गौशालाओं में गायों की मौत की खबरें समय-समय पर सामने आती रहती है। पिछले दिनों मध्यप्रदेश में गौशाला में गायों की मौत का मामला सामने आया था। जहां गायों की तड़प-तड़प कर मौत हुई थी। इधर सीकर में एक बिजनेस मेन ने सड़क पर बीमार, घायल, बेसहारा गायों का दर्द समझा और उनके लिए हॉस्पिटल खोल दिया है। हॉस्पिटल में गायों को हर मौसम से बचाने के इंतजाम किए गए हैं। कामधेनू गौ हॉस्पिटल में आज 150 गायों का इलाज किया जा रहा है। स्वस्थ होने पर गायों को यहां से गौशाला भेजा जाता है। 5 साल में 1000 गायों का इलाज किया चुका है।
दरअसल, महेश कुमार सैनी प्रिंटिंग का बिजनेस करते हैं। उन्होंने कई बार सड़क पर तड़पती गायों को देखा। कोई बीमार होती थी तो कोई रोड एक्सीडेंट में घायल हो जाती थी। गायों की ऐसी दुर्दशा ने उन्हें विचलित कर दिया था। देखभाल नहीं होने पर गायों की मौत भी हो जाती थी। ऐसे में गायों का दर्द दूर करने के लिए उन्होंने अस्पताल खोलने का निर्णय किया।
परिवार और दोस्तों को इसके बारे में बताया। उन्होंने भी महेश की पहल का समर्थन किया। इसके बाद महेश ने कुछ रुपए घर से लिए और कुछ दोस्तों-परिचितों से सहयोग लिया। 2017 में सालासर रोड पर चेलासी गांव में 4 बीघा जमीन को किराए पर लेकर अस्पताल की नींव रखी ।
महेश कुमार सैनी ने 5 साल पहले कामधेनू अस्पताल खोला।
शुरुआत में 1 कंपाउंडर था
महेश ने बताया कि गांव और आसपास के इलाके में बीमार गाय की सूचना मिलने पर हम उसे अस्पताल लेकर आते हैं। शुरुआत में गायों के इलाज के लिए एक कंपाउंडर रखा था, जो 24 घंटे हॉस्पिटल में रहता था। धीरे-धीरे बीमार गायों की संख्या बढ़ने पर मेडिकल स्टाफ भी बढ़ा दिया। अब हॉस्पिटल में एक डॉक्टर और 18 लोगों का स्टाफ हैं। 7 से 15 हजार के बीच स्टाफ को हर महीने सैलरी दी जाती है। एक महीने में 5 लाख रुपए का खर्चा हो जाता है।
ज्यादातर गाय एक्सीडेंट में घायल
हॉस्पिटल में करीब 150 गाय भर्ती हैं। ज्यादातर केस सड़क दुर्घटना में घायल गायों के हैं। कई गायों के घाव में कीड़े पड़े हुए हैं। उनका भी इलाज चल रहा है। अस्पताल में ऐसी गाय भी है, जिनको किसी असामाजिक तत्व ने तेजाब डालकर जलाने का प्रयास भी किया है।
अस्पताल में बीमार और दुर्घटनाग्रस्त गायों का इलाज कर गौशाला भेजा जाता है।
परिवार ने दिया साथ
गौ सेवक ने बताया कि इस काम में पत्नी और दोनों बच्चों ने पूरा साथ दिया है। परिवार के साथ के कारण हॉस्पिटल में ज्यादा समय दे पाते हैं। किसी भी समय बीमार गाय की जानकारी मिलने पर एंबुलेंस लेकर पहुंच जाते हैं। शुरुआत में घर से अस्पताल में पैसा लगाया गया था। धीरे-धीरे गांव के लोग और दानदाता भी साथ में जुड़ने लगे हैं। दान के रुपए से ही अस्पताल के स्टाफ और गायों की दवा का खर्चा चल रहा है।
गायों के लिए कूलर भी लगाया
हॉस्पिटल में गायों को हर मौसम में बचाने के भी विशेष इंतजाम किए गए है। अस्पताल में गर्मी में गाय परेशान न हो इसके लिए टिन शेड लगाया गया है। इसके साथ ही मौसम के अनुरूप ही गायों को डाइट दी जाती है। गर्मी से बचाव के लिए कूलर और पंखों की व्यवस्था भी हॉस्पिटल में है। इसके साथ ही अस्पताल में एक एंबुलेंस है, जो बीमार गायों को लाने ले जाने का काम करती है।
हॉस्पिटल में गायों की देखभाल का पूरा इंतजाम है। गर्मियों में कूलर की व्यवस्था भी की जाती है।
हॉस्पिटल शिफ्ट करने का संकट
शुरुआत में चार बीघा जमीन का सालाना किराया 40 हजार रुपए था, जो अब एक लाख हो गया है। महेश ने बताया कि 6 साल से लगातार यहां सब मिलकर काम कर रहे हैं। अब जमीन को जून में खाली करना पड़ेगा। अस्पताल को दूसरी जगह शिफ्ट करने का संकट पैदा हो गया है।