मीठे पानी से मीठे प्याज की पैदावार करने वाला सीकर स्वाद की दुनिया में भी खास पहचान रखता है। यहां का एक जायका 150 साल से भी ज्यादा पुराना है। इसकी क्वालिटी और स्वाद आज भी वैसे ही बरकरार है। यूं तो आपने देश के कई शहरों में लड्डुओं का स्वाद चखा होगा, लेकिन देशी घी में तैयार होने वाले सीकर के लजीज लड्डुओं का टेस्ट आप शायद ही भूल पाएंगे। पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत जब तीन बार राजस्थान के सीएम थे तो उनके शपथ ग्रहण समारोह में यहीं से लड्डू भेजे जाते थे। राजस्थानी जायका की आज की कड़ी में आपको ले चलते हैं सीकर की उन दुकानों पर जहां 150 सालों से लड्डू बन रहे हैं।
राजाओं के जमाने से शुभ कार्य में लड्डू बांटे जाने की प्रथा चली आ रही है। तब मिठाइयों की कोई ज्यादा वैराइटी नहीं होती थी। यहां के गिनोड़िया अग्रवाल परिवार हलवाई का काम करते थे। पहली बार करीब 150 साल पहले लादूराम गिनोड़िया ने लड्डू बनाने का काम शुरू किया। देशी घी में बूंदी की अच्छे से सिकाई और संतुलित मीठे में हाथ से तैयार होने वाले लड्डू का स्वाद लोगों की जुबान पर चढ़ने लगा। लादूराम एक ब्रांड बन गया। बाद में मूलजी बोहरा और गोवर्धन जी दीक्षित ने भी लड्डू बनाने की इस परंपरा को आगे बढ़ाया। आज सीकर की 100 से ज्यादा मिठाई की दुकानों पर लड्डू तैयार होते हैं।
सवामणी के लिए प्रसिद्ध हैं लड्डू
खाटूश्याम जी मंदिर, जीण माता मंदिर, हर्षनाथ का मंदिर सीकर जिले के प्रसिद्ध मंदिर हैं। इनके भक्त गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा से लेकर कई राज्यों में हैं। मंदिर में आने वाले श्रद्धालु मन्नत पूरी होने पर यहां के लड्डुओं की सवामणी (50 किलो लड्डुओं का प्रसाद) करते हैं। हलवाई पवन कुमार दीक्षित ने बताया कि खाटू श्याम के मेले में भी लड्डुओं की खास डिमांड रहती है। दूर दराज से आने वाले लोग खाटू में सवामणी के लिए कई दिन पहले ही बुकिंग करते हैं।
सीकर के इतिहासकार महावीर पुरोहित ने बताया कि यहां के लड्डू मशीन से नहीं बनाए जाते। हलवाई पारंपरिक तरीके से भट्टियों पर बूंदी तैयार करते हैं। फिर हाथों से लड्डू तैयार करते हैं। देशी घी में तैयार होने के कारण स्वाद बेहतरीन होता है। पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोसिंह शेखावत उनके लड्डुओं के काफी दीवाने थे। पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद जब वे सीकर पहुंचे तो लड्डुओं से ही उनका मुंह मीठा कराया गया। यहां तक कि उनके जयपुर में शपथ ग्रहण समारोह में सीकर से स्पेशल लड्डू भेजे गए थे। आजादी से पहले 1936 में जब लाल बहादुर शास्त्री सीकर आए तो वे भी खुद को लड्डुओं का स्वाद चखने से रोक नहीं पाए।
ऐसे तैयार होते हैं लड्डू
लड्डुओं को बनाने के लिए सबसे पहले बेसन का घोल तैयार करते हैं। घोल को काफी देर तक घोटा जाता है। इसके बाद लकड़ी से जलने वाली भट्टी पर देशी घी के में बूंदी तैयार करते हैं। बूंदी की सिकाई अच्छे से की जाती है। बूंदी का दाना मीडियम साइज का रखते हैं। इस दौरान चीनी की चाशनी तैयार की जाती है। अब इसमें देशी घी में सिकी बूंदी को भिगोया जाता है। चाशनी में नरम होने के बाद बूंदी में इलायची और मगज (तरबूज के बीज) मिक्स करते हैं। इसके बाद कारीगर हाथ से ही बूंदी के लड्डू तैयार करते हैं। कई बार लड्डुओं में हरे और लाल रंग की बूंदी भी मिलाते हैं।
सीकर के हलवाई पवन कुमार दीक्षित बताते हैं कि करीब 100 वर्ष पूर्व उनके पिता गोवर्धन के दादा रामेश्वर लालजी ने लड्डू बनाने का काम शुरू किया था। आज 6 पीढ़ी से उनका परिवार लड्डू बनाने का काम कर रहा है। लड्डुओं की क्वालिटी से कोई समझौता नहीं किया। दीक्षित जी की लड्डू अपने आप में ब्रांड हैं। पवन कुमार दीक्षित बताते है कि लड्डू बनाने के लिए वह आज भी लकड़ी से चलने वाली भट्टी का इस्तेमाल करते हैं। लड्डू की बूंदी बनाने के लिए गैस की भट्टी का इस्तेमाल नहीं किया जाता। यही वजह है कि पुराने जमाने का स्वाद आज भी उनके लड्डुओं में बरकरार है।
लड्डुओं के लिए प्रसिद्ध लादूराम जी की दुकान संकरी गलियों में है, लेकिन पता पूछते-पूछते लोग इनकी दुकान तक पहुंच ही जाते हैं। हलवाई गौतम बताते हैं कि उनके परदादा लादूराम ने ही सीकर में लड्डू बनाने की शुरुआत की थी। उनकी 5वीं पीढ़ी भी आज इसी कारोबार से जुड़ी है। ऐसा कोई नेता या सेलिब्रिटी नहीं जो सीकर आया और लादूराम के लड्डुओं का स्वाद नहीं चखा हो। गौतम ने बताया कि उनके यहां देशी घी से ही लड्डू को तैयार किया जाता है। आज भी 150 साल पुराना स्वाद लड्डू में बना हुआ है। खाटू श्याम जी के मेले में उनके लड्डुओं की विशेष डिमांड रहती है। खाटू मेले के साथ ही उनके पास सवामणी के लिए बुकिंग आना शुरू हो गई हैं। इसलिए उनके पास खाटू मेले के साथ ही काम का भार भी बढ़ने लग गया है।
10 करोड़ से ज्यादा का सालाना कारोबार
सीकर में 100 से ज्यादा मिठाई की दुकानों पर खास लड्डू तैयार किए जाते हैं। इनमें 5 बड़ी दुकानें हैं। मेले और फेस्टिवल सीजन के दौरान प्रत्येक दुकान की औसत सेल 10 क्विंटल है। वहीं, साधारण दुकानों पर लड्डुओं की बिक्री 50 से 100 किलो के बीच औसत है। एक अनुमान के मुताबिक एक महीने में करीब 1 करोड़ के लड्डू बिक जाते हैं। वहीं, सालाना कारोबार 10 करोड़ से भी ज्यादा है। लड्डू की प्रसिद्धि का फायदा यहां के कारीगरों को भी मिल रहा है। प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से करीब 500 लोगों को रोजगार मिल रहा है।
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