी क्लास में थी तब से ही वह लगातार प्रैक्टिस करते हुए आ रही है। स्कूल में भी उसे पढ़ाई के साथ-साथ स्पोर्ट्स के लिए भी हमेशा प्रोत्साहित किया जाता है।
रजनी के माता-पिता दोनों मजदूरी करते हैं।
बिना जूतों के ज्यादा तेज दौड़ती है रजनी, पेड़ पर लगे फल को कुछ देर में तोड़ लाती है
मेंटर महेश नेहरा ने बताया कि रजनी ने उड़ीसा नेशनल पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 1500 मीटर दौड़ 6.5 मिनट में पूरी की है। कुछ सैकंड के अंतर के कारण वह दूसरे नंबर पर रही। महेश ने बताया कि रजनी बिना जूतों के ज्यादा तेज दौड़ती है। इसके साथ ही रजनी को पेड़-पौधों का भी काफी शौक है। वह पेड़ पर लगे किसी भी फल को कुछ ही सैकंड में तोड़कर ले आती है।
गाइड करने वाला मेंटर भी दिव्यांग
रजनी बावरिया के मेंटर महेश नेहरा खुद एक हाथ से दिव्यांग है। उन्होंने एशियन एथलेटिक्स में पंद्रह सौ मीटर रेस में चौथा स्थान प्राप्त किया था। नेशनल स्तर पर वॉलीबॉल भी खेला हुआ है। राज्य का महाराणा प्रताप खेल पुरस्कार भी मिला हुआ है। रजनी को ट्रेनिंग उनकी बड़ी बहन सरिता ने ही दी है, लेकिन महेश समय-समय पर रजनी को गाईड करते रहते थे।
पिछले एक साल से महेश रजनी को गाईड करते। एक साल से उन्होंने सीकर की ही एक रेजीडेंसी के खेल ग्राउंड में प्रैक्टिस करवाई। चैंपियनशिप शुरू होने से पहले महेश रजनी को अपने साथ जयपुर ले गए। यहां उन्होंने खुद के खर्चे पर रखा और एक महीने तक जयपुर में प्रैक्टिस करवाई।
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय गोकुलपुरा (सीकर) के प्रिंसिपल बनवारी लाल ने बताया कि खराब हालत के बावजूद अभिभावकों ने इनको सदैव आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया और इनके उच्च लक्ष्य व कठिन परिश्रम का ही परिणाम है कि रजनी इस मुकाम तक पहुंची। इसका लक्ष्य एक दिन पैरा ओलंपिक एथलेटिक्स में गोल्ड मेडल प्राप्त कर देश का नाम रोशन करने का है।