इस वक्त जो स्थिति यूक्रेन की है, वही स्थिति वहां से MBBS कर रहे भारतीय स्टूडेंट्स की है। हजारों स्टूडेंट्स अभी भी वॉर जोन में फंसे हुए हैं। जो स्टूडेंट्स अपने वतन लौट आए, उनका जीवन तो सुरक्षित हो गया, लेकिन भविष्य अधर में है। सबके मन में एक ही सवाल है-क्या यूक्रेन में कभी परिस्थितियां सामान्य हो पाएंगी और वे लौटकर अपनी MBBS पूरी कर पाएंगे?
यूक्रेन-रूस युद्ध के बीच एक और सवाल है, जो सबसे ज्यादा पूछा जा रहा है..भारतीय स्टूडेंट्स MBBS करने विदेश क्यों जाते हैं?
इसके जवाब में 3 तर्क दिए जा रहे हैं।
-विदेश में MBBS करने वही जाते हैं, जिनकी कमजोर रैंक होती है और भारत के मेडिकल कॉलेजों में पढ़ने के लायक नहीं होते।
-भारत के प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में फीस बहुत ज्यादा वसूली जाती है, उससे एक चौथाई रुपए में विदेश से MBBS कर सकते हैं।
-जितने स्टूडेंट्स हर साल NEET देते हैं, उसके मुकाबले 10 प्रतिशत भी मेडिकल सीटें नहीं हैं, ऐसे में दूसरे देशों में जाकर MBBS करना पड़ता है।
भास्कर ने इन तीनों तर्कों का एक्सपट्र्स और आंकड़ों की मदद से एनालिसिस किया। सबसे पहले जानिए क्या वही स्टूडेंट्स विदेश में MBBS करने जाते हैं, जिनकी कमजोर रैंक होती है और भारत में पढ़ने के लायक नहीं होते….
कल पढ़िए भारत और विदेशों में फीस के अंतर और मेडिकल सीटों का एनालिसिस